Mahashivratri 2020 : 6 दशक बाद महादेव की साधना के लिए बन रहा बेहद खास योग
महाशिवरात्रि पर्व सभी पर्वों में एक बड़ा पर्व है, उतर भारतीय पंचांग के अनुसार फागुन मास के कृष्ण पक्ष की चतदुर्शी को इस पर्व का आयोजन होता है। वहीं दक्षिण भारतीय पंचांग के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष कि चतदुर्शी को मनाया जाता है। सबसे खास बात ये है कि उतर भारतीय व दक्षिण भारतीय दोनों ही पंचांग के अनुसार एक ही दिन होती है। यही कारण है कि अंग्रेजी कैलडर में तारीख अलग रहती है, आइये जानते हैं इस वर्ष महाशिवरात्रि Mahashivratri 2020 का शुभ मुहूर्त और ख़ास योग कब रहेगा।
Mahashivratri 2020 : शुभ मुहूर्त
निशीथ काल पूजा मुहूर्त : 24:09:17 से 24:59:51 तक
अवधी : 0 घंटे 50 मिनट
पारणा मुहूर्त : 22 फरवरी को 06:54:45 से 15:26:25 तक
Mahashivratri 2020 : 59 साल बाद खास योग
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार महाशिवरात्रि पर इस बार 59 साल बाद शश योग रहेगा। पं.शर्मा का कहना है कि साधना की सिद्धी के लिए तीन सिद्ध रात्रियां विशषे मानी गई है। इनमे शरद पूर्णिमा को मोहरात्रि, दिपावली की कालरात्रि और महाशिवरात्रि को सिद्धी रात्रि कहा गया है। इस बार महाशिवरात्रि पर चंद्र शनि की मकर में युति के साथ पंच महापुर्षों का योग बन रहा है। आमतौर पर श्रवण नक्षत्र में आने वाली शिवरात्रि और मकर राशि के चंद्रमा का योग बनती है।
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लेकिन 59 साल बाद शनि के मकर राशी में होने से और चंद्र का संचार अनुक्रम में शनि के वर्गोत्तम अवस्था में शश योग का संयोग बन रहा है। चुंकि चंद्रमा मन तथा शनि ऊर्जा का कारक है। यह योग साधना के लिए विशषे महत्व रखता है। चंद्रमा को कला तथा शनि को काल पुरुष का पद प्राप्त है। ऐसी स्थिति में कला तथा काल पुरुष के युति संबंध वाली यह शिवरात्रि सिद्धी रात्रि में आती है।
पूजा और विधि
समर्थजनों को यह व्रत प्रातः काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यन्त तक करना चाहिए। रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की पूजा अर्चना करनी चाहिए। इस विधि से किए गए व्रत से जागरण पूजा उपवास तीनों पुण्य कर्मों का एक साथ पालन हो जाता है और भगवान शिव की विशेष अनुकम्पा प्राप्त होती है।
व्रत रखने वाले को फल, फूल, चंदन, बिल्व पत्र, धतूरा, धूप व दीप से रात के चारों प्रहर में शिवजी की पूजा करनी चाहिए साथ ही भोग भी लगाना चाहिए। दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अलग-अलग तथा सबको एक साथ मिलाकर पंचामृत से शिवलिंग को स्नान कराकर जल से अभिषेक करें। चारों प्रहर की पूजा में शिवपंचाक्षर मंत्र यानी ऊं नम: शिवाय का जाप करें। भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान, भीम और ईशान, इन आठ नामों से फूल अर्पित कर भगवान शिव की आरती और परिक्रमा करें।