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ज्वालामुखी मंदिर, जहाँ सदियों से जल रही भू-गर्भ से ज्वाला | Jwalamukhi Temple

Youthtrend Religion Desk : जब श्रीविष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती माता के मृत शरीर के 51 हिस्से किए थे तो माता की जिव्हा (जीभ) जिस जगह गिरी थी उस जगह स्थित हैं मां ज्वालामुखी का मंदिर, ज्वालामाई के इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यहां चल रही अखंड ज्योति हैं ये माता के 51 शक्तिपीठों में से एक हैं। हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित हैं ज्वालामुखी का मंदिर, शारदीय और चैत्र नवरात्रों में माता के इस मंदिर पर भक्तगणों की भारी भीड़ जुटती हैं। मां ज्वालामुखी का ये मंदिर धार्मिक महत्व के साथ पौराणिक आस्था का केंद्र हैं प्राचीन काल से ही ज्वालामुखी माता क्षेत्र में बसें आदिवासी की पूजनीय देवी रही हैं, आज हम आपकों ज्वालामुखी मंदिर के बारें में जानकारी देने जा रहें हैं।

ज्वालामुखी मंदिर । क्या हैं इसका इतिहास

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ज्वालामुखी मंदिर शक्तिपीठ के पुरोहितों के मुताबिक शक्ति स्वरूप मां सती की जीभ का अगला हिस्सा सिंगरौली के एक गांव जिसका नाम रानीबारी था वहां गिरी थी और यहीं जगह आगे चल कर ज्वालामुखी के नाम से प्रसिद्घ हुआ था, पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार सिंगरौली राज्य के कुंवर रहें उदित नारायण सिंह गहरवार को सपने में मां ज्वाला दिखाई दी थी, सपनों में आकर ज्वाला माता ने कहा कि राजा तुम्हारे राज्य की राजधानी के समीप रानी बारी गांव में मेरी प्रतिमा हैं। मेरी उस प्रतिमा की तुम पूजा करो जिसके कारण तुम्हारे राज्य में खुशहाली बढ़ेगी और सुख-समृद्धि भी होगी।

स्वप्न देख कर राजा उदित नारायण ने मां की प्रतिमा की खोज की जिसमें सपने के अनुसार मां की मूर्ति मिली, उसके बाद राजा ने मां की मूर्ति को अपने साथ लेकर जाने की चेष्टा की पर वो सफल ना हो सका, तब उसे राजपूतों ने सुझाव दिया कि इसी जगह पर ज्वालामुखी मंदिर की स्थापना कर देनी चाहिए। उसके बाद चैत्र शुक्ल पक्ष की रामनवमी के दिन मंदिर का जीर्णोद्धार करते हुए मां ज्वाला की प्रतिमा की स्थापना की।

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ज्वालामुखी मंदिर । नवरात्रों में होती हैं मंदिर में धूम

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ज्वालामुखी मंदिर में हर साल चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि में यहां 1 महीने तक विशाल मेला लगता हैं जिसमें लाखों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से जुटते हैं, भक्त अपने हाथों से ज्वालामाई पर नारियल, फूल, चुनरी चढ़ाते हैं और मां से अपनी मनोकामना कहते हैं। इसके अलावा नवरात्रों में श्रद्धालु जवारी जुलूस लेकर अपने हाथों में जवार, मशाल, तलवार, खप्पर और त्रिशूल के साथ ढोल पर नाचते हुए धूम मचाते हुए मां के दर्शन के लिए आते हैं।

