Time के कवर पेज पर छाई भारतीय पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी मानसी जोशी, ऐसे हासिल किया मुकाम
किचन से निकलकर आज महिलाएं अंतरिक्ष तक पहुँच चुकीं हैं और शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र बचा होगा जहाँ महिलाओं ने अपनी काबिलियत साबित कर अपने नाम का अपने वर्चस्व का डंका ना बजाया हो। आज विज्ञान से लेकर क्रिकेट का मैदान या एथलीट का स्टेडियम हो महिलाएं हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रहीं है। लेकिन, आज हम आपको एक ऐसी महिला के हौसले और जुनून की कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिससे सुनने के बाद ना सिर्फ आपकी आंखों में आंसू भर आयेंगे बल्कि खुद आपके अन्दर भी एक जोश भर देगी। हम बात कर रहे हैं वर्ल्ड चैंपियन, पैरा बैडमिटन खिलाडी मानसी जोशी की, जिनके हौसले को देखते हुए हाल ही में अमेरिका की प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन ने अपने कवर पेज पर उन्हें जगह दी है।
टाइम पत्रिका के कवर पेज पर मानसी जोशी
यह वाकई में एक गर्व करने वाला पल होता है जब आप दुनिया की प्रतिष्ठित पत्रिका पर जगह बनाते हैं, इस मौके पर खुशी जाहिर करते हुए मानसी ने कहा, ‘टाइम एशिया 2020 के कवर पेज पर आना और टाइम 2020 नेक्सट जनरेशन लीडर का हिस्सा बनना मेरे लिए सम्मान की बात है। मुझे विश्वास है कि मुझे टाइम एशिया के कवर पेज पर देखने के बाद भारत में काफी लोगों की धारणाएं बदल जाएंगी। मुझे खेल के कारण अपनी पहचान बनाने की खुशी है। मैं खुशकिस्मत हूं कि मैं इसका इस्तेमाल प्रोस्थेटिक्स, सड़क सुरक्षा, दिव्यांगता और समावेश के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए कर रही हूं।’
सड़क हादसे में खोया पैर
महाराष्ट्र की रहने वाली 31 वर्षीय मानसी बेहद कम उम्र में ही एक हादसे का शिकार हो गयीं थी जिसमे उन्होंने अपने पैर खो दिए। ऑपरेशन थिएटर में 12 घंटे रहीं, पैर काट दिया गया, 50 दिन अस्पताल में बिताये, मगर फिर भी उनका हौसला नहीं टूटा। बेशक हादसे की वजह से उनके पैर उनसे छिन गए लेकिन उनकी हिम्मत और जूनून को उनसे कोई नहीं छीन पाया। अस्पताल से बाहर के बाद ही मानसी ने उसी पल ठान लिया था कि वह अपनी इस लाचारी को अपनी कमजोरी नहीं बनने देगी और आज उनका जूनून और हिम्मत साड़ी दुनिया के सामने है और वो दुनियाभर के लिए एक मिसाल बन चुकी हैं।
बचपन से ही थी बेडमिंटन में रुचि
बता दें कि मानसी को बचपन से ही बैडमिंटन में काफी दिलचस्पी थी और पढ़ाई के दौरान उन्होंने जिला स्तर पर बैडमिंटन कॉम्पिटिशन में हिस्सा भी लिया था। मानसी के पिता भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में काम करते थे। हादसे के बाद जब वो हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हुई तो उसके बाद उन्होंने इलेक्ट्रिॉनिक इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और इसके साथ-साथ बेडमिंटन खेलना भी जारी रखा। जी हाँ, पैर गवां देने के बावजूद उन्होंने यह खेल जारी रखा और इसके लिए उन्होंने पुलेला गोपीचंद अकादमी से ट्रेनिंग ली।
मानसी की उपलब्धियां
बात की जाए मानसी की उपलब्धियों कि तो हादसे के 4 महीने बाद कृत्रिम पैर लगाकर मानसी एक बार फिर से मैदान पर उतरी थीं। उनकी इस सफलता में उन्हें परिवार का पूरा समर्थन मिला और इस सपोर्ट के बदौलत मानसी ने वर्ष 2014 तक इस खेल में खुद को एक्सपर्ट कर लिया। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मानसी भारत के लिए खेलते हुए पैरा ओलंपिक्स में कुल 12 पदक जीत चुकी हैं।
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2015 : मिश्रित युगल में पदक, पैरा-बैडमिंटन विश्व चैंपियनशिप
2016 : महिला एकल और महिला युगल में कांस्य, पैरा-बैडमिंटन एशियाई चैंपियनशिप
2017 : महिला एकल में कांस्य, पैरा-बैडमिंटन विश्व चैंपियनशिप
2018 : महिला एकल में कांस्य, थाईलैंड पैरा-बैडमिंटन इंटरनेशनल
2018 : महिला एकल में कांस्य, एशियाई पैरा गेम्स 2018
2019 : महिला एकल में स्वर्ण, पैरा-बैडमिंटन विश्व चैम्पियनशिप, बेसल, स्विट्जरलैंड