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गर्भ संस्कार : आइये जानें क्या है गर्भ संस्कार का ज्ञान विज्ञान

Youthtrend Religion Desk : हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में से एक महत्वपूर्ण संस्कार हैं गर्भ संस्कार, गर्भ संस्कार से आशय हैं कि जब बच्चा गर्भ में होता हैं तो वो अपनी मां से बहुत कुछ सीखता हैं चिकित्सा विज्ञान का भी ये मानना हैं कि जब शिशु मां के गर्भ में होता हैं तो वो किसी अन्य चैतन्य जीव की तरह ही व्यवहार करता हैं। हमारें पूर्वजों ने भी गर्भ संस्कार जिसे गर्भाधान संस्कार कहा जाता हैं, हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में सम्मिलित किया, तभी से इसे बहुत ही पवित्रता के साथ किए जाने का प्रचलन हैं, आज हम आपकों गर्भ संस्कार से जुड़े ज्ञान विज्ञान के बारें में बताने जा रहें हैं।

गर्भ संस्कार

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किसी भी बालक के दुनिया में आने के लिए और उसके विकास के लिए माता-पिता की जिम्मेदारी होती हैं गर्भधारण में पिता केवल सहयोग मात्र देता हैं और गर्भधारण करने से लेकर शिशु के पैदा होने तक की सारी जिम्मेदारी एक मां की होती हैं। गर्भावस्था में मां जो भी सोचती हैं जो भी करती हैं उसका सीधा असर उसके गर्भ में पल रहें बच्चें पर होता हैं।

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क्या होता हैं गर्भ संस्कार

एक मां का अपने गर्भ में पल रहें शिशु से सब कुछ जुड़ा हुआ हैं मां का खाना पीना, मां की सोच, मां की मनःस्थिति का उसके शिशु पर सीधे तरीके से प्रभाव पड़ता हैं, हिंदू धर्म ग्रंथो के अनुसार गर्भ में पल रहें शिशु को संस्कार देने का रिवाज तो पुराने समय से चला आ रहा हैं। कहा जाता हैं कि शिशु में संस्कार उसके पिता के द्वारा बच्चें में आते हैं, मां को हमेशा खुश रहना चाहिए ताकि गर्भ में पल रहा शिशु भी खुश रहें और स्वस्थ रहें।

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गर्भ संस्कार में मां की होती हैं अहम भूमिका

शास्त्रों में बताया गया हैं कि किसी भी शिशु को संस्कार देने का बिल्कुल सही समय हैं उसका गर्भकाल, गर्भावस्था के दौरान मां का चरित्र, व्यवहार और चिंतन जैसा होता हैं उसका प्रभाव उसके गर्भ में पल रहें शिशु पर पड़ता हैं। मां का होने वाले शिशु की कल्पना करना, भोजन करना ये सब भी शिशु के अंदर सूक्ष्म रूप से समाहित होने लगता हैं।

मां की सभी आदतें, मां की इच्छाएं और मां के संस्कार भी गर्भ में पल रहें शिशु के अंदर प्रवेश कर जाती हैं, मां जो भी कल्पना करती हैं, सीखती हैं, महसूस करती हैं उसके अनुसार ही उसके शिशु के चरित्र और व्यक्तित्व के निर्माण की शुरुआत हो जाती हैं। उदाहरण के लिए महान धनुर्धारी अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु जिसने अपनी मां सुभद्रा के गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदने की कला सीख ली थी जो उनकी मां को उनके पिता ने बताया था।

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