पितृ पक्ष की पौराणिक कथा, जब कर्ण हुए फिर से जिन्दा
Youthtrend Religion Desk : हिन्दू धर्म में श्राद्ध का काफी ज्यादा महत्त्व है और यह किसी पर्व से कम नही होता, 1 सितम्बर से 2020 से समस्त भारतवर्ष में श्राद्ध पक्ष शुरू हो चुका है. श्राद्ध के कुछ नियम और कथाएं भी है जो सम्पूर्ण श्राद्ध कर्मा करते वक़्त सुनाई तथा मानी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसी ही एक प्रचलित कथा है जो ज्यादातर क्षेत्रों में सुनाई जाती है। इस कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध के दौरान जब दानवीर कर्ण की मृत्यु हो जाती है तब उसकी आत्मा स्वर्ग में पहुंचती है जहाँ पर उसे भारी मात्रा में स्वर्ण व आभूषण आदि दिए जाते हैं। मगर दानवीर कर्ण की आत्मा को कुछ समझ नहीं आया, वह तो आहार की तलाश में थे।
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काफी प्रयास के बाद भी जब उसे भोजन नहीं दिखा तो उन्होंने स्वर्ग के राजा देवराज इंद्र से पूछा कि आखिर उन्हें भोजन के स्थान पर स्वर्ण आदि क्यों दिया जा रहा। तब देवराज इंद्र ने दानवीर कर्ण को बताया कि जब वह जीवित था तो उसने अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में सोना दान किया मगर अपने पूर्वजों को कभी भी भोजन दान नहीं किया। इसपर कर्ण ने हाथ जोड़ कर देवराज से कहा कि उन्हें इस बात का जानकारी ही नहीं थी कि उनके पूर्वज कौन थे और यही वजह है कि वे कभी भी अपने पूर्वजों को भोजन आदि दान नहीं कर पाए।
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कर्ण की इन बातों को सुनकर उसे उसकी गलती सुधरने का एक मौका दिया गया और उसे पुनः 16 दिनों के लिए धरती पर वापस भेज दिया गया। धरती पर आने के बाद दानवीर कर्ण ने अपने पूर्वजों को याद करते हुए सभी प्रावधानों और नियमों का पालन करते हुए अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर उन्हें आहार दान किया। उनका तर्पण किया, तब से ही इस 16 दिन की अवधि को 'पितृ पक्ष' के नाम से जाना जाता है।