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पूजा के दौरान आरती की अग्नि को छूकर क्यों लगाते हैं सिर पर ?

Youthtrend Religion Deskहिंदू धर्म में पूजा-पाठ करने का विशेष महत्व होता हैं उसी प्रकार पूजा करने में आरती करने का विशेष विधान हैं, हर तरह की पूजा, अनुष्ठान के अंत में आरती की जाती हैं आरती करते समय हमारें हाथ में एक थाली होती हैं जिसमें पूजा और आरती की कुछ वस्तुएं होती हैं और उसे भगवान के चारों तरफ घुमाते हैं। आरती खत्म होने के बाद हम आरती की अग्नि या आरती वाले दीये के ऊपर से हाथ घुमाते हुए अपने सिर पर लगाते हैं पर ऐसा क्यों किया जाता हैं, आज के लेख में हम इसके बारें में जानने की कोशिश करेंगे।

पूजा के आरती की अग्नि या दीप का महत्त्व

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भगवान की पूजा या अनुष्ठान करने के बाद आरती की जाती हैं आरती करते समय सभी भगवान के आगे श्रद्धा भक्ति से खड़े हो जाते हैं और दोनों हाथों को आपस में जोड़कर भगवान से प्रार्थना करते हैं। भगवान की आरती करते समय आरती के दिये या ज्योत को इस प्रकार घुमाना चाहिए कि ॐ की आकृति बनती हुई दिखाई दें। आरती के दीपक को घुमाने की संख्या हर देवी-देवता के हिसाब से अलग हैं, अगर भगवान शिव की आरती की जाए तो दीप को तीन बार या पांच बार ही घुमाना चाहिए, गणपति वंदना के समय इसे 4 बार, विष्णुजी की पूजा करते समय दीपक को 12 बार घुमाना चाहिए।

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क्या हैं आरती का महत्व

मां दुर्गा की आराधना करते समय आरती दीप को नौ बार घुमाना चाहिए जबकि बाकी अन्य देवी-देवताओं की पूजा के लिए इसे 7 बार घुमाना चाहिए, आरती करते समय ये अवश्य ध्यान रखे कि आरती आपको अपनी दाईं ओर से शुरू होकर बाईं तरफ ले जानी चाहिए। पुराणों में कहा गया हैं कि अगर कोई व्यक्ति पूजा के मंत्र नहीं जानता हो तो या पूजन विधि नहीं जानता हो पर अगर वो भगवान की आरती में श्रद्धा के साथ शामिल हो जाए तो भी भगवान ऐसे व्यक्तियों की पूजा स्वीकार कर लेते हैं, इसलिए कहते हैं कि जिस प्रकार हिंदू धर्म में पूजा-पाठ का महत्व हैं उसी प्रकार आरती का भी विशेष महत्व हैं।

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आरती की थाली किस प्रकार सजानी चाहिए

आरती के लिए लिए थाली सजाने से पहले एक बात का ध्यान रखें कि आरती के लिए पीतल या तांबे की थाली या थाली ही लें, आरती के थाल में जल से भरा हुआ कलश, फूल, अक्षत, कुमकुम, कपूर, धूप, घंटी और आरती की किताब जिसे आरती संग्रह भी कहते हैं रख लें, इन सभी सामग्री को थाल में लेने से पहले थाल में कुमकुम से स्वास्तिक का निशान बना लीजिए|

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आरती की आग्नि पर क्यों फेरा जाता हैं हाथ

आरती संपन्न होने के बाद जल को आरती वाले थाल या थाली के चारों तरफ घुमाना चाहिए, उसके बाद आरती में सम्मिलित सभी लोगों को आरती देनी चाहिए, हमेशा आरती अपनी दाईं ओर से ही देनी चाहिए। आरती लेने के बाद भक्तगण आरती के ऊपर अपने दोनों हाथों को फैला लेते हैं और फिर उसके बाद अपने हाथों को अपने माथे और सिर पर लगा लेते हैं, ये मान्यता हैं कि ऐसा करने से हमे भगवान की उस शक्ति को अपने से लगाने का मौका मिलता हैं जो ईश्वरीय शक्ति आरती के दिये में समाई होती हैं। ऐसा करना के पीछे एक और कारण बताया गया हैं कि इससे भगवान की नजर उतारी जाती हैं।

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