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इस मंदिर में शिवलिंग का जलाभिषेक करती है गाय, भक्तों की हर मनोकामना होती है पूरी

इस मंदिर में शिवलिंग का जलाभिषेक करती है गाय, भक्तों की हर मनोकामना होती है पूरी

हमारा भारत देश कई जाती-धर्मो का संगम स्थल हैं| यहाँ कई तरह के धर्म को मानने वाले लोग निवास करते है| वो अपने धर्म के मुताबिक अपने देवी-देवताओं की पुजा-अर्चना भी करते हैं| इसलिए हमारे भारत देश को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र कहाँ जाता हैं| भारत देश जैसी विविधता आपको किसी और देश में देखने को नहीं मिलेगी| ऐसे ही हिन्दू धर्म के ऐसे बहुत सारे धार्मिक स्थल हैं जो रहस्यों से भरे पड़े हैं| ये मंदिर अपने चमत्कारो की वजह से दुनिया भर में मशहूर हैं| भारत में इन्हीं मंदिरो मे से एक अपनी भव्यता और अलौकिकता की वजह से धर्मशाला की विध्यांचल पर्वत हैं|

इस मंदिर में शिवलिंग का जलाभिषेक करती है गाय, भक्तों की हर मनोकामना होती है पूरी

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पौराणिक कथाओं के मुताबिक लगभग 600 साल पहले वैष्णव संप्रदाय के वनखंडी नाम के एक महात्मा यहां निवास करते थे| इनको लाल बाबा के नाम से भी लोग जानते थे| लाल बाबा रोजाना धाराजी के नर्मदा तट पर स्नान के लिए जाते थे और सूर्योदय के समय जटाशंकर लौटकर भगवान का अभिषेक करते थे| लेकिन उनके कमजोर होने पर नर्मदा माँ प्रकट हुयी और भगवान के अभिषेक के साथ-साथ हमेशा बहने वाली पांच जल धाराओं का वरदान जटा शंकर को दिया था|

परंतु कलयुग के प्रभाव से चार जल धाराएं प्राय लुप्त हो चुकी है| लेकिन भगवान का अभिषेक करने वाली जलधारा अभी भी प्रवाहित होती है। दरअसल, जटाशंकर महादेव पर नीले और लाल रंग की धारियां है| इसी वजह से इनको नीललोहित शिवलिंग भी कहा जाता है| इस मंदिर की छत से चिपकी हुई चट्टान पर बेलपत्र का वृक्ष है| जल और बेलपत्र से भगवान का अखंड अभिषेक होता है| मंदिर के पुजारियों का कहना है कि जटाशंकर की जलधारा और नर्मदा जल का स्वाद एक जैसा है|

इस मंदिर में शिवलिंग का जलाभिषेक करती है गाय, भक्तों की हर मनोकामना होती है पूरी

बताया जाता है कि इस तीर्थ स्थान पर सावन महीने में पिछले 15 सालों से अखंड महारुद्राभिषेक हो रहा है| इसमें भगवान जटाशंकर का महारुद्राभिषेक, पार्थिव पूजन, महामृत्युंजय मंत्र का जाप, पंचाक्षर मंत्र जाप और हवन इत्यादि क्रियाएं जारी हैं| मान्यता है कि यदि श्रद्धालु अपनी मनोकामनों की पूर्ति के लिए अपने सच्चे मन से भगवान जटा शंकर का अभिषेक करने के लिए यहाँ आता है तो श्रद्धालु को अभिषेक करने के बाद मंदिर की दीवारों पर गोबर से स्वास्तिक चिन्ह को उल्टा उकेरना पड़ता है| ऐसा करने से उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है| लेकिन मनोकामना पूरी होने के बाद उस उल्टे स्वास्तिक को सीधा करने श्रद्धालु को इस जगह दोबारा आना पड़ता हैं|

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