ज्वालामुखी मंदिर । दिन में पांच बार होती हैं आरती

इस मंदिर की सबसे खास बात हैं यहां माता की अखंड ज्योत का जलना, इस मंदिर में इस ज्योत का ही विशेष महत्व हैं, इस मंदिर में दिन की सबसे पहली आरती ब्रह्ममुहूर्त में होती हैं जिसे मंगला आरती कहा जाता हैं, मंगला आरती में मां को मालपुआ, मिश्री और खोए का लगता हैं। उसके 1 घंटे बाद दुसरी आरती होती हैं जिसमें ज्वालामुखी माता को दही और पीले चावल का भोग लगता हैं, दोपहर के समय तीसरी आरती की जाती हैं जिसमें मिठाई और छह तरह की मिश्रित दालों का भोग लगता हैं। शाम के समय चौथी बार आरती की जाती हैं जिसमें माता को चने और हलवे का भोग अर्पण किया जाता हैं और रात में नौ बजे शयन आरती की जाती हैं जिसमें माता का 16 श्रृंगार करने के बाद मंदिर बंद कर दिया जाता हैं।

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ज्वालामुखी मंदिर । जानिए मां के परम भक्त ध्यानू से जुड़ी रोचक कहानी

ये उस समय की बात हैं जब देश में मुगलों का शासन था और दिल्ली के तख्त पर बादशाह अकबर काबिज थे, मां का परम भक्त 1000 श्रद्धालुओं के साथ माता के दर्शन हेतु जा रहा था, जब अकबर के सैनिकों ने इतने सारे लोगों को एक साथ जाते हुए कहीं देखा तो सबको चांदनी चौक इलाके में रोक कर अकबर के दरबार में ले गए। अकबर ने ध्यानू से पूछा कि इतने सारे लोग एक साथ कहा जा रहें हैं तब ध्यानू ने अकबर से कहा कि हम सब ज्वालामुखी माता के दर्शन करने जा रहें हैं, फिर अकबर ने सवाल किया कि क्यों जा रहें हो तब भक्त ध्यानू ने बताया कि मां अपने भक्तों की सच्ची प्रार्थनाएं स्वीकार करकें अपने भक्तों पर हमेशा कृपा बनाए रखती हैं और वहां पर निरंतर रूप से बिना तेल और बाती के मां की अखंड ज्योत जलती रहती हैं।

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ज्वालामुखी मंदिर । जब अकबर ने लेनी चाही ध्यानू की परीक्षा

अकबर ने ध्यानू से कहा कि अगर तुम्हारी श्रद्धा सच्ची हैं तो तुम्हारी देवी तुम्हारा ख्याल रखेगी अगर ऐसा नहीं हुआ तो या तो तुम्हारी इबादत झूठी हैं या तुम्हारी देवी यकीन के काबिल नहीं हैं, हम इस बात का इम्तिहान लेने के लिए तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग कर देते हैं और तुम अपनी माता से कहकर इसे फिर से जिंदा करवा लेना। तब ध्यानू ने अकबर से घोड़े और उसकी गर्दन को 1 महीने के लिए सुरक्षित रखने को कहा, उसके बाद अकबर ने भक्त ध्यानू की बात मानते हुए उसे यात्रा करने की अनुमति दे दी, माता के मंदिर पहुंचने के बाद उसने पूजन किया और पूरी रात माता का जागरण किया। ध्यानू ने माता से विनती करी कि अकबर मेरी भक्ति की परीक्षा लेना चाह रहा हैं इसलिए आप फिर से मेरे घोड़े को जिंदा कर दो, मां ने अपने भक्त ध्यानू की लाज रखते हुए घोड़े को पुनर्जीवित कर दिया।

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ज्वालामुखी मंदिर । अकबर ने चढ़ाया 50 किलो सोने का छत्र

घोड़े को दुबारा जीवित देखकर वो हैरान रह गया तो उसने अपनी सेना के साथ मंदिर के लिए कूच कर दिया, वहां पहुंच कर उसने जब मां की ज्योत देखी तो उसे बुझाने के लिए पानी भी डलवाया लेकिन मां की ज्योत अखंड रही। फिर अकबर को मां के चमत्कार का एहसास हुआ तब उसने अहंकार वश माता पर 50 किलो सोने का छत्र चढ़ाया लेकिन माता ने उसे कबूल ना करते हुए गिरा दिया और सोने का छत्र लोहे के छत्र में बदल गया, ये देखकर अकबर का घमंड दूर हो गया और वो मां का सेवक बन गया।

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