Dhanteras 2020: धनतेरस से जुडी हैं ये पौराणिक कथा, आपको भी जानना चाहिए
दीपावली का त्योहार जो कि हिन्दू धर्म का सबसे ज्यादा लोकप्रिय त्यौहार के रूप में जाना जाता है, हालाँकि दीपावली का त्यौहार जब भी आता है तो अपने साथ और भी ढेर सारे त्यौहार लेकर आता है। उन सभी त्योहारों की शुरुवात धनतेरस के दिन से आरंभ होती है। जी हाँ, बता दें कि कार्तिक मास की त्रियोदशी तिथि को धनतेरस का शुभ त्यौहार मनाया जाता है। इस बार धनतेरस का त्योहार नवम्बर माह की 13 तारीख को पड़ा है।
धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरी की पूजा की जाती है और हर कोई इस विशेष दिन अपने घर में माँ लक्ष्मी और धन्वन्तरी भगवान की पूरे वर्ष कृपा पाने के लिए किसी ना किसी नई वस्तु की खरीदारी करते हैं। इस दिन हर कोई अपने अपने सामर्थ के अनुसार बर्तन और नई चीजे खरीदने की परंपरा है। आइये आज हम आपको बताते है कौन है भगवान धनवंतरि और साथ ही आपको बताएँगे धनतेरस से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में।
धनतेरस से जुड़ी पौराणिक कथा
सबसे पहले तो आपको बता दें कि प्रतिवर्ष दीपावली के ठीक दो दिन पहले धनतेरस के दिन भगवान धनंतरी की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार बताया जाता है कि समुद्र मंथन करने पर भगवान धनवंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। पुराणों के अनुसार भगवान धनवंतरी को चिकित्सा का देवता माना जाता है। हालाँकि माता लक्ष्मी भी समुद्र मंथन से प्रकट हुई थी, यही वजह है कि भगवान धनवंतरी के साथ-साथ मां लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है।
आपकी जानकारी के लिए बताते चलें कि धन्वन्तरी भगवान से जुड़ी मान्यता है कि ये भगवान विष्णु के ही अंश हैं। इसके अलावा भगवान धनतेरस से जुड़ी एक और कथा प्रकाश में आती है जो कुछ इस प्रकार से है
प्राचीन समय में अत्यंत ही बलशाली और दानवीर राजा बलि हुआ करते थे। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। उनका पराक्रम इतना ज्यादा था कि उन्होंने तीनों लोको पर अपना अधिकार बना लिया था। इस पौराणिक कथा के अनुसार तब देवताओं की सहायता करने हेतु भगवान श्री विष्णु जी ने वामन अवतार लिया और राजा बलि की यज्ञ स्थल पर जाकर उनसे तीन पग भूमि दान में मांग ली। हालाँकि असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने वामन अवतार में भगवान विष्णु को पहचान लिया था।
जिसके बाद उन्होंने अपने शिष्य यानी कि राजा बलि को उन्हें दान देने के लिए मना भी किया, परंतु राजा बलि ने उनकी बात नहीं मानी। बताया जाता है कि जैसे ही राजा बलि ने दान का संकल्प लेने के लिए अपने कमंडल से जल लेने के लिए हाथ बढ़ाया गुरु शुक्राचार्य लघु रुप धारण करके कमंडल में चले गए, ताकि कमंडल की टोटीं से जल न निकले। वामन अवतार में भगवान विष्णु भी शुक्राचार्य की इस चाल के समझ गए, ज्सिके बाद उन्होंने अपने हाथ की कुशा को कुछ इस तरह से कमंडल में डाला कि उससे शुक्राचार्य की आंख फूट गई और वो चटपटे हुए कमंडल से बाहर आ गए।
इसके बाद राजा बलि द्वारा दिए गए दान के अनुसार वामन अवतार भगवान विष्णु ने देखते ही देखते एक पग में सम्पूर्ण पृथ्वी नाप ली और दूसरे पग में पूरे अंतरिक्षको नाप लिया। इसके बाद तीसरे पग के लिए जगह ही नहीं बची तो स्वयं राजा बलि ने अपना मस्तक भगवान के आगे कर दिया। उनके ऐसा करते ही देवताओं को उनकी सारी धन और संपत्ति वापस मिल गई। माना जाता है कि इसी के उपलक्ष्य में धनतेरस का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जाता है।