रोचक तथ्य: इस कारण समुंद्र में नहीं डूबते थे रामसेतु के पत्थर, दुनिया मानती रही इसे चमत्कार
आज हम आपको रामसेतु पुल के महत्व के बारे में बताने वाले है। रामायण के अनुसार ये एक ऐसा पुल है जिसको भगवान विष्णु के सातवे एवं हिंदू धर्म में विष्णु के अवतार श्री राम जी की वानर सेना द्वारा हमारे देश भारत के दक्षिणी भाग रामेश्वरम पर बनाया गया था। इसका दूसरा किनारा श्रीलंका के मन्नार तक जुड़ा हुआ है।
ऐसा माना गया है की इस पुल को बनाने में जिन पत्थरो को इस्तेमाल बिया गया था उन पत्थरो को पानी में फैकने के बाद भी समुन्द्र में नहीं डूबे। वे पत्थर पानी की सतह पर ही तैरते रह गए। ऐसा क्या हुआ था कि ये पत्थर पानी में डूबे नहीं ? कुछ लोग तो इसको भगवान का चमत्कार मानते है। इन पत्थरो पर भगवान श्रीराम का नाम लिखा गया था। इस पत्थरो से ही लंका तक पहुंचने के लिए पुल का निर्माण हुआ था
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रामसेतु को पुरे विश्व में “एडेम्स ब्रिज” के नाम से जानते हैं। जब रावण, भगवान श्री राम की पत्नी माता सीता को हरण कर उनको अपने साथ लंका लेकर चला गया था, तब ही भगवान श्रीराम ने वानरों की मदद से समुन्द्र से पुल निर्माण का रास्ता बनाया। इसी को आगे आने वाले समय में रामसेतु कहा गया। इस पुल की लंबाई 30 किलोमीटर तथा चौड़ाई 3 किलोमीटर थी।
ज्वालामुखी के लावा से उतपन्न इन पत्थरो में कई सारे छिद्र होते है। इन छिद्रो की वजह से ही यह पत्थर स्पॉजी आकर का हो जाता है। इसी वजह से इन पत्थरो का वजन काफी कम रहता है और पानी में जाने के बाद यह तैरने लगते है। ये पत्थर कुछ खास प्रकार के होते है इनका नाम “प्यूमाइस स्टोन” है। वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि ये सही है कि प्यूमाइस स्टोन पानी में तैरते रहते हैं। लेकिन उनका मानना ये भी है की रामेश्वरम में दूर-दूर तक ज्वालामुखी नहीं पाया गया है।