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इस दिन है वरुथिनी एकादशी का व्रत, जानें क्या है महत्व, पूजन विधि एवं कथा

इस दिन है वरुथिनी एकादशी का व्रत, जानें क्या है महत्व, पूजन विधि एवं कथा

जैसा कि हम सब जानते हैं कि इस समय वैसाख का महीना चल रहा हैं, हिंदू धर्म मे इसे सबसे पवित्र माह माना गया हैं, वैशाख माह की कृष्णपक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा जाता हैं। शास्त्रों में ये बताया गया हैं कि ये व्रत व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति दिलाता हैं वरुथिनी एकादशी के दिन व्यक्ति को जुआ, पान, दातुन, चोरी, हिंसा, क्रोध और झूठ का त्याग कर देना चाहिए, इन सबका त्याग करने से व्यक्ति को स्वत् ही मानसिक शांति का एहसास होने लगता हैं।

भविष्योत्तर पुराण में कहा गया हैं कि वैशाख माह में कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए, इसके अलावा मीट, मांस और मसूर का सेवन भी वर्जित बताया गया हैं। इस एकादशी पर व्रत करने का विधान हैं, व्रत के दिन व्यक्ति को सोना नहीं चाहिए, एकादशी की रात में भगवान का स्मरण करना चाहिए और अगले दिन यानी द्वादशी के दिन व्रती को मांस, कांस्य का त्याग करके विधि पूर्वक पारण करना चाहिए।

वरुथिनी एकादशी व्रत से होता है शुभ फल प्राप्त

इस दिन है वरुथिनी एकादशी का व्रत, जानें क्या है महत्व, पूजन विधि एवं कथा

शास्त्रों में ये बताया गया हैं कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के दुखों के बंधन कट जाते हैं और उसे सुखों की प्राप्ति होने लगती हैं इसके अलावा जो राजा होते हैं उनके लिए स्वर्ग का रास्ता खुल जाता हैं। इस दिन किए हुए व्रत से जो फल प्राप्त होता हैं वो सूर्य ग्रहण पर किए गए दान के बराबर होता हैं, वरुथिनी व्रत से व्यक्ति को इस दुनिया और परलोक दोनों में सुख की प्राप्ति होती हैं।  एक हाथी के दान और भूमि के दान से जो पुण्य मिलता हैं उससे कही अधिक पुण्य इस व्रत को करने से मिलता हैं।

क्या हैं इस व्रत की महिमा

दान देने वाली वस्तुओं में सबसे सर्वोत्तम तिल को माना गया हैं, तिल से श्रेष्ठ स्वर्ण दान माना गया हैं और सोने के दान से भी अधिक शुभ फल और पुण्य इस व्रत को करने से मिलता हैं। एकादशी का व्रत करने और विधि-विधान से पूजा करने से व्यक्ति पर भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती हैं।

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इस दिन है वरुथिनी एकादशी का व्रत, जानें क्या है महत्व, पूजन विधि एवं कथा

कथा

बहुत समय पहले नर्मदा नदी के तट पर एक राजा जिसका नाम मांधाता था, उसका वहा राज्य था, वो राजा काफी दयालु, दानशील और तपस्वी प्रवति का था। एक दिन तपस्या के समय एक जंगली भालू ने राजा का पैर मुंह मे दबोच कर उसे जंगल की तरफ खींच कर ले जाने लगा, ये देख राजा डर गया और भगवान विष्णु को याद करने लगा।

भगवान विष्णु ने राजा की पुकार सुनी और अपने सुदर्शन चक्र से भालू को वही मार दिया, उसके बाद श्रीविष्णु ने राजा से कहा कि मथुरा में वाराह मूर्ति की पूजा करके वरुथिनी एकादशी का व्रत रखो, उससे तुम्हारा पैर तुम्हे मिल जाएगा और ये सब तुम्हारे पूर्व जन्मों के पाप की वजह से हुआ हैं।

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