7 Crore का ग्लोबल टीचर प्राइज पाने वाले स्कूल टीचर को World Bank ने बनाया सलाहकार
कहा जाता है कि अध्यापक विद्यार्थी का मार्गदर्शन करता है लेकिन कुछ ऐसे भी अध्यापक होते है जो बच्चों को पढ़ाते-पढ़ाते विश्व पटल पर छा जाते है, आज हम आपको एक ऐसे ही व्यक्ति के बारे में बताने जा रहे है जो अपनी शिक्षण कला की वजह से आज World Bank के सलाहकार बन चुके है। हम बात कर रहे है ‘डिस्ले गुरुजी’ के नाम से मशहूर रणजीत सिंह दिसाले की जो भारत की तरफ से ग्लोबल टीचर पुरस्कार जीतने वाले पहले शिक्षक है। World Bank द्वारा विश्व भर के शिक्षकों की ट्रेनिंग की गुणवत्ता में बेहतर सुधार लाने के लिए एक नया कार्यक्रम शुरू किया है जिसका नाम ‘ग्लोबल कोच’ रखा गया है, World Bank द्वारा शुरू किए गए इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य विश्व भर के बच्चों की शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के साथ शिक्षकों के लिए चलाए जाने वाले ट्रेनिंग प्रोग्राम में ज्यादा तालमेल बिठाना है। आइये जानते है कि कौन है ग्लोबल टीचर प्राइज जीतने वाले रणजीत सिंह जिन्हें विश्व बैंक ने सलाहकार बनाया है।
जब रणजीत सिंह ने जीता था 7 Crore का इनाम
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रणजीत सिंह ने गत वर्ष युनेस्को और वार्क़े फाउंडेशन के द्वारा ग्लोबल टीचर प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था, जिसमें 140 देशों के 12 हजार से भी ज्यादा टीचर ने हिस्सा लिया था। सभी प्रतिभागियों को पछाड़ते हुए रणजीत सिंह ने ग्लोबल टीचर का खिताब जीता था जिसमे उन्हें 7 करोड़ का इनाम मिला था, World Bank की तरफ से सलाहकार नियुक्त होने पर डिस्ले गुरुजी के नाम से मशहूर रणजीत सिंह ने बताया कि वो इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी पर आधारित ट्रेनिंग प्रोग्राम बना कर 21वीं सदी के लिए बेहतर शिक्षक बनाने का प्रयास करेंगे
जानवरों के लिए बनी जगह को बनाया स्कूल
पिछले साल आयोजित हुए ग्लोबल टीचर प्रतियोगिता में रणजीत सिंह को लड़कियों को शिक्षा के लिए प्रेरित करना और देश मे QR कोड पर आधारित किताबों से पढ़ाई करने के अभियान को बढ़ावा देने के लिए ग्लोबल टीचर के अवार्ड मिला था। रणजीत सिंह ने वर्ष 2009 में परितेवाड़ी जिला परिषद में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था, जिस जगह उन्होंने स्कूल शुरू किया है वहां पहले जानवरों को रखने के लिए शेड बना हुआ था। रणजीत सिंह ने बताया कि उन्होंने प्रशासन और वहां के निवासियों से गुहार लगा कर मवेशियों वाली जगह को एक स्कूल में बदल दिया।
उन्होंने कहा कि जब बतौर अध्यापक उनकी नौकरी स्कूल में लगी थी तो वो इस बात को लेकर काफी खुश थे लेकिन स्कूल पहुंचने के बाद स्कूल को देखकर उन्हें काफी दुख हुआ क्योंकि वो स्कूल की जगह बकरियों को बांध कर रखने वाला बाड़ा लग रहा था। क्षेत्र के लोग गरीबी से जूझ रहे थे जिस वजह से वो अपनी बेटियों को स्कूल भेजने से मना करते थे लेकिन रणजीत सिंह ने उनको अपनी बेटियों को स्कूल भेजने के लिए मनाया।
अलग तरीका है डिसले गुरुजी का बच्चों को पढ़ाने का
रणजीत सिंह के अनुसार उन्होंने उनके स्कूल में आने वाले बच्चों को शुरू के 6 महीने तक उन्होंने किताबें खोलने के लिए मना किया था ताकि बच्चे सिलेबस और किताबों से जल्दी से बोर न हो जाए। उन्होंने बताया कि वो बच्चों को लैपटॉप और मोबाइल की मदद से कार्टून, कहानी और गाने दिखाते थे और इसके साथ बच्चों का ज्ञान बढाने की कोशिश करते थे जिसकी वजह से बच्चों ने धीरे-धीरे स्कूल आना शुरू किया।
रणजीत सिंह फिलहाल वर्चुअल फील्ड ट्रिप प्रोजेक्ट के द्वारा दुनिया के 87 देशों में स्थित 300 से भी ज्यादा स्कूलों में बच्चों को पड़ा रहे है, रणजीत सिंह ने पिछले 9 सालों में 12 अंतराष्ट्रीय और 7 राष्ट्रीय पुरस्कार जीते है, माइक्रोसॉफ्ट के CEO सत्य नडेला ने भी रणजीत सिंह की तारीफ की है।