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सैम मानेकशॉ की जीवनी । Biography of Sam Manekshaw

Youthtrend Biography Desk : देश की आजादी से लेकर देश को दुश्मनों से बचाने के लिए बहुत से वीर सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी हैं इन वीरों के बलिदान की वजह से आज हम स्वतंत्र भारत में सांस ले पा रहें हैं, और इन वीर की वजह से ही हम अपने-अपने घरों में सुरक्षित हैं। ये तो हम सब जानते हैं कि 1971 में भारत-पाकिस्तान के युद्ध में भारत की जीत हुईं थी लेकिन हर कोई ये नहीं जानता कि उस युद्ब में भारत को विजय दिलाने में किसका सबसे बड़ा योगदान था।

आज हम उसी वीर बहादुर की बात कर रहें हैं जिन्होंने देश को 1971 के युद्ध में जीत दिलाई और उनका नाम हैं सैम मानेकशॉ, वैसे तो इन्होंने बहुत से युद्धों में देश को विजय प्राप्त करने में अहम किरदार निभाया लेकिन 1971 में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाता हैं आज हम आपकों सैम मानेकशॉ की जीवनी बताने जा रहें हैं

सैम मानेकशॉ की जीवनी । सैम मानेकशॉ का जीवन परिचय

पूरा नाम- सैम होर्मसजी फ़्रेंमजी जमशेदजी मानेकशॉ
जन्मतिथि- 3 अप्रैल 1914
जन्मस्थल- अमृतसर, पंजाब
मृत्यु तिथि- 27 जून 2008
मृत्यु स्थल- वेलिंगटन, तमिलनाडु
पत्नी का नाम- सिल्लो बोडे
धर्म- पारसी
सम्मान- पद्म भूषण, पद्म विभूषण, देश के पहले फील्ड मार्शल

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सैम मानेकशॉ की जीवनी । सैम मानेकशॉ का शुरुआती जीवन

भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का जन्म 13 अप्रैल 1914 के दिन पंजाब के अमृतसर के एक पारसी परिवार में हुआ था, इन्होंने अपनी शुरुआती स्कूली शिक्षा पंजाब के स्कूल से की और फिर उसके आगे की पढ़ाई इन्होंने नैनीताल के शेरवुड कॉलेज से की, इनके पिता जी एक डॉक्टर थे और वो परिवार समेत अमृतसर से वलसाड (गुजरात) में बस गए थे।

अपने पिता को देखकर फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने आगे चलकर डॉक्टर बनने का फैसला किया और डॉक्टरी पढ़ाई करने के लिए लंदन जाने की जिद करने लगें लेकिन उनके पिता ने उन्हें ये कहकर मना कर दिया कि उनकी उम्र अभी लंदन जाकर पढ़ाई करने के लिए बहुत कम हैं। सैम मानेकशॉ को मिलाकर पूरे पांच भाई थे और वो सबसे छोटे थे, उनके भाई लंदन में ही डॉक्टरी पढ़ाई कर रहें थे ये देखकर सैम मानेकशॉ का मन लगातार विदेश में पढ़ाई करने को करता रहा।

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सैम मानेकशॉ की जीवनी । डॉक्टर बनने का ख्वाब छोड़कर पहुंच गए मिलिट्री में

जब उन्हें अपने पिता से लंदन जाकर पढ़ाई करने की अनुमति नहीं मिली तो उन्होंने देहरादून में स्थित इंडियन मिलिट्री एकेडमी में प्रवेश परीक्षा में हिस्सा लिया और वो उस परीक्षा में सफल भी हो गए थे, बस यहीं से उनका जीवन एक अलग मोड़ लेने को तैयार था, फील्ड मार्शल मानेकशॉ जो डॉक्टर बनना चाह रहें थे अब वो फौज से जुड़ने जा रहें थे। 1 अक्टूबर 1932 में उन्हें इंडियन मिलिट्री एकेडमी में भर्ती कर लिया गया, 4 फरवरी 1934 को उन्हें ब्रिटिश इंडियन आर्मी जो द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन की तरफ से लड़ी थी, में बतौर सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप में चुन लिया गया|

