देश की सबसे बड़ी अदालत का ऐतिहासिक फैसला, इन शर्तों के साथ इच्छामृत्यु होगी मान्य
लंबे समय से चला आ रहे अब तक का सबसे विवादित विषय इच्छामृत्यु (लिविंग विल) पर सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार कुछ जरूरी निर्देशों के साथ इजाजत दे ही दिया है लेकिन अभी भी इसे “निष्क्रिय (पैसिव)” की श्रेणी में ही रखा जायेगा। आज शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में यह कहा कि किसी भी इंसानों को इज्जत के साथ मरने का पूरा हक है, और इसके साथ ही पाँच जजों की बेंच ने जिसकी अगुवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा कर रहे थे ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाया जो यकीनन लंबे समय तक याद किया जाएगा।
क्या है लिविंग विल ?
लिविंग विल जिसका यह मतलब होता है जब कोई व्यक्ति जब अतिगंभीर बीमारी से पीड़ित हो और उसे लाइफ सपोर्ट की अति आवश्यकता हो जिसके बिना वो एक पल भी जीवित ना रह सके तब इस स्थिति को लिविंग विल की चरम स्थिति माना जाता हैं। यह उस वक़्त चरम पर माना जाता है जब बीमार व्यक्ति खुद से अपनी इच्छा व्यकत नहीं कर पाता है।
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क्या है निष्क्रिय इच्छामृत्यु
जब किसी व्यक्ति की ऐसी हालत हो जाये की जिंदगी से अच्छी मौत बन जाये तब ऐसे में उसके मौत के लिए उसके लाइफ सपोर्ट को हटा दिया जाए है या उसे ऐसा कुछ दिया जाए जिससे वह मृत्यु को प्राप्त हो सके।
बता दे आज शुक्रवार के दिन सुप्रीम कोर्ट ने इस अहम मामले की सुनवाई पर कहा कि इस धरती पर हर मनुष्य को सम्मान के साथ जितना जीने का हक है उतना ही मौत का भी हक है। बताना चाहेंगे की इस बेंच में चीफ़ जस्टिस के अलावा इस फैसले के दौरान जस्टिस एके सिकरी, जस्टिस एएम खनविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल भी शामिल रहे।