Shiv Tandav Stotram | जानें शिव तांडव स्त्रोत का क्या है अर्थ
Shiv Tandav Stotram | रावण और कुबेर ऋषि विश्रवा के पुत्र थे, दोनों का व्यवहार एक-दूसरे से बिल्कुल अलग था, रावण चारों वेदों का ज्ञाता होने के साथ अहंकारी भी था और रावण को ये लगता था कि वो अपनी ताकत के बल पर किसी भी चीज को हासिल कर सकता हैं। ऋषि विश्रवा ने सोने की लंका कुबेर को दे दी थी लेकिन कुबेर का मन सोने की लंका में नहीं लगा और उन्होंने सब कुछ त्याग दिया। जिसके बाद लंका का राजा रावण बन गया, बाद में रावण ने कुबेर के नगर और पुष्पक विमान पर भी आधिपत्य कर लिया।
Shiv Tandav Stotram की कैसे हुई रचना
एक बार रावण पुष्पक विमान से सैर कर रहा था कि एक पर्वत के पास पहुँचने के बाद पुष्पक विमान की गति कम हो गई जिसकी वजह से रावण को बहुत आश्चर्य हुआ कि आखिर कैसे पुष्पक विमान की गति कम हो गई। उन्हें नंदीश्वर ने बताया कि यहां भगवान शिव का वास हैं और वो ध्यान में व्यस्त हैं इसलिए यहां से चले जाओ, लेकिन रावण नहीं माना और उसने उस पर्वत को उठाने की चेष्टा करी।
जैसे ही रावण ने पर्वत की नींव पर हाथ रखा तब भगवान शंकर ने पैर के अंगूठे से रावण को पर्वत समेत दबा दिया जिसमें रावण का हाथ दब गया। बहुत बार कोशिश करने के बाद भी रावण मुक्त नहीं हो सका तब उसके मंत्रियों ने उसे शिव भगवान की महिमा करने को कहा।
रावण ने भयंकर दर्द से जूझते हुए भगवान शिव की स्तुति करने के लिए शिव तांडव स्त्रोत (Shiv Tandav Stotram) की रचना की जिसके बाद भगवान शिव रावण से प्रसन्न हुए और रावण के ऊपर से अपना अंगूठा हटा दिया। आज के इस लेख में हम आपको संस्कृत भाषा मे रचयित शिव तांडव स्त्रोत और शिव तांडव स्त्रोत का हिंदी में अर्थ बताने जा रहे हैं।
Shiv Tandav Stotram Lyrics और हिंदी में अर्थ
जटाटवीग लज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डम न्निनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम
वो शिवजी जिन्होंने अपनी जटाओं से निकलती हुई पवित्र गंगा के जल से पवित्र होते हुए गले में सांपों की लटकती हुई माला को धारण करने के साथ अपने डमरू के डम डम शब्दो के उच्चारण से प्रचंड तांडव नृत्य किया हैं, ऐसे शिव शंकर हमारा कल्याण करें।
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं
वो शिव जिनका मस्तिष्क अलौकिक नदी गंगा की बहती हुई लहरों से सुसज्जित हैं, वो नदी उनकी जटाओं की।गहराइयों में उमड़ रही हैं, जिनके सिर पर चन्द्र विराजते हैं ऐसे शिव में मेरी गहरी रुचि हैं।
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धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि
मां पार्वती के शिरोभूषण से सभी दिशाओं को प्रकाशमान होते हुए देखकर मेरा मन आनंदित हो रहा हैं, इनकी कृपा से मुश्किल से भी मुश्किल कार्य भी बेहद सरल हो जाता हैं ऐसे प्रभु में मेरा मन आनंद को प्राप्त करे।
जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि
शिव जिनकी जटाओं में वास करने वाले सांपो की मणियों को फैलता हुआ प्रभापुंज दिशा रूपी स्त्रियों के मुख पर कुमकुम का लेप कर रहा हैं और मतवाले गज के हिलते चमड़े के वस्त्र को धारण करने से वर्ण हुए भगवान भूतनाथ में मेरा मन अदभुत आनंद की प्राप्ति करे।
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः
वो महादेव जिनके चरण पादुकाएं इंद्र आदि देवताओं के द्वारा नमन करने से उनके मस्तिष्क पर सुसिज्जत फूलों के कुसुम से धूसरित हो रही हैं, नागराज की माला से बंधी हुई जटाओं वाले भगवान चंद्रशेखर मुझे चिरस्थाई संपति देने वाले हो।
