गोवर्धन पूजन 2020: इस श्राप के कारण घटता जा रहा है गोवर्धन पर्वत, जानें इसके पीछे की कथा
गोवर्धन पर्वत उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के अन्तर्गत आता है। यहां पर ही भगवान कृष्ण ने द्वापर युग में ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिए अपनी कनिष्क उंगली पर ही पूरे गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था।गोवर्धन पर्वत को एक और नाम से भी जाना जाता है इसका नाम है – गिरिराज जी। वृंदावन में इसकी महिमा अपरम्पार है। इस पर्वत की पूजा और परिक्रमा करने से मनुष्य की सारी इक्छाएं पूरी हो जाती हैं।ऐसा माना जाता है कि किसी श्रापवश गोवर्धन पर्वत धीरे धीरे घटती जा रहा है।
किस वजह से घटता जा रहा गोवर्धन पर्वत
भगवान विष्णु ने जब पापियों का सर्वनाश करने के लिए वासुदेव के घर उनके पुत्र के रूप में जन्म लेने का निश्चय किया तभी गोलोक में रहने वाली यमुना नदी और गोवर्धन पर्वत ने भी उनके साथ धरती पर आने का निश्चय किया। गोवर्धन पर्वत का जन्म शाल्मली द्वीप पर द्रोणाचार्य के पुत्र के रूप में हुआ था। कुछ समय पश्चात ऋषि पुलात्स्य ने द्रोणाचार्य के पुत्र गोवर्धन पर्वत को अपने साथ ले जाने के लिए निवेदन करने लगे। ऋषि पुलत्स्य के निवेदन को सुनने के बाद द्रोणाचार्य ने इस पर्वत को उनके साथ जाने की आज्ञा दे दी। लेकिन वहां से जाने से पहले पर्वत ने अपनी एक शर्त रखी और वो शर्त ये थी कि अगर इस पर्वत को रास्ते में कहीं भी रखा गया तो वो वहीं स्थापित हो जाएगा।
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उनकी शर्त मान ली गई और उनको अपनी हथेली पर रख कर चलने लगे, आगे चलते चलते वज्रमंडल तक पहुंचे तब गोवर्धन पर्वत को अपने पिछली जन्म की प्रतिज्ञा याद आ गई और उसने धोखे से अपना वजन बढ़ा लिया। ऋषि उसके भार को सहन नहीं कर पाए और उसको वहीं रख दिया तब से इस पर्वत श्रीकृष्ण के साथ वज्रभूमी पर ही स्थित हो गया।
क्रोधित होकर ऋषि पुलस्त्य ने दिया था पर्वत को लगातार घटने का श्राप गोवर्धन पर्वत के इस छल करने की वजह से ऋषि पुलस्त्य क्रोधित हो गए और उसे श्राप दे दिया कि तुम हर रोज धीरे धीरे खत्म होते जाओगे। उसी श्राप की वजह से पर्वत उस दिन से ही थोड़ा थोड़ा हर रोज घटता रहता है। ऐसा माना जाता है कि जब तक पृथ्वी पर गंगा नदी और यह पर्वत रहेंगे तब तक यहां कलयुग का प्रभाव नहीं बढ़ेगा। अगर गोवर्धन पर्वत किसी तरह क्षीण होता है तो पृथ्वी पर विनाश आ जाएगा।