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45 वर्षों के बाद भी फिल्म ‘शोले’ की इन गलतियों को नहीं पकड़ पाए आप | 10 Funny Mistake of Sholay

Youthtrend Bollywood Gossips Desk : आज से ठीक 45 साल पहले बड़े पर्दे पर एक फिल्म रिलीज हुई थी जिसने बहुत ज्यादा सफलता हासिल की थी, हम बात कर रहें हैं रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित फिल्म ‘शोले’ की, 15 अगस्त 1975 को शोले की फिल्म पूरे देश में एक साथ रिलीज हुई थी, इस फिल्म में वो सब कुछ था जो किसी भी हिंदी फिल्म को हिट करवाने के लिए काफी था। फिल्म में एक्शन, ड्रामा, ट्रेजेडी, रोमांस सब कुछ था, इसके अलावा ये फिल्म अपने समय की सबसे महंगी फिल्म थी, पर कहते हैं ना कि बहुत ज्यादा सावधानी रखते हुए भी कोई-ना-कोई चूक हो ही जाती हैं ऐसा ही कुछ था शोले के साथ भी। वैसे तो आप ने भी शोले फिल्म देखी होगी पर क्या आपने भी वो गलतियां पकड़ी जो आज हम आपको बताने जा रहें हैं।

फिल्म ‘शोले’ में हुई थी ये गलतियां

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याद कीजिये शोले का वो दृश्य जब वीरू बने धर्मेंद्र बसंती की बुआ को बसंती से शादी करने के लिए ब्लैकमेल करते हैं लेकिन फिल्म के अन्य दृश्य में जया भादुड़ी शाम के समय अंधेरे की वजह से लालटेन जलाती हैं अब आप सोचिए अगर गांव में बिजली ही नहीं थी तो पानी की टँकी में पानी कैसे भरता होगा ।

याद कीजिये जब बसंती डाकू से पीछा छुड़वाकर जा रही होती हैं तो वो लकड़ी से बने पुल को तोड़ देती हैं जिसके कारण डाकुओं को अपना रास्ता बदल लेना पड़ता हैं, लेकिन जब वापसी में जय-वीरू बसंती को बचा कर ला रहें होते हैं तो पुल बिल्कुल से ठीक मिलता हैं।

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फिल्म के एक दृश्य में जय-वीरू जेल में बंद होते हैं तो वो जेल तोड़कर भागने की योजना बना रहें होते हैं तो नाई की भूमिका निभाने वाले केश्टो मुखर्जी चुपके से जब उन दोनों की बात सुनते हैं तो उस समय घड़ी में 3 बज रहें थे लेकिन जब दोनों जेलर से मिलने जाते हैं तो उस समय भी 3 बज रहें थे।

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डाकू गब्बर सिंह जब अपने तीन साथियों को गोली मारते हैं तो उस समय वो तीनों गब्बर के सामने होते हैं लेकिन गब्बर की गोली उन्हें पीठ पर लगती हैं।

जब बसंती मंदिर जाकर भगवान से मन्नत मांगती हैं तो उस समय वो घर से पैदल ही आई होती हैं लेकिन जब मंदिर से बसंती बाहर आती हैं तो उसका तांगा मंदिर के बाहर खड़ा होता हैं।

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जब अंतिम दृश्य में जय पुल पर आता हैं तो उसके हाथ खुले होते हैं लेकिन जैसे ही जय वीरू की बाहों में मर जाता हैं तो उसके हाथों में से वीरू को वहीं सिक्का मिलता हैं जो पूरी फिल्म में दिखाया जाता हैं, सोचने वाली बात तो ये थी कि सिक्का कहा से आया।

जब गब्बर ठाकुर के पूरे परिवार को मार देता हैं तो ठाकुर अपने गांव लौटता हैं तो सबके शव कफन से लिपटे हुए होते हैं जैसे ही ठाकुर बच्चें के शव से कफन हटाने वाला ही था कि तभी तेज हवा से कफन उड़ जाता हैं दिलचस्प बात ये हैं कि अगले दृश्य में जब गब्बर सिंह ठाकुर को मारने आता हैं तो कफन हवा की जगह शव पर होता हैं।

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जरा याद कीजिए जब ठाकुर के पूरे परिवार को गब्बर सिंह खत्म हो जाता हैं तो गांव से गब्बर को मारने के लिए ठाकुर काले रंग के घोड़े पर जाता हैं लेकिन घोड़े का रंग रास्ते में ही भूरा रंग हो जाता हैं।

फिल्म के अंत में जब ठाकुर गब्बर को मारता हैं तो ठाकुर के कुर्ते की बाजुओं से ठाकुर के हाथ दिख जाते हैं।

गब्बर सिंह और उसकी टोली से लड़ते हुए जब जय गिरते हुए बंदूक चलाता हैं तो उससे एक गोली चलती हैं लेकिन उससे दो डाकू एक साथ मर जाते हैं।

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