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निर्भया केस : चारों को एक साथ फांसी देकर इतिहास रचेगा तिहाड़, जानें पूरी प्रक्रिया

निर्भया केस : चारों को एक साथ फांसी देकर इतिहास रचेगा तिहाड़, जानें पूरी प्रक्रिया

निर्भया दुष्कर्म मामले में अब वह दिन दूर नहीं जब सभी दोषियों को फांसी पर लटका दिया जाएगा और निर्भया को इंसाफ मिलेगा। दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दोषियों को आखिरी सात दिन दिए जा चुके हैं। तिहाड़ प्रशासन ने भी पटियाला हाउस कोर्ट से गुरुवार को गुहार लगाई कि वह नया डेथ वारंट जारी करे। लेकिन इस फांसी के दौरान कौन सी प्रक्रिया अपनाई जाती है सब कुछ आपको बताते हैं-

क्या है ब्लैक वारंट

भारत की 30 से ज्यादा जेलों में फांसी देने के इंतजाम हैं। हर राज्य का अपना अलग जेल मैनुअल होता है। दिल्ली के जेल मैनुअल के अनुसार ब्लैक वॉरंट कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर के प्रावधान के तहत जारी किया जाता है। इसमें फांसी की तारीख और जगह लिखी होती है। इसे ब्लैक वॉरंट इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसके चारों ओर काले रंग का बॉर्डर बना होता है।

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14 दिन का समय

फांसी से पहले दोषी को 14 दिन का समय दिया जाता है इस दौरान वह अपने परिवार वालों से मिल सकता है। दोषी अपनी वसीयत तैयार करना चाहता है तो वह इस दौरान करा सकता है। इसमें वो अपनी अंतिम इच्छा लिख सकता है। अगर दोषी चाहता है कि उसकी फांसी के समय वहां पंडित, मौलवी या पादरी मौजूद हों तो जेल सुपरीटेंडेंट इसका इंतजाम कर सकते हैं।

दो दिन पहले जल्लाद पहुंचता है जेल

फांसी की पूरी जिम्मेदारी जेल अधीक्षक की होती है। वो देखता है कि फांसी का तख्ता, रस्सी, नकाब समेत सभी चीजें तैयार हों। फांसी का तख्ता ठीक से लगा हो, लीवर में तेल डला हुआ हो, रस्सी ठीक हालत में हो। बता दें कि फांसी के एक दिन पहले शाम को, फांसी के तख्ते और रस्सियों की फिर से जांच की जाती है। फांसी की प्रैक्टिस की जाती है रस्सी पर रेत के बोरे को लटकाकर देखा जाता है, जिसका वजन कैदी के वजन से डेढ़ गुना ज्यादा होता है। जल्लाद फांसी वाले दिन से दो दिन पहले ही जेल आ जाता है।

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मातृभाषा में पढ़कर सुनाया जाता है डेथ वारंट

आपको बता दें कि फांसी हमेशा सुबह-सुबह ही होती है। नवंबर से फरवरी सुबह आठ बजे और मार्च, अप्रैल, सितंबर से अक्तूबर सुबह सात बजे और मई से अगस्त सुबह छह बजे फांसी दी जाती है। सुपरिटेंडेंट और डिप्टी सूपरिटेंडेंट फांसी से पहले कैदी के सेल में जाते हैं और कैदी की पहचान करता है कि वो वही है, जिसका नाम वॉरंट है। फिर वह दोषी को उसकी मातृभाषा में वॉरंट पढ़कर सुनाते हैं।

काले कपड़े पहनाकर ले जाते हैं फांसी पर

डिप्टी सुपरिटेंडेंट के सामने ही मुजरिम को काले कपड़े पहनाकर और उसके हाथ पीछे से बांधकर उसे फांसी घर तक लाया जाता है। इस समय डिप्टी सुपरिटेंडेंट, हेड वॉर्डन और छह वॉर्डन उसके साथ होते हैं। सुपरिटेंडेंट, मजिस्ट्रेट और मेडिकल ऑफिसर पहले से मौजूद होते हैं। सुपरिटेंडेंट, मजिस्ट्रेट को बताता है कि उन्होंने कैदी की पहचान कर ली है और उसे वॉरंट उसकी मातृभाषा में पढ़कर सुना दिया है। इसके बाद दोषी को जल्लाद के हवाले कर दिया जाता है। दोषी को फांसी के तख्ते पर चढ़ना कर उसे फांसी के फंदे के ठीक नीचे खड़ा किया जाता है। इस समय तक वॉर्डन उसकी बांहें पकड़कर रखते हैं।

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जल्लाद के हवाले कर दिया जाता है दोषी

इसके बाद जल्लाद उसके दोनों पैर कस कर बांध देता है और चेहरे पर नकाब डाल देता है। इसके बाद उसे फांसी का फंदा पहनाया जाता है। फिर वह समय आता है जब जेल सुपरिटेंडेंट इशारा करते हैं और जल्लाद लीवर खींच देता है। इसी के साथ मुजरिम फंदे से लटक जाता है। फांसी के बाद बॉडी आधे घंटे तक लटकती रहती है। आधे घंटे के बाद डॉक्टर उसे मरा हुआ घोषित कर देता है। उसके बाद दोषी की बॉडी को उतार लिया जाता है और पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया जाता है।

अंतिम प्रक्रिया

इसके बाद सुपरिटेंडेंट फांसी का वॉरंट वापस कर देता है और पुष्टि करता है कि फांसी की सजा पूरी हुई। फांसी के तुरंत बाद सुपरिटेंडेंट, इंस्पेक्टर जनरल को रिपोर्ट देता है। इसके बाद वह वॉरंट को उस कोर्ट को वापस देते हैं जिसने ये जारी किया था। पोस्टमॉर्टम के बाद मुजरिम की बॉडी परिवार वालों को दे दी जाती है।

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