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कुछ ऐसी हुआ करती थी पहले के जमाने में AC Coach, अनोखा था ट्रेन की बोगी को ठंडा करने का तरीका

AC Coach In Train : रेलवे को देश की लाइफलाइन कहा जाता है, यह यातायात का सबसे बड़ा साधन है। लाखों लोग रोजाना ट्रेन से सफर करते है, यह लंबी यात्राओं को सुमग और सरल बनाती है। वहीं Indian Railway की बात की जाए तो इसे दुनिया की सबसे बड़ी चौथी रेल सेवा माना जाता है। यात्रियों की सुविधा के अनुसार Tarin में अलग-अलग तरह के कोच बनाएं जाते है। इनमें स्लीपर, AC कोच और जनरल कोच शामिल हैं। बता दें कि, भारतीय रेलवे का इतिहास काफी पुराना है, पहले भी लोग ट्रेन से सफर किया करते थे। लेकिन क्या आपको पता है कि पहले के जमाने में भी ट्रेन में AC कोच हुआ करते थे, जो आज के AC कोच से बिल्कुल अलग थे, क्योंकि पहले एसी नहीं हुआ करता था। अब आप सोच रहे होंगे कि जब एसी नहीं था तो फिर ट्रेन में एसी कोच कैसे बना होगा। आइए आज आपको पहले के जमाने में एसी ट्रेन के बारे में विस्तार से बताते है और साथ ही कई दिलचस्प बातें भी बताएंगे।

देश की पहली AC Coach ट्रेन का नाम फ्रंटियर मेल था

आज के समय में ट्रेन के AC Coach में बैठने वाले यात्रियों को भारतीय रेलवे की ओर से कई तरह की सुविधाएं दी जाती है। जिससे उनकी यात्रा आरामदायक हो। जिसमें वातानुकूलित बोगी और खाने-पीने के लिए पैंट्री की व्यवस्था से लेकर अन्य कई तरह की सुविधाएं मिलती है। अब बात करते है पहले के जमाने में चलने वाली एसी ट्रेन और उनके कोच की। बता दें कि देश में चलने वाली पहली एसी ट्रेन का नाम फ्रंटियर मेल (Frontier Mail) था, जो 1 सितंबर 1928 में पहली बार चलाई गई थी। उस समय इस ट्रेन को पंजाब एक्सप्रेस के नाम से जाना जाता था।

AC Coach

दुनिया की सबसे लक्जरी ट्रेन

इसके बाद सन् 1934 में इस ट्रेन में AC Coach को अलग से जोड़ा गया, जिसके बाद इसके नाम में भी बदलाव किया गया और इसका नाम बदलकर फ्रंटियर मेल कर दिया गया। बता दें कि, ब्रिटिश काल के दौरान ये ट्रेन दुनिया के सबसे लक्जरी ट्रेनों में गिनी जाती थी। फिर सन् 1996 में एक बार फिर इस ट्रेन का नाम बदलकर गोल्डन टेंपल मेल (स्वर्ण मंदिर मेल) कर दिया गया था।

AC Coach

AC Coach को ऐसे किया जाता था कूल

आजादी के पहले एयर कंडीशन का कोई अस्तित्व नहीं था, उस दौर में ट्रेन के वातानुकूलित कोच में एसी नहीं होती थी, ऐसे में AC Coach को ठंडा रखने के लिए बहुत अलग और दिलचस्प तरीका इस्तेमाल किया जाता था। तब फर्श के नीचे बने बॉक्स में बर्फ की सिल्लियां रखा करते थे और साथ में उसमें पंखा भी लगाया जाता था। जिससे हवा चले और इससे पूरी बोगी ठंडी हो सके। सोचिए की ये कितना जबरदस्त है, पहले के जमाने में कोई नई और स्मार्ट टेक्नॅालजी नहीं थी, इसके बावजूद इस तरह की सुविधा देना अपने आप में बिल्कुल ही अनोखा है। जैसे आज के दौर में राजधानी ट्रेन का किराया सबसे ज्यादा महंगा है, ठीक उसी तरह ये ट्रेन उस जमाने की राजधानी थी।

AC Coach

यात्रियों के लिए सभी सुविधाओं का इंतजाम

फ्रंटियर मेल ट्रेन में सिर्फ 6 कोच हुआ करते थे, तब इसमें करीब 450 लोग सफर किया करते थे। इतना ही नहीं फर्स्ट और सेकेंड क्लास के यात्रियों को भी इसमें खाना दिया जाता था। वहीं पैसेंजर के मनोरंजन के लिए उन्हें न्यूज पेपर, बुक्स और ताश के पत्ते भी दिए जाते थे। ये ट्रेन समय की बहुत पाबंद हुआ करती थी, ये ट्रेन अपने समय में कभी लेट नहीं होती थी। सन् 1934 में जब इस ट्रेन में AC Coach की शुरुआत हुई तो इसके 11 महीने बाद एक बार ये ट्रेन लेट हो गई थी, उस समय ड्राइवर को नोटिस भेजकर जबाव मांगा गया था।

वहीं जब देश को आजादी मिली, तब ये ट्रेन मुंबई से अमृतसर तक चलाई जाने लगी। इसके बद साल 1996 में इसका नाम बदलकर ‘गोल्डन टेम्पल मेल’ रखा गया।

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नेताजी और बापू भी कर चुके है सफर

बता दें कि शुरु में ये ट्रेन मुंबई से पेशावर तक चलती थी, इस ट्रेन में कई बार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी सफर कर चुके है। उस दौरान इस ट्रेन में ब्रिटिश हुकूमत के अलावा स्वतंत्रता सेनानी भी यात्रा किया करते थे। ये ट्रेन अपना सफर दिल्ली, पंजाब और लाहौर होते हुए तय किया करती थी, जिसे पूरा करने में इसे करीब 72 घंटे का समय लगता था। वहीं इस दौरान ट्रेन के AC Coach में जब बर्फ की सिल्लियां पिघल जाती थी तो उन्हें अगले स्टेशन पर बदलकर नई बर्फ की सिल्ली बॉक्स में भर दी जाती थी, जिससे ट्रैवल कर रहें यात्रियों को वातानुकूलित ठंडी हवा बराबर मिलती रहे और वे अपने यात्रा का आनंद ले सकें।

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