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पूजा करने से पहले नहीं बोंले ये खास मंत्र, तो समझें व्यर्थ है आपकी पूजा

पूजा करने से पहले नहीं बोंले ये खास मंत्र, तो समझें व्यर्थ है आपकी पूजा

समस्त धर्मो में हिन्दू धर्म एक ऐसा धर्म है जो की अनेक रीती-रिवाज और परम्पराओं से परिपूर्ण है उन्हीं में से कई परंपराएं व रिवाज पूजा-पाठ एवं मंत्र आदि का है। हिन्दू धर्म में वैसे तो यह परंपराएं सदियों से चली आ रही है जिनके बारे में आज हम आपको कुछ विशेष बाते बताने वाले हैं। यूं तो कहते हैं कि ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए मन में सच्ची भक्ति होनी चाहिए, फिर भी हमारा मन कई बार पूजा-पाठ के सही या गलत विधि-विधानों में उलझ जाता है।

पूजा करने से पहले नहीं बोंले ये खास मंत्र, तो समझें व्यर्थ है आपकी पूजा

लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दे पूजा-अर्चना करते समय मनुष्य में एक विशेष प्रकार की शक्ति का संचार प्रकाशित होता है। इसके माध्यम से मनुष्य प्रभु की कृपा को शीघ्राति पाने में सक्षम हो जाता है। जो लोग धर्म आदि में मानते हैं कि वह लोग रोजाना पूजा-पाठ, आरती व पूजा करते हैं, इसलिए उनके लिए यह जानना अति आवश्यक है कि वह किसी भी तरह की पूजा करने से पूर्व स्वस्ति वाचन आवश्य करें। यह पाठ मंगल कमना का पाठ माना जाता है।

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पूजा करने से पहले नहीं बोंले ये खास मंत्र, तो समझें व्यर्थ है आपकी पूजा

स्वास्ति वाचन का महत्व

हम सभी जो पूजा पाठ में विश्वास रखते हैं, प्रतिदिन आरती पूजा करते हैं उनके लिए यह जानना जरूरी है कि हर पूजन से पहले यह स्वस्ति वाचन  करना चाहिए। यह मंगल पाठ  सभी देवी-देवताओं को जाग्रत करता है।

स्वस्तिवाचन मंत्र

स्वस्तिवाचन मंत्र जगत के कल्याण के लिए, परिवार के कल्याण के लिए स्वयं के कल्याण के लिए, अत्यधिक शुभकारी है, इस मन्त्र के द्वारा ही हर स्थिति में अपनी भाषा में शुभ प्रार्थना करके ही  पूजा शुरू करना चाहिए।

स्वस्तिवाचन मंत्र

ऊं शांति सुशान्ति: सर्वारिष्ट शान्ति भवतु। ऊं लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम:। ऊं उमामहेश्वराभ्यां नम:। वाणी हिरण्यगर्भाभ्यां नम:। ऊं शचीपुरन्दराभ्यां नम:। ऊं मातापितृ चरण कमलभ्यो नम:। ऊं इष्टदेवाताभ्यो नम:। ऊं कुलदेवताभ्यो नम:।ऊं ग्रामदेवताभ्यो नम:। ऊं स्थान देवताभ्यो नम:।

ऊं वास्तुदेवताभ्यो नम:। ऊं सर्वे देवेभ्यो नम:। ऊं सर्वेभ्यो ब्राह्मणोभ्यो नम:। ऊं सिद्धि बुद्धि सहिताय श्रीमन्यहा गणाधिपतये नम:।ऊं स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु ॥ ऊं शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

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