Ranchod Das Rabari: हिन्दुस्तानी शेर जो 1200 पाकिस्तानी सैनिकों पर अकेले पड़ा भारी
Ranchod Das Rabari | हाल में अजय देवगन और संजय दत्त अभिनीत फिल्म भुज-द प्राइड ऑफ इंडिया का ट्रेलर रिलीज किया गया है, इस फिल्म की पृष्ठभूमि गुजरात के भुज पर आधारित है। 1965 से लेकर 1971 के बीच भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युध्द में पाकिस्तान द्वारा भुज पर किये गए निरंतर हमलों पर ही ये फिल्म आधारित है, इस फिल्म में जहां अजय देवगन ने एयरफोर्स अधिकारी विजय कार्णिक का किरदार निभाया है तो वही संजय दत्त ने रणछोड़ दास रबारी की भूमिका निभाई है। दोनों ने ही भुज के युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी, आज हम आपको रणछोड़ दास के बारे में बताने जा रहे है कि किस बहादुरी के साथ उन्होंने देश की रक्षा करने हेतु अपने प्राण भी दांव पर लगा दिए थे।
Hero of Bhuj: कौन थे Ranchod Das Rabari
26 वर्ष की उम्र में शहीद हुए वायु सेना के एकमात्र परमवीर चक्र विजेता के साहस की अमर कहानी
रणछोड़ दास रबारी (Ranchod Das Rabari) का जन्म वर्ष 1901 में वर्तमान पाकिस्तान के गथडो गांव में हुआ था, जब देश आजाद हुआ तो इस हिस्से को पाकिस्तान के हवाले कर दिया गया था। रणछोड़ दास जो एक चरवाहे थे, उन्हें पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा खूब प्रताड़ित किया गया जिसकी वजह से वो गुजरात के बनासकांठा में आ गए और यही रहने लगे। भले ही रणछोड़ दास पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन उनके पास एक बेहद ही खास कला थी जिसे पगी कहा जाता है यानी वो इंसान जो किसी के भी पैरों को देखकर उसके बारे में जानकारी दे सकें।
कच्छ के रण में ऊंटों के पैरों के निशान को देखकर रणछोड़ दास ये बड़ी आसानी से बता देते थे कि जिस ऊंट के पैरों के निशान है उसके ऊपर कितना वजन लदा हुआ था, वो ऊंट किस दिशा से आया था और किस दिशा की तरफ गया है और वो ये भी बता सकते थे कि फिलहाल वो ऊंट किस जगह होगा। इसके अलावा रणछोड़ दास को कच्छ के रण में मौजूद बहुत से अंजान रास्तों की भी जानकारी थी।
Hero of Bhuj: जब 58 वर्ष की आयु में मिली सरकारी नौकरी
1959 में जब रणछोड़ दास (Ranchod Das Rabari) 58 वर्ष के थे तो बनासकांठा के एसपी बलवंत सिंह ने उन्हें सरकारी नौकरी पर रखा, उनका मुख्य कार्य पुलिस और बीएसएफ को कच्छ के रण में रास्ता दिखाना था। जब 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युध्द छिड़ा था तो 1200 पाकिस्तानी फौजियों ने कच्छ के रण में मौजूद पोस्ट पर हमला किया जिसका देश के सिपाहियों ने डटकर मुकाबला किया था लेकिन लगभग 100 सैनिक शहीद हो गए थे।
उस पोस्ट पर पाकिस्तानी सैनिकों ने पूरी तरह से कब्जा कर लिया था और हर जगह पाकिस्तान सैनिकों ने अपनी तोपों और मशीनगन की मदद से बुरी तरह मोर्चा खोल दिया था। इसके अलावा पाकिस्तानी फौज की एक बड़ी टुकड़ी कच्छ के रण में मौजूद पाकिस्तानी सैनिकों को मदद देने के लिए पाकिस्तान से निकल पड़ी थी और एक बार फिर कच्छ का बॉर्डर बिल्कुल असुरक्षित हो गया था।
जब आर्मी को पोस्ट तक ले कर आये Ranchod Das Rabari
सैम मानेकशॉ की जीवनी । Biography of Sam Manekshaw
जब पाकिस्तान की फौज की एक बड़ी टुकड़ी कच्छ की तरफ बढ़ रही थी तो उस समय इंडियन आर्मी ने अपने 10000 सैनिकों के दल को पाकिस्तानी सेना को रोकने के लिए भेजा था। उस दल को कच्छ के रण से होते हुए मात्र 3 दिन के अंदर झारकोट पोस्ट तक पहुंचना था लेकिन हर जगह पाकिस्तानी फौज की तैनाती और कच्छ का रण जहां दो किलोमीटर दूर से भी किसी को देख सकते थे वहां 10000 फौजियों को पोस्ट तक पहुंचना बहुत ही असंभव कार्य था।
