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Pitru Paksha : काशी का वह कुंड जहां भटकती आत्माओं को मिलती हैं मुक्ति, गरुण पुराण में भी है वर्णन

Pichas Mochan Kund : इस साल 10 सितंबर से पितृपक्ष (Pitru Paksha) की शुरुआत हो रही है और इसका समापन 25 सितंबर को होगा। हिंदू धर्म में पितृपक्ष (Pitru Paksha) का विशेष महत्व होता है। पितृपक्ष (Pitru Paksha) के दौरान लोग अपने पितरों के निमित्त पूजा, तर्पण एवं पिंडदान आदि करके उनका पूजन करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते है। कहा जाता है कि पितृपक्ष (Pitru Paksha) के दौरान सभी पितर पृथ्वी लोक में वास करते हैं। पितृपक्ष (Pitru Paksha) न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि ज्योतिष की दृष्टि से भी बहुत ज्यादा महत्व रखता है, ऐसे में आज हम आपको धर्म नगरी काशी के एक ऐसे कुंड (Kund) के बरे में बताएंगे जहां पितरों के प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु के बाद उनकी आत्माओं को मिलती मुक्ति है। तो चलिए जानते है इसके बारे में…

दरअसल, हम बात कर रहें महादेव (Mahadev) की नगरी काशी की, जिसे मोक्ष की नगरी भी कहा जाता है। यहां लोग जन्म को भी उत्सव के रूप में मनाते है। मान्यता है कि यहां प्राण त्यागने वाले मनुष्यों को भगवान शंकर स्वयं मोक्ष (Moksha) प्रदान करते हैं, मगर जो लोग काशी (Kashi) से बाहर या काशी में अकाल मौत के शिकार होते हैं, उनके मोक्ष के लिए यहां त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है।

Pichas Mochan Kund : यहां स्थित है यह कुंड

Pitru Paksha

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ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव (Lord Shiva) ने सृष्टि की रचना का प्रारंभ यहीं से किया था। यह सर्वविदित है कि जो भी इंसान यहां अंतिम सांस लेता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। कई लोग तो सिर्फ इसी वजह से अपने अंतिम समय में काशी (kashi) में ही आकर बस जाते हैं। हम जिस कुंड की बात कर रहें वो मोक्ष नगरी काशी के चेतगंज इलाके में स्थित है, जिसका नाम पिशाचमोचन कुंड (Pichas Mochan Kund) है। जहां त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है।

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बता दें कि, त्रिपिंडी श्राद्ध करने के लिए पिशाचमोचन सरोवर (Pichas Mochan) के घाट पर लोगों का तांता लग जाता है। काशी के अति प्राचीन पिशाच मोचन कुण्ड पर होने वाले त्रिपिंडी श्राद्ध के साथ ये मान्यता जुड़ी है कि पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति मिल जाती है। इसीलिये पितृपक्ष (Pitru Paksha) के दिनों पिशाच मोचन कुंड पर लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है।

सिर्फ काशी में होती है त्रिपिंडि श्राद्ध!

काशी पूरे विश्व में घाटों और तीर्थों के लिए जाना जाती है। 12 महीने चैत्र से फाल्गुन तक 15-15 दिन का शुक्ल और कृष्ण पक्ष का होता है, लेकिन पितृपक्ष (Pitru Paksha) अश्विन मास के कृष्ण पक्ष से शुरू होता है। इन 15 दिनों को पितरों की मुक्ति का दिन माना जाता है और इन 15 दिनों के अन्दर देश के विभिन्न तीर्थ स्थलों पर श्राद्ध और तर्पण का कार्य होता है। देश भर में सिर्फ काशी के ही अति प्राचीन पिशाचमोचन कुण्ड पर यह त्रिपिंडी श्राद्ध होता है, जो पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति दिलाता है।

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पिशाचमोचन का वर्णन गरुण पुराण में भी

इस श्राद्ध कार्य में इस विमल तीर्थ पर वेदोक्त कर्मकांड विधि से तीन मिट्टी के कलश की स्थापना की जाती है। जो काले, लाल और सफेद झंडों से प्रतिकमान होते हैं। प्रेत बाधाएं तीन तरह की मानी जाती हैं। सात्विक, राजस, और तामस। इन तीनों बाधाओं से पितरों को मुक्ति दिलाने के लिए काले, लाल और सफेद झंडे लगाये जाते हैं। जिसको की भगवन शंकर (Lord Shiva), ब्रह्मा (Brahma), और विष्णु के प्रतीक के रूप में मानकर तर्पण और श्राद्ध का कार्य किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि पिशाचमोचन (Pichas mochan) पर श्राद्ध करवाने से अकाल मृत्यु से मरने वाले पितरों को प्रेत बाधा से मुक्ति के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है। पिशाच मोचन तीर्थ स्थली का वर्णन गरुण पुराण में भी वर्णित है।

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पिशाचमोचन कुण्ड पर Pitru Paksha के महीने में जुटती है भारी भीड़

पितरों की मुक्ति की कामना से पिशाच मोचन कुण्ड पर श्राद्ध और तर्पण करने के लिए लोगों की भीड़ पितृपक्ष (Pitru Paksha) के महीने में यहां जुटती है। मान्यता है कि जिन पूर्वजों की मृत्य अकाल हुई है वो प्रेत योनि में जाते हैं और उनकी आत्मा भटकती है। उन्हीं की शांति और मोक्ष के लिये यहां तर्पण का कार्य किया जाता है। यहां पिंडदान और तर्पण करने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं। यहां पिंडदान करने के बाद ही लोग गया जाते हैं। धार्मिक स्थली पिशाच मोचन के साथ ये मान्यता जुडी हुई है कि यहां का तर्पण का कर्मकांड करने के बाद ही गया में पिंडदान किया जाता है, ताकि पितरों के लिये स्वर्ग का द्वार खुल सके।

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