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सावन का महत्व, पूजा विधि, कथा और शिवरात्रि पर जल चढ़ाने का शुभ समय

सावन का महत्व, पूजा विधि, कथा और शिवरात्रि पर जल चढ़ाने का शुभ समय

17 जुलाई 2019 से सावन माह की शुरुआत हो रही हैं और यह महिना भगवान शिव को समर्पित हैं| ऐसा माना जाता हैं कि इस महीने में भगवान शिव पृथ्वी पर भ्रमण करते हैं और इस महीने में भोलेनाथ को रुद्राभिषेक करने से जीवन में आने वाली तमाम समस्याओं से छुटकारा मिलता हैं| इतना ही नहीं सावन के महीने में पड़ने वाले सोमवार का बहुत महत्व हैं, लोग इस दिन विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और ऐसा भी माना जाता हैं कि यदि कुंवारी लड़कियां सावन के सोमवार का व्रत रखती हैं तो उन्हें मनचाहा वर प्राप्त होता हैं| ऐसे में आइए सावन माह के महत्व, पूजा विधि, कथा और शिवरात्रि पर जल चढ़ाने के शुभ समय के बारे में जानते हैं|

सावन का महत्व, पूजा विधि, कथा और शिवरात्रि पर जल चढ़ाने का शुभ समय

सावन माह की तिथि और शिवरात्रि पर जल चढ़ाने का शुभ समय

सावन महीने की शुरुआत 17 जुलाई से हो रही हैं और शिवरात्रि पर जल चढ़ाने का शुभ समय 9 बजे से शुरू होकर दोपहर 2 बजे तक का हैं|

पूजा विधि

सावन के महीने में पूजा करने के लिए सुबह जल्दी उठे, नित्य कर्म के पश्चात स्नान करे और साफ-सुथरे वस्त्र धारण करे| अब शिवमंदिर जाए और वहाँ जाकर भगवान शिव को सफ़ेद फूल, अक्षत्, भांग, धतूरा, सफेद चंदन चढ़ाएँ, अब भगवान शिव को तांबे के लोटे से जल चढ़ाएँ| जल चढ़ाने के पश्चात भगवान शिव की धूप-बत्ती और आरती करे, आरती करने के बाद आप वहीं कुछ देर के लिए बैठ जाए, बैठने के पश्चात आप शिव मंत्र और शिव चालीसा का पाठ करें|

महत्व

सावन के महीने में भगवान विष्णु निद्रा में चले जाते हैं, जिसके पश्चात भगवान शिव को पृथ्वी का कार्यभार संभालना पड़ता हैं| ऐसा मान्यता हैं कि जो भी व्यक्ति इस महीने में भगवान शिव की आराधना करता हैं वो हमेशा के लिए कष्टों से छुटकारा पा लेता हैं| इसके अलावा इस महीने में लोग कावड़ लेने जाते हैं और पवित्र नदियों का जल लाकर भगवान शिव की चढ़ाते हैं, सावन की शिवरात्रि पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता हैं, लोग रुद्राभिषेक करते हैं ताकि उन्हें अपने सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाए|

कथा

सावन का महत्व, पूजा विधि, कथा और शिवरात्रि पर जल चढ़ाने का शुभ समय

शिवपुराण के मुताबिक नारद मुनि ने भगवान शिव से पूछा कि आखिर उन्हें सावन माह क्यों प्रिय हैं तो भगवान शिव ने कहा कि देवी सती ने हर जन्म में उन्हें यानि भगवान शिव को पति के रूप में पाने का प्रण लिया था और इसके लिए वो अपने पिता के नाराजगी को भी सही , लेकिन एक बार पिता के द्वारा अपमान किए जाने पर उन्होने अपना शरीर त्याग दिया और फिर उन्होने देवी पार्वती के रूप में जन्म लिया और उन्होने मुझे पाने के लिए सावन माह का व्रत निराहार किया, उनकी इस समर्पण को देखकर भगवान शिव ने उनसे विवाह कर लिया|

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