धरती पर दीपावली मनाने आएंगे देवता, इस तरह पूजन कर अपने संकटों का करें अंत
देव दिवाली कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन यानि दिवाली से ठीक 15 दिन बाद मनाई जाती है। यूं तो सभी त्योहार देश के हर कोने में मनाया जाता है लेकिन कुछ त्योहार हैं जो विशेषकर किसी राज्य से जुड़े होते हैं। इसी तरह देव दिवाली का महत्व विशेषकर भारत की सांस्कृतिक नगरी वाराणसी से जुड़ा है।
मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान शंकर ने देवताओं की प्रार्थना पर सभी को उत्पीड़ित करने वाले राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया, जिसके उल्लास में देवताओं ने दीपावली मनाई, जिसे “देव दीपावली” के रूप में मान्यता मिली। इसी तिथि को भगवान शंकर ने अपने हाथों से बसाई काशी के अहंकारी राजा दिवोदास के अहंकार को नष्ट कर दिया। यह पर्व ऋतुओं में श्रेष्ठ शरद, मासों में श्रेष्ठ कार्तिक व तिथियों में श्रेष्ठ पूर्णमासी के दिन मनाया जाता है, इसे देवताओं का भी दिन माना जाता है।
इस माह किए हुए स्नान, दान, होम, यज्ञ और उपासना आदि का अनन्त फल है। इस पर्व को कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर काशी के घाटों पर दीप जलाकर मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवताओं का पृथ्वी पर आगमन होता है। देव दीपावली के विशेष पूजन व उपायों से व्यक्ति का भाग्य उज्ज्वल होता है, संकट समाप्त होते हैं तथा जीवन में खुशहाली आती है।
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बताना चाहेंगे की इस दिन शिवालय जाकर विधिवत षोडशोपचार पूजन करें। गौघृत का दीप करें, चंदन की धूप करें, गुलाब के फूल चढ़ाएं, चंदन से शिवलिंग पर त्रिपुंड बनाएं, अबीर चढ़ाएं, खीर पूड़ी व बर्फी का भोग लगाएं तथा इस विशेष मंत्र से 1 माला जाप करें और पूजन के बाद भोग प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें।
पूजन मंत्र: ॐ देवदेवाय नमः॥
इस वर्ष कार्तिक माह की पूर्णिमा यानि की देव दिवाली 3 नवंबर को है। इस दिन लाखों दीयों से गंगा के घाटों को सजाया जाता है। इस दिन अपने घरों में तुलसी के आगे और घर के दरवाजों पर घी के दीपक जलाना शुभ माना जाता है, जिससे पूरे वर्ष सकारात्मक कार्य करने का संकल्प मिलता है।