Religion

Ganesh Chaturthi : महादेव की नगरी काशी में भी गणेश उत्सव की धूम, 125 साल पहले बाल गंगाधर तिलक ने की थी शुरुआत

Ganesh Chaturthi : पूरे देश में बड़े की धूमधाम से गणेश उत्सव (Ganesh Utsav) का पर्व मनाया जा रहा है। वैसे तो गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) का पर्व आमतौर पर महाराष्ट्र के लिए जाना जाता है, यहां पूरे दस दिन तक इस उत्सव की धूम रहती है, लेकिन महादेव की नगरी काशूी (Kashi) में भी लोग बड़े ही उत्साह से इस त्योहार को मनाते है। यहां के ब्रह्माघाट, बीवीहटिया, पंचगंगा घाट समेत कई ऐसे इलाके हैं, जहां पर आज भी बड़ी संख्या में मराठी परिवार रहते है, जो अपने जो अपनी संस्कृति और सभ्यता के हिसाब से इस उत्सव को मनाते हैं। क्या आप जानते है कि महाराष्ट्र के पुणे (Pune) के बाद बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak) ने काशी में गणेश उत्सव (Ganesh Chaturthi) की शुरुआत की थी। इसके बाद से काशी के पुरातन गणेश उत्सव समिति गणेश उत्सव मनाने लगा। जिसका इतिहास 125 साल पुराना है। तो चलिए जानते है इसके पीछे की कहानी…

बता दें कि, काशी में आजादी की अलख जगाने के उद्देश्य से काशी के इस पुरातन गणेश उत्सव समिति (Kashi Ganesh Puja Committee) ने गणेश उत्सव की शुरुआत की थी। समिति से जुड़े लोगों के अनुसार देश की आजादी से पहले भारतीयों को इक्कठा होने की इजाजत नहीं थी। सिर्फ धार्मिक आयोजनों में ही लोग इक्कठा होते थे। ऐसे में भारतीय एक साथ हों इसके लिए 1898 में बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak) ने इस गणेश उत्सव की शुरुआत की थी, फिर गणेश उत्सव के जरिए स्वतंत्रता सेनानी एक जुट होकर यहां रणनीति तैयार करने के साथ ही लोगों में आजादी की अलख भी जगाते थे। बाल गंगाधर तिलक खुद इसके लिए काशी आये थे।

Ganesh Chaturth : महाराष्ट्र के संस्कृति की झलक देखने को मिलती है

Ganesh Chaturthi

जारों मराठी परिवारों ने उस दौरान बाल गंगाधर तिलक का पूरा साथ दिया था और 1898 से लेकर अभी तक लगातार यह उत्सव काशी में मनाया जाता है। काशी के (Ganesh Chaturthi in Kashi) इस गणेश पूजन का अपना अलग महत्व है, क्योंकि आज भी यहां पर महाराष्ट्र (Maharashtra) की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। जिस तरह से महाराष्ट्र में गणेश पूजन और गणेश पर्व (festival of ganesh chaturthi) के दौरान पद्यगान और गणेश वंदना करने का विधान है। उसी तरह यहां पर छोटे-छोटे बच्चे हाथों में डांडिया लेकर गणेश वंदना और पद्यगान करते हैं। इसकी तैयारियां नागपंचमी से ही शुरू हो जाती हैं।

Ganesh Chaturthi

बच्चे में देखेने को मिलता है एक अलग उत्साह

बच्चों का भी इस परंपरा संस्कृति से जुड़ाव देखने लायक है। बच्चों का कहना है कि हमारे समाज और हमारे धर्म को बचाने के लिए हमारे पूर्वजों ने बहुत सा बलिदान दिया और उन चीजों को संभाल कर हमारे पुराने लोगों ने रखा है, इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि उन चीजों को आगे बढ़ाएं। आज डिजिटल युग में लोग टीवी और म्यूजिक सिस्टम पर भजन बजाते हैं, लेकिन हम आज भी उसी पुरानी परंपरा और मराठी समाज की संस्कृति को जीवित रखते हुए पद्यगान और गणेश पूजन (Ganesh Chaturthi) की तैयारियां करते हैं।

सात दिनों तक होती है पूजा

वाराणसी के ब्रह्मा घाट स्थित मंगल भवन में आज भी मराठा परिवार से जुड़े लोग यहां इस उत्सव को धूमधाम से मनाते हैं। पहले की तरह ही आज भी यहां भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित होती है और फिर सात दिनों तक पूजा अनुष्ठान चलता है।

Ganesh Chaturthi

सप्ताह भर सुनाया जाता है पद्यगान

वत्सल जनार्धन शास्त्री ने बताया कि 7 दिनों तक यहां गणपति बप्पा की षोड़शोपचार विधि से पूजा होती है। इसके अलावा हवन और गणेश वंदना भी की जाती है और फिर पूरे सप्ताह भर गणपति बप्पा को पद्यगान सुनाया जाता है। इन तमाम आयोजनों के अलावा सात दिनों में नृत्य, संगीत और गणपति बप्पा पर आधारित चित्र प्रतियोगिता और भी ढेरों आयोजन किये जाते हैं।