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बेहद ही दिलचस्प है शिव की नगरी में बसे भारत माता मंदिर का इतिहास, आप भी जानिए

बेहद ही दिलचस्प है शिव की नगरी में बसे भारत माता मंदिर का इतिहास, आप भी जानिए

देवाधिदेव महादेव के त्रिशूल पर स्थित काशी को मन्दिरों का नगर होने का गौरव प्राप्त है। यहां देवी-देवताओं के अनेक मन्दिर हैं, इन मन्दिरों के बीच इस प्राचीन महानगर में एक ऐसा भी अद्वितीय मन्दिर है, जिसमें किसी देवी-देवता की प्रतिमा की जगह राष्ट्र का भौगोलिकीय लघु प्रतिरूप मूर्तिमान रूप में विराजित है। जी हाँ हम बात कर रहे हैं ‘भारत माता मंदिर’ की। ‘राष्ट्रदेवता‘ का यह मन्दिर आजादी के योद्धाओं के लिए चर्चित विश्वविद्यालय ‘महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ’ के परिसर में चित्रकला विभाग के समीप स्थित है। “भारत माता” का सुप्रसिद्ध मंदिर उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी जिले मे भगवान शिव की नगरी काशी मे स्थित है।

बेहद ही दिलचस्प है शिव की नगरी में बसे भारत माता मंदिर का इतिहास, आप भी जानिए

आप भी जानिए भारत माता मंदिर का इतिहास

बात करें भारत माता मंदिर के संस्थापक की तो आपको बताते चलें की काशी के चर्चित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं काशी विद्यापीठ के संस्थापक स्व. बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने इस मंदिर की स्थापना की थी। इस मन्दिर की स्थापना के विषय में बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने एक विज्ञप्ति उस समय जारी की थी, जिसमें लिखा है, “इसका निर्माण कार्य सम्वत्‌ १९७५ तद्नुसार वर्ष (१९१८ ई.) में प्रारंभ हुआ और ५-६ वर्ष में पूरा भी हो गया। यहां स्थापित भारतमाता की मूर्ति का शिलान्यास २ अप्रैल १९२३ को श्री भगवानदास के करकमलों से हुआ था।यहां किसी भी देवी-देवता की प्रतिमा स्थापित नहीं है, केवल भारत का भू मानचित्र है, जो संगेमरमर के टुकड़ों पर उकेरा गया है।”

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सतह पर सफेद और काले संगमरमर पत्थरों से बनी सम्पूर्ण भारतवर्ष की भौगोलिक स्थिति को दर्शाती मां भारती की यह मूर्ति, पवित्र भारतभूमि की सम्पूर्ण भौगोलिक स्थितियों को आनुपातिक रूप में प्रकट करती है। पूरब से पश्चिम ३२ फुट २ इंच तथा उत्तर से दक्षिण ३० फुट २ इंच के पटल पर बनी मां भारती की इस प्रतिमूर्ति के रूप के लिए ७६२ चौकोर ग्यारह इंच वर्ग के मकराने के सफेद और काले संगमरमर के घनाकार टुकड़ों को जोड़कर भारत महादेश के इस भूगोलीय आकार को मूर्तिरूप प्रदान किया गया है। मां भारती की इस पटलीय मूर्ति के माध्यम से भारत राष्ट्र को पूर्व से पश्चिम तक २३९३ मील तथा उत्तर से दक्षिण तक २३१६ मील के चौकोर भूखण्ड पर फैला दिखाया गया है।
इस मूर्ति पटल में हिमालय सहित जिन ४५० पर्वत चोटियों को दिखाया गया है उनकी ऊंचाई पैमाने के अनुसार १ इंच से २००० फीट की ऊंचाई को दर्शाती है।

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यदि आप ध्यान से देखेंगे तो आप पाएंगे की भारत माता मंदिर में छोटी-बड़ी आठ सौ नदियों को उनके उद्गम स्थल से लेकर अन्तिम छोर तक दिखाया गया है। इस मूर्ति पटल पर भारत के लगभग समस्त प्रमुख पर्वत, पहाड़ियों, झीलों, नहरों और प्रान्तों के नामों को अंकित किया गया है। लगभग ४५०० वर्ग फुट क्षेत्र में तीन फीट ऊंचे एक विशाल चबूतरे पर यह मन्दिर बना है। भारत माता के इस मन्दिर के मध्य भाग में स्थापित भारत के विभिन्न भौगोलिक उपादानों के रूप में पर्वत, पठार, नदी और समुद्र के सजीव निर्माण के लिए संगमरमर के पत्थरों को जिस कलात्मक ढंग से तराश कर भारत के भौगोलिक भू-परिवेश का यथार्थ प्रतिरूपांकन किया गया है, वह भारत में पत्थर पर कलाकृति निर्माण कार्य में प्राचीन काल से चली आ रही कला और तकनीकी पक्ष को उजागर करती है। वास्तव में राष्ट्रभाव की अनुप्रेरक मां भारती के इस मन्दिर के निर्माण में कला, शिल्प और तकनीकी ज्ञान का उत्कृष्ट समन्वय हुआ है। भारत माता मंदिर की दीवार पर बंकिमचन्द्र चटर्जी जी की कविता ‘वनडे मातरम’ लिखी गई और उद्घाटन के समय सभा स्थल पर मैथिलिशरण गुप्त जी की कविता लिखी गई,यह कविताऐ। बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने इस मानचित्र को जननी जन्मभूमि के रूप में प्रतिष्ठा दी।

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1936 ई मे महात्मा गांधी जी ने पहली बार इस मंदिर का अवलोकन किया और कहा, “यह मंदिर सभी जाति, धर्म, वर्ग के लिए है इसमे किसी भी देवी-देवता की मूर्ति नही है जिससे कि यह मंदिर लोगो के लिए एकता, भाईचारा,शांति व खुशहाली का प्रतीक बनेगा”। इसके अलावा आपको ये भी बता दें की भारत माता मंदिर के जमीन की समुद्र तल से गहराई और ऊंचाई को ध्यान में रखते हुए संगमरमर बहुत ही सावधानी से तराशे गए हैं। मानचित्र को मापने के लिए धरातल का मान एक इंच बराबर 6.4 मिल जबकि ऊंचाई एक इंच में दो हज़ार फिट दिखाई गई है। एवरेस्ट की ऊंचाई दिखाने के लिए पौने 15 इंच ऊंचा संगमरमर का टुकड़े का इस्तेमाल किया गया है। इस मानचित्र में हिमालय समेत 450 चोटियां, 800 छोटी व बड़ी नदियां उकेरी गई हैं। तो वहीं बड़े शहर और सुप्रसिद्ध तीर्थ स्थल भी भौगोलिक स्थिति के मुताबिक दर्शाए गए हैं।

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