भारत के सबसे प्राचीन मंदिर जो एक बार फिर से अतीत में वापस ले जाते हैं
Youthtrend Religion Desk : हमारें देश को मंदिरों का देश भी कहा जाता हैं, वृंदावन की तो गली-गली में मंदिर हैं, हमारें देश में ऐसे बहुत से मंदिर हैं जो प्राचीन समय से देश में मौजूद हैं, ऐसे मंदिर ना सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी काफी महत्व रखते हैं। आज हम आपकों भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों के बारें में बताने जा रहें हैं।
भारत के सबसे प्राचीन मंदिर
कैलाशनाथ मंदिर, एलोरा
जिस मंदिर की हम बात कर रहें हैं वो देवों के देव महादेव को समर्पित हैं ये ऐतिहासिक मंदिर कैलाशनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता हैं, भारत के सबसे प्राचीन मंदिर में से एक इस मंदिर के निर्माण के समय आसपास की सरंचनाओं को सही अनुपात और संरेखण में तराशा गया हैं। इसके अंदर मौजूद इमारतें, मूर्तियां, पत्थर के बने मेहराब और फ्लाई ब्रिज ये सभी चीजें एक पत्थर के टुकड़े से ही बनी हैं।
तुंगनाथ महादेव, उत्तराखंड
शिव जी को समर्पित एक और मंदिर हैं तुंगनाथ महादेव, कहा जाता हैं कि ये मंदिर पंच केदारों जिनमें मध्यमाश्वर, कल्पेश्वर, रुद्रनाथ, केदारनाथ और तुंगनाथ में सब्स ज्यादा ऊंचाई पर मौजूद हैं, इस मंदिर के बारें में कहा जाता हैं कि रावण का वध करने के बाद ब्रह्महत्या के पाप से बचने के लिए प्रभु श्रीराम यहां तपस्या करने आए थे, इस मंदिर में दर्शन के लिए एक बार में सिर्फ 10 लोग ही अंदर जा सकते हैं।
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आदि कुंभेश्वर, तमिलनाडु
तमिलनाडु के कुंभकोणम में मौजूद हैं भोलेनाथ का और प्राचीन मंदिर, जिसे आदि कुंभेश्वर के नाम से जाना जाता हैं, बताया जाता हैं कि इस मंदिर की रचना विजयनगर काल में हुई थी, इस मंदिर के बीचोंबीच शिवलिंग स्थित हैं मान्यताओं के मुताबिक इस शिवलिंग का निर्माण स्वयं भगवान भोलेनाथ ने अमृत को रेत में मिलाकर किया था।
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ब्रह्मा मंदिर, राजस्थान
पूरी दुनिया मे ब्रह्मा जी का सिर्फ एक ही मंदिर हैं और वो स्थित हैं राजस्थान में, जानकारी के अनुसार ये मंदिर लगभग 2000 साल पुराना हैं और इसकी सरंचना 14वीं सदी की हैं, मुख्य रूप से मंदिर का निर्माण संगमरमर और पत्थर की सहायता से किया गया हैं। मंदिर के बीच में ब्रह्मा जी और उनकी दूसरी पत्नी गायत्री की मूर्तियां हैं, मंदिर के ऊपर एक पक्षी की आकृति बनी हुई हैं।
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वरदराजा पेरुमल मंदिर, तमिलनाडु
तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित वरदराजा पेरुमल मंदिर हिंदू मंदिर हैं जब देश के 12 कवि संतो ने विष्णु भगवान के 108 मंदिरों का दौरा किया था तो इस दिव्य मंदिर का भी दौरा किया था, कहा जाता हैं कि इस मंदिर की छत पर छिपकलियों की मूर्तियां बनी हुई हैं और मान्यता हैं कि अगर आप उन्हें स्पर्श कर देंगे तो आपके सारे पुराने पाप खत्म हो जाते हैं।
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सूर्य मंदिर, ओडिशा
कोर्णाक सूर्य मंदिर की स्थापना राजा नरसिम्ह देव प्रथम ने 1250 ईसवी के आस-पास करवाया था, ये मंदिर विशाल पत्थर के पहिये, स्तम्भों और दीवारों के साथ-साथ एक बड़े रथ के आकार में हैं, इस मंदिर को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया गया हैं।
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दिलवाड़ा जैन मंदिर, माउंट आबू
माउंट आबू के पास स्थित हैं दिलवाड़ा जैन मंदिर, इस अद्भुत मंदिर का निर्माण 11वीं और 13वीं ईस्वी के मध्य हुआ था, इस मंदिर में संगमरमर के पत्थरों का बहुत खूबसूरती से प्रयोग किया गया हैं, ये जैन धर्म के अनुयायियों का एक विशेष स्थल हैं।
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पंचरत्न मंदिर, पश्चिम बंगाल
इस मंदिर का निर्माण राजा रघुनाथ सिंह ने 1643 में करवाया था, इस मंदिर का निर्माण बहुत ही छोटे से वर्गाकार चबूतरे पर हुआ हैं, मंदिर की दीवारों पर टेराकोटा की नक्काशी की गई हैं।
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बादामी गुफा, कर्नाटक
कर्नाटक के उत्तरी भाग में स्थित बगलकोट जिले के बादामी शहर में मौजूद हैं बादामी गुफा मंदिर, इस मंदिर को बादामी चालुक्य वास्तुकला का एक बेजोड़ नमूना माना जाता हैं।
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विट्ठल मंदिर, हम्पी
कर्नाटक के हम्पी में स्थित हैं विट्ठल मंदिर, ये मंदिर अपने म्यूजिकल पिलर्स के लिए विश्वविख्यात हैं कहा जाता हैँ कि इस मंदिर के स्तंभों में से अदभुत ध्वनि निकलती हैं, अंग्रेजो ने अपने शासनकाल में इसके दो पिलर्स को तुड़वा दिया था ताकि वो इस संगीत का राज जान सकें लेकिन ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया।
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ओरछा मंदिर, मध्यप्रदेश
सुप्रसिद्ध खजुराहो के मंदिर के पास एक और प्रसिद्ध मंदिर हैं जिसे ओरछा मंदिर कहा जाता हैं, इस मंदिर के शिखर की ऊंचाई हमेशा से ही लोगों के आर्कषण का केंद्र रहीं हैं यहां राम मंदिर, लक्ष्मी मंदिर और चतुर्भुज मंदिर हैं।
चेन्नाकेशव मंदिर, कर्नाटक
कर्नाटक में यागची नदी के किनारे पर बसा हैं ये मंदिर, कहा जाता हैं कि इस मंदिर का निर्माण विजयनगर के शासकों द्वारा करवाया गया था और इस मंदिर को भगवान विष्णु को समर्पित किया गया हैं, इस मंदिर में
भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी एक साथ स्थापित हैं।
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बृहदेश्वर मंदिर, तंजौर
इस मंदिर का निर्माण राजराज चोल द्वारा 1002 ईस्वी में करवाया गया था, इस मंदिर का निर्माण द्रविड़ियन कला के द्वारा हुआ हैं जो मंदिर में साफ तौर से दिखाई देती हैं, मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं।