आखिर क्यों किया था भगवान शिव ने श्रीकृष्ण के प्रिय मित्र सुदामा का वध, इसके पीछे छिपा है बेहद ही बड़ा रहस्य
कहा गया है कि पाप का प्रतिकार सदैव होता है फिर चाहे वो पापी भगवान का ही मित्र क्यों ना हो! ऐसा ही एक वकतव्य हमारे द्वापर युग से जुडा हुआ है। बात उस समय की है जब श्रीकृष्ण और सुदामा अपनी मित्रता की वजह से जाने जाते थे। कृष्ण के हृदय में अपनी एक अलग ही छवि बनाने वाले शांत व सरल स्वभाव के सुदामा को दुनिया मित्रता के प्रतिरूप के रूप में याद करती है, लेकिन इनका एक रूप ऐसा भी था जिसकी वजह से भगवान शिव ने उनका वध किया था। इस तथ्य पर विश्वास करना कठिन है परंतु यदि हम शास्त्रों की मानें तो यह कटु सत्य उभर कर सामने आता है।
आईये जानते हैं ‘सुदामा’ के उस कुकर्म के बारे में जिस कारण भगवान शिव को विवश होकर उनका वध करना पड़ा
बात उस समय की है जब गोलोक में सुदामा और विराजा निवास करते थे। विराजा को कृष्ण से प्रेम था किंतु सुदामा स्वयं विराजा से प्रेम था। राधा जी ने किसी कारणवश विराजा और सुदामा को गोलोक से पृथ्वी पर निवास करने का श्राप दे दिया। इसके पश्चात सुदामा का जन्म शंखचूर्ण के रूप में तथा विराजा का जन्म तुलसी के रूप में हुआ।
शंखचूर्ण का तीनों लोकों पर आतंक
बाद में शंखचूर्ण का विवाह मां तुलसी से हुआ। भगवान ब्रह्मा शंखचूर्ण को वरदान स्वरूप एक कवच दिया था और साथ ही यह भी कहा था कि जब तक तुलसी उसपर विश्वास करेंगी तब तक उससे कोई नहीं जीत पाएगा। इसी कारण शंखचूर्ण ने कई युद्ध जीते और तीनों लोकों पर अधिकार जमा आतंक मचाने लगा।
शंखचूर्ण के क्रूर अत्याचार से परेशान होकर देवताओं ने भगवान ब्रह्मा से रक्षा की प्रार्थना की। परंतु ब्रह्मा जी ने देवताओं को भगवान विष्णु के पास जाने को कहा। विष्णु ने उन्हें शिव जी से सलाह लेने को कहा। देवताओं की परेशानी को समझते हुए भगवान शिव ने उन्हें शंखचूर्ण को मार कर उसके बुरे कर्मों से मुक्ति दिलाने का वचन दिया। लेकिन इससे पहले भगवान शिव ने शंखचूर्ण को शांतिपूर्वक देवताओं को उनका राज्य वापस सौंपने का प्रस्ताव रखा परंतु हिंसावादी शंखचूर्ण ने शिव को ही युद्ध लड़ने के लिए उत्तेजित किया। परंतु इस युद्ध में शंखचूर्ण भगवान शिव के हाथों मारा गया।