Electric Highway : भारत में भी स्वीडन की तरह होगा इलेक्ट्रिक हाईवे, दौड़ती गाड़ियां हो जाएंगी चार्ज
Electric Highway in India : बदलते दौर के साथ भारत (India) भी तरक्की कर रहा और धीरे-धीरे विकासशील देश से विकसित देश की ओर अग्रसर हो रहा। हमारा देश भी धीरे-धीरे हाईटेक हो रहा। अब भारत भी स्वीडन की तरह ऐसे हाईवे बना रहा है, जिस पर चलती हुई गाड़ियां चार्ज हो जाएंगी। अब आप सोच रहे होंगे कि ई-हाईवे (Electric Highway) होते क्या हैं? ये काम कैसे करते हैं और कैसे गाड़िया अपने आप चार्ज होगी। तो चलिए आज आपके इन कई सवालों का जवाब बताते है और इसके बारे में विस्तार से जानते है।
भारत में कब से शुरू होगा Electric Highway?
भारत में Electric Highway बनाने की योजना 2016 में ही शुरू हो गई थी। तब ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) ने कहा था कि जल्द ही भारत में भी स्वीडन की तरह इलेक्ट्रिक हाईवे होंगे। पिछले साल लोकसभा में गडकरी ने बताया था कि सरकार की योजना 1300 किलोमीटर लंबे दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे पर इलेक्ट्रिक हाईवे बनाने की है। ये एक्सप्रेसवे मार्च 2023 तक पूरा होने की उम्मीद है। इस एक्सप्रेस-वे पर इलेक्ट्रिक हाईवे की एक अलग से लेन बनाने की योजना है।
बता दें कि, भारत ने दुनिया के सबसे लंबे Electric Highway के निर्माण के लिए अटल हरित विद्युत राष्ट्रीय महामार्ग यानी AHVRM नामक योजना शुरू की है। इसके तहत सबसे पहले दिल्ली-जयपुर एक्सप्रेसवे और दिल्ली-आगरा यमुना एक्सप्रेसवे को इलेक्ट्रिक हाईवे बनाने का प्रोजेक्ट चल रहा है। यमुना एक्सप्रेसवे पर इलेक्ट्रिक हाईवे का ट्रायल दिसंबर 2020 में हो चुका है। वहीं दिल्ली-जयपुर हाईवे को इलेक्ट्रिक हाइवे बनाने के लिए ट्रायल 9 सितंबर 2022 को शुरू हो चुका है, जो एक महीने तक चलेगा। दिल्ली-जयपुर हाईवे और दिल्ली-आगरा यमुना एक्सप्रेसवे को मिलाकर करीब 500 किलोमीटर इलेक्ट्रिक हाईवे के मार्च 2023 तक शुरू हो जाने की उम्मीद है। ये देश का पहला और दुनिया का सबसे लंबा इलेक्ट्रिक हाईवे होगा। अभी दुनिया में सबसे लंबा इलेक्ट्रिक हाईवे बर्लिन में है, जिसकी लंबाई 109 किलोमीटर है।
क्या होते हैं Electric Highway?
आम हाईवे या एक्सप्रेसवे पक्की सड़कों से बने होते हैं, जिन पर हर तरह की गाड़ियां दौड़ सकती हैं। वहीं Electric Highway ऐसे हाईवे होते हैं, जिनमें कुछ इक्विपमेंट्स के जरिए ऐसा सिस्टम होता है, जिससे उनसे गुजरने वाली गाड़ियां बिना रुके ही अपनी बैटरी चार्ज कर सकती हैं। इसके लिए हाईवे पर ओवरहेड वायर या रोड के नीचे से ही इलेक्ट्रिक फ्लो करने का सिस्टम बना होता है। इलेक्ट्रिक हाईवे से केवल इलेक्ट्रिक गाड़ियां ही चार्ज हो सकती हैं। इससे पेट्रोल-डीजल वाली गाड़ियां नहीं चार्ज होती। इनसे हाइब्रिड गाड़ियां भी चार्ज हो सकती हैं। हाइब्रिड गाड़ियों में इलेक्ट्रिक के साथ-साथ पेट्रोल-डीजल से चलने की भी सुविधा होती है। यानी इलेक्ट्रिक हाईवे इलेक्ट्रिक सुविधा से लैस ऐसे हाइवे होते हैं, जहां उनके ऊपर से गुजरती गाड़ियों को चार्ज किया जा सकता है।
इलेक्ट्रिक रोड पर चलते हुए कैसे चार्ज हो जाती हैं गाड़ियां?
Electric Highway पर गाड़ियों की चार्जिंग के लिए दो तरीकों का इस्तेमाल होता है-
- ओवरहेड पावर लाइन यानी रोड के ऊपर लगे इलेक्ट्रिक वायर का इस्तेमाल करके।
- रोड के अंदर ही पावर लाइन बिछाकर यानी ग्राउंड लेवल पावर सप्लाई के जरिए।
- ओवरहेड पावर लाइन: इसमें रोड के ऊपर इलेक्ट्रिक वायर लगे होते हैं। जब इन वायर के नीचे से हाइब्रिड या इलेक्ट्रिक गाड़ियां गुजरती हैं, तो गाड़ियों के ऊपर लगे पैंटोग्राफ इन वायर के संपर्क में आ जाते हैं। इससे करेंट का फ्लो वायर से उस गाड़ी में होने लगता है और उसकी बैटरी चार्ज हो जाती है। जब तक गाड़ी इन तारों के संपर्क में रहती हैं, तब तक उनकी बैटरी चार्ज होती रहती हैं।
किसी दूसरी तरफ मुड़ने यानी वायर से संपर्क टूटने के बाद गाड़ी वापस से डीजल या पेट्रोल इंजन मोड में आ जाती है। यानी इलेक्ट्रिक बैटरी की जगह पेट्रोल-डीजल से चलने लगती है। इन हाईवेज से चार्ज इलेक्ट्रिक या हाइब्रिड गाड़ियां ही होती हैं। हाइब्रिड यानी इलेक्ट्रिक और डीजल-पेट्रोल दोनों से चलने वाली गाड़ियां। इलेक्ट्रिक हाईवे पर इस टेक्नीक से भारी-भरकम ट्रकों या बसों को ही चार्ज किया जा सकता है। इलेक्ट्रिक हाईवेज को इस तरह डिजाइन किया जाता है कि इसमें गाड़ियों के बीच टक्कर होने या बिजली का झटका लगने का डर नहीं रहता है।
- ग्राउंड लेवल पावर सप्लाई: इसमें रोड में इलेक्ट्रिक कनेक्शन रोड के अंदर ही फिट किया जाता है। इसमें रोड के नीचे ऐसे रेल या कॉइल लगाए जाते हैं, जिनके जरिए इलेक्ट्रिक का फ्लो हो सकता है। इस टेक्नीक से भी दो तरह से चार्जिंग होती है।
दुनिया में यहां सबसे पहले हुआ था इलेक्ट्रिक हाईवेज का इस्तेमाल
बता दें कि, 1990 से 2010 के बीच कई कंपनियों ने इलेक्ट्रिक रोड बनाने के प्रोजेक्ट्स पर काम किया। सबसे पहले साउथ कोरिया ने 2013 में अपने शहर गूमी में बसों के लिए 7.5 किलोमीटर लंबा इलेक्ट्रिक रूट बनाया था। बसें इस रोड पर चलते हुए उस पर लगे वायरलेस चार्जिंग इक्विपमेंट्स से चार्ज हो जाती थीं।