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PFI पर क्यों मचा है इतना शोर, क्या है ये PFI, गृह मंत्रालय ने क्यों लगाया बैन, क्या होगा इसका असर?

PFI Ban : बीते कुछ दिनों से एक शब्द काफी चर्चा में है PFI, आखिर ये है क्या और क्यों लगातार इतनी सुर्खियो में बना हुआ है। ज्यादातर लोग सिर्फ इतना ही समझ रहे होंगे की कि ये कोई मुस्लिम समूह से जुड़ा संगठन है जो देश में अराजकता फ़ैलाने का काम करता है, लेकिन सोचने वाली बात है अगर ऐसा है तो यह इतने समय से चल कैसे रहा था और आज अचानक इसपर इतना हंगामा क्यों मचा हुआ है। आइए इन सभी सवाले से जुड़े जवाब के बारें में हम विस्तार से जानते है…

PFI क्या है?

PFI Ban in India

सबसे पहले जानते है आखिर ये पीएफआई क्या है। बता दें कि, PFI का पूरा नाम पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front of India) है। साल 2007 में दक्षिण भारत के तीन मुस्लिम संगठन केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिता नीति पसारी इन तीनों के विलय से पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का जन्म हुआ। PFI खुद को अल्पसंख्यकों, दलितों के अधिकारों के लिए लड़ने वाला संगठन बताता है। ओएमए सलाम इसके अध्यक्ष हैं। PFI स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) पर बैन के बाद उभरकर सामने आया। इसका मुख्यालय पहले कोझिकोड में था, जिसे बाद में दिल्ली शिफ्ट कर दिया गया। इसके मेंबर्स के बारें कोई जानकारी नहीं है।

PFI कितने राज्यों में फैली है?

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) का दावा करता है कि यह देश के 23 राज्यों में फैला हुआ है। वहीं केरल राज्य में इसकी पैठ सबसे ज्यादा मजबूत हैं।

PFI पर क्यों लगा बैन

अब सवाल ये आता है कि 16 साल पुराने संगठन पर आखिर पांच साल का बैन क्यों लगा, तो बता दें कि देश में कई हिंसा, दंगा और हत्याओं में पीएफआई का नाम अक्सर सामने आता रहा है। जैसे नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के दौरान शाहीनबाग हिंसा, जहांगीरपुरी हिंसा से लेकर यूपी में कानपुर हिंसा, कर्नाटक में भाजपा नेता की हत्या, समेत देशभर में कई ऐसे हिंसा और हत्या के मामले हुए जिसमें पीएफआई संगठन का नाम आ चुका है। इतना ही नहीं, इसके ऊपर भारत विरोधी एजेंडा चलाने का भी आरोप भी लग चुका है, जिसके सबूत भी जांच एजेंसियों को मिले हैं। यही बड़ा कारण है कि हिंसा और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में इस संगठन के संलिप्त होने के सबूत के बाद इस पर बैन लगाया गया है।

PFI

बता दें कि PFI के खिलाफ गत मंगलवार को सात राज्यों में छापेमारी की गई। साथ ही 150 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया। इससे पांच दिन पहले भी देशभर में पीएफआई से जुड़े ठिकानों पर छापेमारी की गई थी और करीब 100 से अधिक लोगों को उसकी कई गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया गया था, जबकि बड़ी संख्या में उनकी संपत्तियों को भी जब्त किया गया था।

PFI पर कब-कब लगे आरोप?

PFI पर अक्सर आरोप लगते रहे है, उत्तर प्रदेश में जांच एजेंसियों ने संगठन पर हाथरस में जातीय हिंसा फैलाने की साजिश रचने का आरोप था। वहीं साल 2020 में नागरिकता कानून मामले में भी इस पर जगह-जगह तनाव फैलाने और हिंसा कराने का आरोप लगाया गया था। पटना के फुलवारी शरीफ में साजिश में भी इसका नाम आया था। इसके अलावा बेंगलुरु में हुई सांप्रदायिक हिंसा में भी पीएफआई के सहयोगी संगठनों का नाम था। कर्नाटक में हिजाब आंदोलन में भी PFI का हाथ बताया गया था। इस कारण समय-समय पर इस संगठन से जुड़े लोगों की गिरफ्तारी भी होती रही और इसे बैन करने की मांग भी। बता दें कि कुछ साल पहले एनआईए ने भी पीएफआई के खिलाफ एक रिपोर्ट दी थी। जिसमें यह बताया गया था कि कम समय में जिस तेजी से संगठन का विस्तार हुआ, वह चिंता की बात है। रिपोर्ट के बाद गृह मंत्रालय ने संगठन पर निगरानी बढ़ा दी थी।

PFI

इन संगठनों पर भी बैन

बता दें कि पीएफआई के अलावा इसके 8 सहयोगी दलों को भी पांच साल के लिए बैन कर दिया गया है। जिसमें रिहैब इंडिया फाउंडेशन (RIF), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI), ऑल इंडिया इमाम काउंसिल (AIIC), नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन (NCHRO), नेशनल वीमेन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन, केरल जैसे सहयोगी संगठनों के नाम शामिल है।

क्या होगा इस बैन का प्रभाव

अब बात करते है कि इस संगठन के बैन होने का क्या असर होगा। बता दें कि गृह मंत्रालय ने PFI को गैर-कानूनी संस्था घोषित कर दिया है और पांच साल के लिए इस पर पूरी तरह बैन लगा दिया है। इसका मतलब है हुआ कि अब पीएफआई एक्टिव नहीं हो सकेगा न ही वह किसी प्रकार का कोई कार्यक्रम आयोजित कर सकता है और न ही उसका कोई दफ्तर होगा। न तो ये किसी से फंड ले सकता है। कुल मिलाकर पीएफआई अब किसी भी तरह की एक्टिविटी में शामिल नहीं हो सकता है और इससे उसके टेरर लिंक कमजोर पड़ जाएंगे।

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