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जब बनारस की ईद को देखकर कुतुबुद्दीन ऐबक रह गया आश्चर्यचकित

बनारस की ईद | भोले की नगरी वाराणसी या बनारस या काशी देश की सबसे पुरानी नगरी मानी जाती है। वैसे तो मुख्य रूप से हिंदू धर्म के लिए ये सबसे पवित्र नगर है लेकिन मुस्लिम समूह के लोगों का भी यहाँ अपना ही महत्त्व है और इसका प्रमाण आज या कल से नहीं बल्कि सदियों से देखा जाता रहा है। अन्य सभी त्योहारों की तरह ही बनारस में ईद का इतिहास भी काफी प्राचीन है। मुकद्दस रमजान में रोजे को पूरा करने के बाद ईद की नेमत मिलती है। ईद का त्योहार बेहद ही सौहार्दपूर्ण ढंग से काशी में मनाया जाता है और देश भर में गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है। बताया जाता है कि बनारस में गोविंदपुरा व हुसैनपुरा में सबसे पहले ईद मनाई गई थी। हिंदुस्तान में मुसलमानों के आने के साथ ही ईद मनाने के सबूत भी मिलते हैं।

बनारस की ईद देश भर में गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल

बनारस की ईद

जहां तक बनारस की बात है यहां मुस्लिम सत्ता की स्थापना से पूर्व ही मुस्लिम न सिर्फ आ चुके थे बल्कि कई मुस्लिम बस्तियां भी बस गई थीं। दालमंडी के निकट गोविंदपुरा और हुसैनपुरा में ईद की नमाज सबसे पहले पढ़े जाने का संकेत तवारीखी किताबों से जाहिर है। डॉ. आरिफ ने बताया कि बनारस के मुसलमानों की ईद को देखकर कुतुबुद्दीन ऐबक को आश्चर्य हुआ था।

ईद की नमाज के बाद बनारस में जो सौहार्दपूर्ण माहौल था, उसमें हिंदू-मुसलमान की पहचान करना मुश्किल था। यह बनारसी तहजीब थी जो देश में मुस्लिम सत्ता की स्थापना के पूर्व ही काशी में मौजूद थी। इस्लामी विद्वान मौलाना साकीबुल कादरी कहते हैं कि ईद रमजान की कामयाबी का तोहफा है।

जानकारों का कहना है कि ईद का मतलब केवल यह नहीं कि महीने भर जो इबादत करके नेकियों की पूंजी एकत्र किया है उसे बुरे और बेहूदा कामों में जाया कर देना बल्कि ईद का मतलब है कि दूसरों को खुशियां बांटना। दूसरों की मदद करना ईद का सबसे बड़ा मकसद है। जाने माने मौलाना ईद की तवारीखी हैसियत पर रौशनी डालते हुए बताते हैं कि सन दो हिजरी में सबसे पहले ईद मनायी गई। पैगंबरे इस्लाम नबी ए करीम हजरत मोहम्मद का वो दौर था।

चांद का हुआ दीदार

ईद के चांद की तस्दीक होते ही मुस्लिम इलाकों की रौनक देखने लायक थी। आतिशबाजी के साथ ही मुबारक हो की सदाएं भी फिजां में गूंजी। रोजेदारों ने कोरोना के खात्मे के साथ ही मुल्क में अमन चैन की दुआएं मांगी और ईद की तैयारियां शुरू हो गईं।

बृहस्पतिवार की शाम को रोजा खोलने के बाद लोग छतों पर ईद के चांद के दीदार को जा खड़े हुए। कुछ मस्जिदों तो कुछ ऊंची इमारतों पर जा डटे लेकिन बदली ने चांद देखने में खलल डाला। फिर भी लोग कोशिश में लगे रहे। इस बीच पटाखे बजने लगे तो लोग खुश हो गए। लेकिन चांद कमेटी की तस्दीक जरूरी थी। लिहाजा लोग इंतजार में रहे।

इशा बाद इज्तेमाई रुइयते हेलाल कमेटी के ऐलान पर लोग ईद की खुशी में झूम उठे। बजरडीहा, सरैया, अलईपुर, पीलीकोठी, छितनपुरा, शिवाला, गौरीगंज, मदनपुरा, दालमंडी, नई सड़क, नदेसर, अर्दली बाजार में खुशी का माहौल रहा। कोरोना संक्रमण के कारण लोगों ने घरों में ही एक दूसरे को मुबारकबाद दी।

ईद का चांद दिखते ही जहां लोगों ने एक-दूसरे को ईद की बधाई दी वहीं मोबाइल पर भी बधाई के काल और एसएमएस आने लगे। रोजेदारों ने रोजा खोला और नमाज अदा कर ज्योंही चांद का दीदार किया कि उसके बाद उनके मोबाइल पर बधाई की कालें और एसएमएस आने शुरू हो गए। लोगों ने रिप्लाई कर उन्हें भी बधाई दी और शुक्रिया अदा किया। महिलाओं ने ईद की तैयारियों को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया था। कोई खोआ भून रहा था तो कोई सेंवई बनाने की तैयारी में जुटा रहा।

रमजान के आखिरी अशरे में मस्जिदों में एतकाफ पर बैठने वाले लोग चांद का दीदार कर बृहस्पतिवार की शाम को अपने-अपने घरों को रवाना हुए। मस्जिद में मौजूद लोगों ने उन्हें रुखसत किया। घर पहुंचने पर परिवार वालों ने उनका स्वागत किया और मुसाहफा कर उनका हाथ चूमा। स्रोत – अमर उजाला

Chandan Singh

Chandan Singh is a Well Experienced Hindi Content Writer working for more than 4 years in this field. Completed his Master's from Banaras Hindu University in Journalism. Animals Nature Lover.