दिव्यांग लड़की के पास नहीं थे फीस के लिए पैसे, इस इंस्पेक्टर ने एडमिशन फीस देकर पेश की मिसाल
वाराणसी स्थित बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी जो ना सिर्फ काशी की शान है बल्कि पूरे देश का अभिमान भी है, शायद ही ऐसा कोई छात्र-छात्रा हो जो इस प्रतिष्ठित संस्थान में नहीं पढ़ना चाहता हो। मगर यहाँ तक पहुँच पाना इतना भी आसान नहीं है, मगर कहते है ना जब हौसला बुलंद होता है तो इंसान भी आसमान तक पहुँच जाता है। कुछ ऐसा ही हौसला दिखाया बेतिया के पास के एक गांव की रहने वाली एक दिव्यांग लकड़ी प्रियंका ने और आ पहुंची इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में।
जानकारी के अनुसार 6 जुलाई को उसकी बीकॉम के लिए काउंसलिंग हो गई, पिछड़े वर्ग के विकलांग कोटे में और फिर 11 जुलाई को शाम उसे फोन आता है कि आज संस्थान मे एड्मिशन के लिए फीस जमा करने की आखरी तारीख है, वह भी शाम 6 बजे तक ही फीस जमा की जा सकेगी। अब गांव में ठीक से इंटरनेट भी नही चल पानी की वजह से वो उस दिन फीस नहीं जमा कर सकी मगर अगले ही दिन वो यूनिवर्सिटी पहुंच गई। यहां उसे यह बताया गया कि फीस जमा करने का लिंक संस्थान की वेबसाइट से हटा दिया गया है अब कुछ भी नहीं किया जा सकता है। प्रियंका ने कॉमर्स फैकल्टी से बात की, मगर वहां बैठे लोगों ने इनकार कर दिया।
बेहद निराश हो चुकी प्रियंका की वहां मौजूद कुछ स्टूडेंट्स और छात्रनेताओं ने मदद की और उसे यूनिवर्सिटी के बड़े अधिकारियों के पास ले गए। कुछ घंटों की मशक्कत के बाद बात बन ही गई, कॉमर्स के डीन ने विश्वविद्यालय की प्रवेश कमेटी के चेयरमैन की सहमति के बाद फीस जमा करवाने का पोर्टल दोबारा खुलवा दिया मगर अब यहाँ एक नयी समस्या उसका इंतजार कर रही थी। असल में बात ये थी की उस लड़की का एडमिशन आर्य महिला कॉलेज में हुआ था, जहां की फीस 21,000 रुपये थी जबकि प्रियंका सिर्फ 4000 रुपये लेकर आई थी।
कैसे हुआ एड्मिशन
ऐसा इसलिए क्योंकि उसे पता था कि कैंपस में बीकॉम की फीस 3600 रुपये है और 21,000 रुपये देने की उसकी हैसियत भी नहीं थी बेचारी फिर से निराश और रुआसी होकर बैठ गई। लेकिन तभी किसी चमत्कार की तरह भगवान के रूप मे उसकी मदद को एक बार फिर से किसी ने एंट्री मारी। भगवान रूपी इस इंसान का नाम था अशोक कुमार दुबे जो पेशे से जीआरपी कैंट के प्रभारी इंस्पेक्टर हैं।
असल में अशोक दुबे किसी कार्य से विश्वविद्यालय के अकादमिक कार्यालय आए थे और यहीं पर उनको निराश और हताश प्रियंका मिल गयी। जब उन्हे पूरे मामले का पता चला तो उन्होने वो कदम उठाया जिसकी शायद ही किसी ने कल्पना की होगी। अशोक ने बिना कुछ ज्यादा जाने-पूछे अपने पास से 21,000 रुपये निकाल कर उस लड़की को दे दिए और तुरंत ही उसकी फीस जमा करवाई। उसके घर वालों से भी बातचीत कर उसके लिए मनाया भी। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि उसका एडमिशन पक्का करवाने के बाद अशोक ने उस लड़की से आगे भी किसी भी तरह की मदद का आश्वासन दिया।
सच कहा जाए आज हमारे मानस पटल में पुलिस की एक घृणित छवि बन चुकी है की हम सपने मे भी नहीं सोच पाते हैं की कोई पुलिसकर्मी इस हद तक जा कर भी मदद कर सकता है। एचएम अक्सर ही देखते है की पुलिस कभी कहीं पर रिश्वत ले रही होती है तो कहीं ज़ोर जबर्दस्ती करती है, मगर अशोक कुमार दुबे जी ने पुलिस की छवि की एक अलग ही मिसाल पेश की है, जिसकी सराहना जो भी सुन रहा है दिल से कर रहा है। इससे यह भी पता चलता है की मानवता अभी भी जीवित है और वो ना सिर्फ फिल्मों और टीवी में ही है बल्कि हमारे आस-पास भी मौजूद है।