Story of Ravana : रावण के वध को भगवान विष्णु ने 3 बार लिया था अवतार, जानें उसके तीन जन्मों से जुड़ी रोचक कहानी
Story Of Ravana : पूरे देश में दशहरा (Dussehra) का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, इसे विजया दशमी भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में इस त्योहार का विशेष महत्व है। इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। अश्विन माह की कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा (Dussehra) का पर्व मनाया जाता है, इस साल यह पर्व 6 अक्टूबर को मनाया जाएगा। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का वध किया था, तभी से यह पर्व अधर्म पर धर्म की जीत के रूप में मनाया जाने लगा। आप सभी जानते होंगे कि रावण (Ravana) भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था और काफी बलशाली भी था। लेकिन रावण पूर्व जन्म में कौन था इसके बारे में शायद बहुत कम ही लोगों को पता होगा। उसे मारने के लिए भगवान विष्णु को तीन बार अवतार लेना पड़ा था, आज हम आपको रावण के पूर्व तीन जन्मों की कहानी (Story of Ravana) के बारे में विस्तार से बताएंगे। जो काफी दिलचस्प है, तो चलिए जानते है…
Story of Ravana : रावण कौन था
रावण विश्रवा और कैकसी का सबसे बड़ा पुत्र था। बता दें कि रावण के पिता ऋषी विश्रवा ने दो विवाह किए थे उनकी पहली पत्नी का नाम कैकसी था, जिससे रावण, कुंभकरण, विभीषण आदि राक्षस उत्पन्न हुए और दूसरी पत्नी वरवर्णिनी से यक्षों के स्वामी कुबेर का जन्म हुआ था। रावण (Story of Ravana) लंका का का राजा था और एक बहुत बड़ा विद्वान था। अपनी सिद्धि और तपोबल के जरिए उसने अपने जीवन में बहुत सारी मायावी शक्तियां अर्जित की थी। रावण भगवान की तरह ही 64 कलाओं में निपुण था।
जाने रावण के पूर्व तीन जन्मों की कहानी
सनकादि मुनि का श्राप
सतयुग में भगवान विष्णु के जय-विजय नाम के दो द्वारपाल हुआ करते थे, जो हमेशा वैकुंठ के द्वार पर खड़े होकर श्रीहरि की सेवा करते थे। एक बार सनकादि मुनि भगवान विष्णु के दर्शन करने पहुंचे, लेकिन उन्हें जय-विजय ने द्वार पर रोक लिया। इससे क्रोधित होकर सनकादि मुनि ने उन्हें राक्षस योनी में जन्म लेने का श्राप दे डाला। तभी भगवान विष्णु वहां पहुंचे और उन्होंने मुनि से जय-विजय को श्राप मुक्त करने की विनती की। इसके बाद सनकादि मुनि ने कहा कि इनके कारण आपके दर्शन करने में हमें 3 क्षण की देरी हुई है, इसलिए ये तीन जन्मों तक राक्षस योनि में ही जन्म लेंगे और तीनों ही जन्म में इनका अंत भगवान विष्णु ही करेंगे।
पहले जन्म में हिरण्यकशिपु व हिरण्याक्ष
बता दें कि पहले जन्म में जय-विजय हिरण्यकशिपु व हिरण्याक्ष नाम के राक्षस बने। हिरण्याक्ष ने जब धरती को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया तब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर उसका वध कर दिया और धरती को दोबार अपने स्थान पर स्थापित कर दिया। अपने भाई की मृत्यु से हिरण्यकशिपु को बहुत क्रोध आया और ब्रह्मदेव से कई तरह के वरदान पाकर वह स्वयं को अमर समझने लगा। तब भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकशिपु का भी वध कर डाला।
Story of Ravana : दूसरे जन्म में रावण व कुंभकर्ण
अब दूसरे जन्म में जय-विजय राक्षसराज रावण और कुंभकर्ण बने। इस जन्म में रावण लंका का राजा था। देवता भी उसके पराक्रम से थर-थर कांपते थे। वहीं कुंभकर्ण का शरीर इतना बड़ा था कि वे हजारों लोगों को खाना अकेले ही चट कर जाता था। तब भगवान विष्णु ने अयोध्या के राजा दशरथ के यहां श्रीराम के रूप में जन्म लिया और Ravana व कुंभकर्ण का वध किया।
तीसरे जन्म में शिशुपाल और दंतवक्र
इसके बाद तीसरे जन्म में जय-विजय शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में जन्मे। बता दें कि, शिशुपाल और दंतवक्र दोनों ही भगवान श्रीकृष्ण की बुआ के पुत्र थे, लेकिन वे फिर भी उनसे बुरा मानते थे। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण ने सबके सामने शिशुपाल का वध कर दिया, तब दंतवक्र वहां से भाग गया। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने उसका भी वध कर डाला।
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