वाराणसी में इस बार फीकी पड़ने वाली है दुर्गा पूजा की रौनक, सजते हैं 500 से भी ज्यादा पंडाल
साल 2020 ने इस धरती पर मौजूद तमाम इंसानों को जिस तरह के दिन दिखाया उसकी शायद ही कभी किसी ने देखी या कल्पना भी नहीं की होगी। साल के शुरुवात में ही कोरोना वायरस की वजह से इन्सान कुछ इस कदर प्रभावित हुए हैं कि अभी तक इससे उबार नहीं पा रहे और इस प्राणघातक वायरस की वजह से सात वार नौ त्योहार वाली काशी में हर वर्ष मनाये जाने वाले सार्वजनिक आयोजनों के रंग भी फीके पड़ गए हैं। मार्च के बाद से अभी तक तो कोई विशेष त्यौहार नहीं आये मगर अब शारदीय नवरात्र पर कोरोना की काली छाया मंडरा रही हैं।
दुर्गा पूजा पर पसरा है सन्नाटा
हम सभी जानते हैं कि दुर्गापूजा की तयारी में पंडालों के निर्माण का कार्य पितृपक्ष से ही शुरू हो जाता था और हिन्दू धर्म की आदि देवी माँ दुर्गा की प्रतिमाएं आकार लेना शुरू कर देती हैं, लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी होते नहीं दिख रहा जिसकी एक ही वजह है, कोरोना वायरस।
जहाँ दुर्गा पूजा की तैयारियों के लिए बनारस को मिनी कोलकाता के नाम से जाना जाता हैं वहां अभी तक इस त्यौहार के लिए कोई तयारी शुरू नहीं हो पायी है जबकि नवरात्र में अब केवल एक सप्ताह का वक़्त बचा रह गया है। महीने नहर पहले से प्रतिमा तैयार करने वाले कारीगर भी इस बार हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं।
पांडेय हवेली, बंगाली टोला, मंडुवाडीह, शिवपुरवा और सोनारपुरा ये वो मशहूर इलाके हैं जहाँ जो बनारस में दुर्गा पूजा के पंडालों के लिए प्रसिद्द हैं। इन इलाके में रहने वाले बंगाली कारीगरों के परिवार वर्षों से माता दुर्गा की भव्य प्रतिमा तैयार करते आ रहे हैं। उनके द्वारा तैयार की गयी प्रतिमाएं ना सिर्फ काशी में बल्कि आसपास के जिलों तथा पडोसी राज्यों जैसे बिहार और झारखंड तक जाती हैं।
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विश्वनाथ मूर्ति कला भवन शिवपुरा के मूर्तिकार सोमेन चंद्र डे रवि दादा जो पिछले तीन पीढ़ियों से मूर्ति बनाते आ रहे हैं उन्होंने बताया कि कोरोना के कारण समितियों की तरफ से आर्डर नहीं मिल रहे हैं। प्रशासन ने भी रोक लगा रखा है। ऐसे में ना सिर्फ हमारी आस्था प्रभावित हो रही बल्कि मूर्तिकारों के सामने भी अपनी जीविका चलने के लिए विकट संकट खड़ा हो गया है। बताया जा रहा है कि पूजा समितियों ने पिछले दो सालों के पैसे भी अभी तक नहीं चुकाएं हैं, जो उनके लिए इस समस्या को और भी गंभीर बना रही है।
मूर्तिकार साधन चंद्र डे का कहना है कि कोरेाना वायरस जिसने देश और दुनिया को इस कदर प्रभवित किया कि पहली बार ऐसा हो रहा है, जब हम लोग मां दुर्गा की प्रतिमाएं तैयार नहीं कर पाएंगे। प्रमिला डे का कहना है कि कोरोना के कारण इस बार बड़ी और आकर्षक प्रतिमाएं नहीं बन रही हैं, ऐसे में संभावना है कि इस बार केवल परंपरा का निर्वहन करते हुए छोटी प्रतिमा बैठाई जाएगी। हालाँकि अभी तक उन्हें छोटी या बड़ी किस भी तरह की प्रतिमा का ऑर्डर नहीं मिला है।
बनारस में स्थापित होते हैं पांच सौ से भी ज्यादा पंडाल
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काशी में दुर्गा पूजा के महत्त्व को आप इस तरह से ही अंदाजा लगा सकते हैं कि केवल इस जिले में ही तक़रीबन पांच सौ से ज्यादा पंडाल स्थापित किए जाते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं हर एक पंडाल में करीब करीब छह से सात प्रतिमाएं भी स्थापित की जाती हैं। मूर्तिकार अप्रैल महीने से ही मूर्ति बनाने में जुट जाते हैं। पुआल, मिट्टी, बांस, रंग, कपड़े, आदि ये इन सभी सामानों को जुटाने में करीब-करीब चार माह तक का वक़्त लग जाता है।
इसके बाद कड़ी मेहनत और कलकारी से अगस्त के अंत तक प्रतिमाएं तैयार हो जाती है और फिर सितंबर महीने में उसे फाइनल टच देना शुरू कर दिया जाता हैं, मगर इस बार कोरोना वायरस के चलते परिस्थितियां पूरी तरह से विपरीत हो गयी है और हालात ऐसे हैं कि अभी तक ना ही कोई आर्डर मिले हैं और ना ही कोई प्रतिमा बनकर तैयार हुई है।
सरस्वती पूजा के लिए प्रशासन से लगाई गुहार
फिलहाल वर्त्तमान में जिस तरह की परिस्थितियां है उससे मूर्तिकार काफी निराश हैं और उनका कहना है कि दुर्गा पूजा के लिए दुर्गा प्रतिमाएं तो नहीं बन रही हैं मगर कम से कम अगले वर्ष फरवरी में सरस्वती पूजा के लिए हम लोगों का काम करना ही पड़ेगा। चुंकि सरस्वती पूजन में दुर्गा पूजा जैसी भारी भीड़ नहीं होती इसलिए प्रशासन से हम सभी लोग हाथ जोड़कर विनती करते है कि वह हम लोगों को सरस्वती जी की प्रतिमा बनाने का आदेश जारी कर दें। क्योंकि अगर इस मौके पर भी मूर्ति बनाने का आर्डर नहीं मिला तो हमारे सामने भूखे मरने की नौबत आ जाएगी, प्रशासन को कम से कम इस दिशा में गहराई से विचार करना चाहिए और ठोस कदम उठाना चाहिए।
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