शरद पूर्णिमा की रात को क्यों रखी जाती है चाँद की रोशनी में खीर, जानें क्या है इसका रहस्य
शरद पुर्णिमा का त्यौहार 23 अक्टूबर यानि आज के दिन मनाया जा रहा हैं, यह त्यौहार बहुत महत्वपूर्ण होता हैं| ऐसा माना जाता हैं कि इसी दिन ने सर्दियों की शुरुआत हो जाती हैं, जिसके कारण इस दिन को शरद पुर्णिमा के नाम से जाना जाता हैं| हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता हैं कि शरद पुर्णिमा की रात बहुत अनोखी होती हैं और इस दिन की रात आसमान से धरती पर अमृत की वर्षा होती हैं| यह दिन सिर्फ धार्मिक लोगों के लिए नहीं बल्कि वैज्ञानिक तौर पर बहुत महत्वपूर्ण होता हैं क्योंकि इस दिन चंद्रमा से एक विशेष प्रकार की ऊर्जा मिलती हैं और इस रात चन्द्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है| इस दिन चंद्रमा की ऊर्जा को ग्रहण करना बहुत ही लाभदायक होता है और शरद पूर्णिमा को सबसे बड़ी पूर्णिमा भी कहा जाता है|
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मोक्ष की प्राप्ति अमृत वाली खीर से मिलती है
आपकी जानकारी के लिए बताते चलें की दूध में लैक्टिक एसिड और अमृत तत्व मौजूद होता है और यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में ऊर्जा का अवशोषण करता है| इसके साथ चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और भी आसान हो जाती है| यही वजह है की प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है|
पूर्णिमा की चांदनी में स्नान करें
मान्यता है कि इस दिन खीर चांदी के पात्र में बनाना चाहिए क्योंकि चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है और इससे विषाणु दूर रहते हैं परंतु एक बात ध्यान रहे की इसमें हल्दी का उपयोग निषिद्ध माना गया है और प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान जरूर करना चाहिए और इसके लिए रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त माना जाता हैं|
दमा मरीजों के कष्ट दूर होतें हैं
दमा रोगियों के लिए शरद पूर्णिमा की रात वरदान बनकर आता है और इस रात्रि में दिव्य औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर सुबह 4 बजे तक सेवन करने से लाभ मिलता है| रात्रि जागरण के बाद दमा मरीजो को दवाई खाने के बाद पैदल चलना लाभदायक होता है और वहीं अमृत वाली खीर ग्रहण करने से दमा की बीमारी भी ठीक हो जाती है|