फिर इस मुश्किल कार्य को करने की जिम्मेदारी रणछोड़ दास रबारी (Ranchod Das Rabari) को दी गई, रणछोड़ दास ने पाकिस्तानी फौज के पैरों के निशान और पक्षियों की हरकतों से इस बात का पता लगाया कि पाकिस्तानी फौज ने किस-किस जगह पर अपने मोर्चे लगाये हुए है। उन्होंने रात के अंधेरे में और दिन में कच्छ के रण के अंजान रास्तों से भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना से बचाते हुए मात्र ढाई दिनों में ही झारकोट पोस्ट तक पहुंचा दिया।
1965 और 1971 के युद्ध में निभाई अहम भूमिका
उसके बाद उन्होने पाकिस्तानी फौज की पूरी जानकारी जैसे कि कौन सी जगह पर कितने पाकिस्तानी फौजी तैनात है, की पूरी जानकारी भारतीय सेना को दी थी। जब भारतीय सेना ने रणछोड़ दास के द्वारा बताई गई जानकारी के अनुसार पाकिस्तानी सेना पर हमला किया तो बहुत से पाकिस्तानी फौजी मारे गए और काफी गिरफ्तार किये गए और इस तरह 1965 के युद्ध में पाकिस्तान की बुरी तरह हार हुई थी। रणछोड़ दास के अदम्य साहस और योगदान की वजह से उन्हें राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया था।
1965 युध्द के ठीक 6 साल बाद 1971 में एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई छिड़ गई, 70 वर्ष के रणछोड़ दास ने अपने ऊंट पर सवार होकर बनासकांठा से पाकिस्तान पहुंच गए। जहां उन्होंने अपनी जान की परवाह किये बिना दिन-रात एक करते हुए पाकिस्तानी फौज की पूरी जानकारी एकत्रित करके इंडियन आर्मी को दी और उन्ही की जानकारी के आधार पर ही कच्छ के रण में भारतीय सेना द्वारा युध्द की रणनीति तैयार की गई।
1971 में भी बुरी तरह हार गया था पाकिस्तान
रणछोड़ दास (Ranchod Das Rabari) के द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर ही भारतीय सेना ने कच्छ के रण में अपनी युध्दनीति बनाई और फिर दोनों देशों के बीच में जब जंग जारी थी तो एक ऐसा भी समय आया था जब भारतीय फौज के पास गोला-बारूद खत्म होने लगा था। उस समय रणछोड़ दास ने अपनी जान की बिल्कुल भी परवाह ना करते हुए ऊंट पर भारतीय सैनिकों के लिए गोला और बारूद लेकर आए। आखिरकार भारतीय फौज के अदम्य साहस की बदौलत 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने 93000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया था और ये भी पाकिस्तान के लिए एक बेहद ही बुरी हार थी।
वीरता के लिए रणछोड़ दास को मिले बहुत से पदक
1965 और 1971 की जंग में बहुत बड़ी भूमिका निभाने वाले रणछोड़ दास (Ranchod Das Rabari) से सेना प्रमुख सैम मानेकशॉ बहुत प्रभावित थे, रणछोड़ दास को 3 राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया जिसमें संग्राम पदक, पुलिस पदक और समाज सेवा पदक शामिल थे। जुलाई 2009 में रणछोड़ दास रबारी ने स्वेच्छिक रिटायरमेंट ले लिया था और 112 वर्ष की आयु में 19 जनवरी 2013 को निधन हो गया था।
रणछोड़ दास (Ranchod Das Rabari) की याद में कच्छ के एक गांव में बीएसएफ की एक पोस्ट का नाम रणछोड़ दास पगी पोस्ट रखा गया, इसके साथ ही उनकी एक प्रतिमा भी लगाई गई है। रणछोड़ दास ने अपने महान कार्य से ये साबित कर दिया कि अगर आपके अंदर देश सेवा का जज्बा हो तो ना उसके आगे आपकी उम्र आड़े आती है और ना ही सेना में भर्ती होने की जरूरत होती है।