Shiv Tandav Stotram Lyrics और हिंदी में अर्थ
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ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम् ।
सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः
वो शिव जिनकी प्रज्वलित हुई अग्नि के प्रभाव से वो कामदेव नष्ट हो गए थे जिन्हें इंद्र ने नमस्कार किया था, चंद्रमा की कला से सुसिज्जत मुकुट वाला वे उन्नत विशाल ललाट वाला जटिल मस्तक हमें सुख संपति प्रदान करने वाला हो।
कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम
वही शिव जिन्होंने जलती हुई प्रचंड अग्नि में कामदेव को भस्म किया था, गिरिराज किशोरी जो पर्वतराज की पुत्री हैं उनके स्तन की नोक पर सजावटी रेखाएं खिंचने में निपुण हैं।
नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः
वो भोलेनाथ जो पूरी दुनिया का भार उठाते हैं वो शिव हमे संपन्नता प्रदान करे, उस शिव की शोभा चंद्रमा हैं उनके पास पवित्र गंगा हैं उनकी गर्दन बादलों की परतों से ढकी हुई अमावस्या की मध्यरात्रि की तरह हैं।
प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे
मैं उस भगवान शिव को नमन करता हूं जिनका कंठ मंदिरों की चमक से बंधा हुआ हैं, वो नीले कमल की फूलों की गरिमा से लटकता हुआ दिखाई देता हैं, आप कामदेव को मारने वाले हैं, आपने ही त्रिपुर का नाश किया था, बलि का अंत किया, उस अंधक दैत्य का विनाश किया जिसने हाथियों को मारा था।
अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् ।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे
मैं उस शिव शंकर की पूजा करता हूं जिनके हर तरफ मधु से भरी हुई मधुमक्खी विचरती रहती हैं, आप कामदेव, त्रिपुर, भव, दक्षयज्ञ, हाथी, अंधकासुर और यम का अंत करने वाले हैं आपको में भजता हूं।
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः
उन भगवान शिव की जय हो जिनके मस्तक पर बहुत ही वेग के साथ घूम रहे सर्पों के फुंकार करने से ललाट की भयंकर अग्नि फैल रही हैं, धीरे-धीरे बज रहे मृदंग के मंगल स्वर के साथ प्रचंड तांडव कर रहे हैं।
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे
पत्थर या सुंदर बिछोने में, मोतियो और सर्प की माला में, बेशकीमती रत्न और मिट्टी के ढेले में, शत्रु या मित्र पक्ष में, तिनका या कमल के जैसे आंखों वाली युवती में, प्रजा और पृथ्वी के राजाओं में समान भाव रखते हुए मैं उन शिव को कब भजूँगा?
कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्
अति सुंदर वाले भगवान चंद्रशेखर को अपने मन मे एकाग्रचित्त करके अपने बुरे विचारों को त्यागकर गंगाजी के तटवर्ती वन के भीतर रहता हुआ सिर पर हाथ जोड़कर डबडबाई हुई आंखों से शिव मंत्र का उच्चारण करते हुए मैं कब सुख को हासिल करूंगा।
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम
जो व्यक्ति इस स्त्रोत का नियमित रूप से पाठ करेगा वह हमेशा शुद्ध रहेगा और भगवान शिव की भक्ति को हासिल कर लेगा, वो कभी भी विरुद्ध गति को प्राप्त नहीं करेगा क्योंकि भगवान शिव का चिंतन ध्यान मोह का नाश करने वाला हैं।
पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः
संध्या के समय पूजन के बाद रावण के द्वारा रचयित इस शिव तांडव स्त्रोत का जो पाठ करता हैं भगवान शिव उस मनुष्य को रथ, हाथी, अश्व से युक्त हमेशा स्थिर रहने वाली संपति प्रदान कीजिए।