सैम मानेकशॉ की जीवनी । दूसरे विश्वयुद्ध में सैम मानेकशॉ की भूमिका

द्वितीय विश्वयुद्ध में वो ब्रिटिश इंडियन आर्मी की 12 फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट का नेतृत्व कर रहें थे और उनकी टुकड़ी बर्मा में जापानी सेना से लोहा ले रहीं थी, सैम मानेकशॉ की टुकड़ी में से आधे से ज्यादा सैनिक युद्ध में मर चुके थे लेकिन फिर भी फील्ड मार्शल मानेकशॉ ने हार नहीं मानी और अपनी बहादुरी के दम पर जापानी सेना को धूल चटा दी। उनके इस अदम्य साहस के लिए उनका सम्मान किया गया था, दरअसल सैम मानेकशॉ और उनकी टुकड़ी पगोडा हिल पर डटी हुईं थी और दुश्मन सेना की तरफ से अंधाधुंध गोलीबारी में बहुत बुरी तरह घायल हो गए थे और उनके जीवित रहने का चांस बहुत ही सूक्ष्म था।

उन्हें रंगून के आर्मी हॉस्पिटल में भर्ती किया गया, यहां तक कि डॉक्टरों ने भी उनके बचने को लेकर मना कर दिया था, तभी अचानक से वो होश में आए तो एक डॉक्टर ने उनसे सवाल किया कि आपकों क्या हुआ हैं तब उनके उस जवाबी से डॉक्टरों में भी जोश भर गया था, उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसा लगा कि शायद किसी गधे ने उन्हें लात मारी हो। उनका ये जज्बा देखकर डॉक्टर भी चकित रह गए और उनका सफलतापूर्वक इलाज किया जिसमें फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने मौत को भी मात दे दीं।

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सैम मानेकशॉ की जीवनी । बहुत से युद्धों में शामिल हुए सैम मानेकशॉ

उन्होंने लगभग 40 साल सैन्य जीवन में बिताएं, अपने सैन्य काल के दौरान उन्होंने आजादी के बाद से पाकिस्तान के खिलाफ 3 युद्धों और चीन के खिलाफ एक युद्ध में शिरकत की, अपने पूरे सैन्य काल में उन्होंने सेना के लगभग सभी महत्वपूर्ण पदों पर अपनी जिम्मेदारी निभाई। 1969 में उनको भारतीय सेना का आठवां सेना अध्यक्ष बनाया गया, सेना अध्यक्ष के पद पर रहते हुए ही उन्होंने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना का नेतृत्व किया, इस युद्ध के बाद उन्हें देश के पहले फील्ड मार्शल की उपाधि से नवाजा गया।

सैम मानेकशॉ की जीवनी । 1971 के युद्ध में उनकी भूमिका

जब 1969 में उन्हें सेनाध्यक्ष बनाया गया तो उन्होंने सबसे पहले देश की सेना को मजूबती प्रदान करने के लिए सेना की मारक क्षमता और युद्ध कुशलता को और ज्यादा निपुण किया, इससे सेना को हर तरह की परिस्थिति में दुश्मनों का डटकर मुकाबला करने की ताकत मिली। 1971 में युद्ध से पहले उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैम मानेकशॉ से पूछा कि क्या वो और सेना युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।

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इस बात का जवाब उस समय के सेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ ने ये कहकर दिया कि जब सही समय आएगा वो खुद सेना को युद्ध के लिए आगे बढ़ने के निर्देश दे देंगे, दिसंबर 1971 में सैम मानेकशॉ ने पड़ोसी दुश्मन पाकिस्तान के खिलाफ जंग की घोषणा कर दी। इसे आप सेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ की बेहतरीन युद्ध रणनीति और युद्ध कौशल ही कहेंगे कि मात्र 15 दिनों के अंदर ही 90 हजार से भी अधिक पाकिस्तानी सैनिकों ने हिंदुस्तानी सेना के आगे आत्मसमर्पण कर दिया।

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सैम मानेकशॉ की जीवनी । जब देश के बहादुर सैनिक ने कहा अलविदा

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देश के पहले फील्ड मार्शल ने 27 जून 2008 को तमिलनाडु के वेलिंगटन में आखिरी सांस ली, वो 94 वर्ष के थे और निमोनिया बीमारी से पीड़ित थे, उन्होनें अपने जीवन में ये साबित कर दिया कि अगर आपके अंदर कुछ कर गुजरने की चाह हैं तो आप कैसी भी परिस्थिति में अपना कर्म कर सकते हैं। देश के इस महान वीर सपूत को पद्म विभूषण, पद्म भूषण और सैन्य क्रांस से सम्मानित किया गया था

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