जिस बलिदान बैच को लेकर मचा है इतना बवाल, इसे पाने के लिए खाने पड़ते हैं कांच
हाल ही में भारतीय क्रिकेट के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर बड़ी तेजी से वायरल हो गयी| इस तस्वीर में वो अपने ग्लव्स उतार रहे हैं और उनके ग्लव्स में पैरा-कमांडोज के ‘बलिदान’ का निशान बना हुआ हैं, जिसे आईसीसी ने हटाने को कहा हैं| लेकिन इस निशान को धोनी हटाने को राजी नहीं हैं| इतना ही नहीं बीसीसीआई प्रशासकों की समिति के चेयरमैन ने भी यह बात साफ कह दिया हैं कि धोनी को अपने ग्लव्स से इसे हटाने की कोई जरूरत नहीं हैं| ऐसे में सवाल उठता हैं कि आखिर यह बलिदान बैच हैं क्या और इसे धोनी हटाने को क्यों राजी नहीं हैं|
बता दें कि ‘बलिदान’ पैरा-कमांडोज फोर्स की निशानी हैं, जिसे पाने की चाह हर सैनिक को होती हैं| लेकिन इस बैच को हासिल करना इतना आसान नहीं होता है, इसे पाने के लिए सैनिको को कड़ी ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता हैं| पैरा-कमांडोज की ट्रेनिंग इतनी शख्त होती हैं कि इनकी ट्रेनिंग देखकर लोगों के होश तक उड़ जाते हैं| दरअसल पैरा-कमांडोज की पहचान सिर्फ सीने पर मेडल्स, गुलाबी टोपी, उस पर पैराशूट रेजीमेंट का निशान और सीने पर बलिदान बैच से नहीं हैं बल्कि इन्हें बिना हथियार के भी दुश्मनों के खात्मा करने के लिए जाना जाता हैं|
पैरा-कमांडोज की ट्रेनिंग के लिए सिर्फ भारतीय जवान ही अप्लाई कर सकते हैं| इसके लिए 3 महीने का प्रोबेशन पीरियड होता है, जिसमें उन्हें कई तरह के शारीरिक और मानसिक परीक्षण से गुजरना होता है, इस परीक्षण में ही बहुत सारे जवान छट जाते हैं और जो जवान इस प्रक्रिया मे पास होते हैं उन्हें यूपी के आगरा स्थित पैराट्रूपर्स ट्रेनिंग स्कूल में भेजा जाता हैं| पैराट्रूपर्स ट्रेनिंग स्कूल में जवानों को आसमान से कूदने की ट्रेनिंग दी जाती हैं, इस दौरान उन्हें पाँच बार आसमान से कूदना पड़ता हैं, इन पाँच बार में एक बार रात के समय आसमान से कूदना पड़ता हैं|
इस प्रक्रिया के बाद जो जवान पैरा स्पेशल फोर्सेज में जाना चाहते हैं उन्हें तीन महीने की ट्रेनिंग और करनी पड़ती हैं यानि की पैरा-कमांडोज फोर्स के लिए 6 महीने की ट्रेनिंग करनी पड़ती हैं| पैरा-कमांडोज फोर्स के तीन महीने की ट्रेनिंग सबसे खतरनाक तरीके से की जाती हैं| ट्रेनिंग के दौरान जवानों को सोने नहीं दिया जाता हैं, उन्हें भूखा रहना पड़ता हैं, अर्थात उन्हें पूरी तरह से मानसिक और शारीरिक यातनाए दी जाती हैं|
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ऐसे में बहुत सारे जवान ट्रेनिंग पूरी किए बिना ही चले जाते हैं| इतनी यातनाओं के बाद जवानों को गुलाबी टोपी और बलिदान का बैच प्रदान किया जाता हैं| दरअसल पैरा-कमांडोज फोर्स को ग्लास ईटर्स भी कहा जाता हैं| बता दें कि जब जवानों को गुलाबी टोपी दी जाती हैं तब उन्हें रम से भरा एक ग्लास दिया जाता हैं और रम को पीने के बाद ग्लास का थोड़ा सा भाग दांतों से काटकर अपने अंदर निगलना पड़ता हैं और इसके बाद ही जवानों के सिने पर बलिदान का बैच लगाया जाता हैं|