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शक्ति साधना के सबसे बड़ेे केंद्र कामाख्या मंदिर के बारें में ये रहस्य जानकर सन्‍न रह जाएंगे आप

शक्ति साधना के सबसे बड़ेे केंद्र कामाख्या मंदिर के बारें में ये रहस्य जानकर सन्‍न रह जाएंगे आप

कामाख्या मंदिर जिसे की हिन्दुओं का सबसे पुराना मन्दिर माना जाता है इसके साथ ही ये मन्दिर  तंत्र साधना और अघोरियों के गढ़ का सर्वोच्च स्थल माना जाता है। मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यह मन्दिर असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर दूरी पर स्थित है इस मन्दिर के करीब 10 किलोमीटर दूर पर नीलाचंल पर्वत स्थित है जहाँ पर कामाख्या देवी माँ का मंदिर है। आज हम आपको इस मन्दिर के बारे में कुछ ऐसे रोचक तथ्य बताने वाले है जिन्हें जानकर आप भी आश्चर्यचकित रह जायेंगे।

शक्ति साधना के सबसे बड़ेे केंद्र कामाख्या मंदिर के बारें में ये रहस्य जानकर सन्‍न रह जाएंगे आप

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मन्दिर को लेकर ऐसी मान्यता है की पिता द्वारा किए जा रहे यज्ञ की अग्नि में कूदकर सती के आत्मदाह करने के बाद जब महादेव उनके शव को लेकर तांडव कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने उनके क्रोध को शांत करने के लिए अपना सुदर्शन चक्र छोड़कर सती के शव के टुकड़े कर दिए थे। उस समय जहां सती की योनि और गर्भ आकर गिरे थे, आज उस स्थान पर कामाख्या मंदिर स्थित है।

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कामाख्या देवी को ‘बहते रक्त की देवी’भी कहा जाता है, इसके पीछे मान्यता यह है कि यह देवी का एकमात्र ऐसा स्वरूप है जो नियमानुसार प्रतिवर्ष मासिक धर्म के चक्र में आता है। सुनकर आपको अटपटा लग सकता है लेकिन कामाख्या देवी के भक्तों का मानना है कि हर साल जून के महीने में कामाख्या देवी रजस्वला होती हैं और उनके बहते रक्त से पूरी ब्रह्मपुत्र नदी का रंग लाल हो जाता है और इस दौरान कामाख्या देवी के गर्भगृह के दरवाजे अपने आप ही बंद हो जाते हैं और उनका दर्शन करना निषेध माना जाता है।

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शक्ति साधना के सबसे बड़ेे केंद्र कामाख्या मंदिर के बारें में ये रहस्य जानकर सन्‍न रह जाएंगे आप

तंत्र साधनाओं में रजस्वला स्त्री और उसके रक्त का विशेष महत्व होता है इसलिए यह पर्व या कामाख्या देवी के रजस्वला होने का यह समय तंत्र साधकों और अघोरियों के लिए सुनहरा काल होता है। इस शक्तिपीठ  का प्रसाद भी अन्य मन्दिरों से बिलकुल ही अलग है क्योंकि भक्तों को यहाँ प्रसाद के रूप में लाल रंग से भीगा हुआ वस्त्र दिया जाता है क्योंकि इस मन्दिर में जब मां को तीन दिन का रजस्वला होता है, तो सफेद रंग का कपडा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है।

वैसे आमतौर पर तो कामाख्या मंदिर में हमेशा ही भक्तों की भीड़ लगी होती है लेकिन दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, वसंती पूजा, मदानदेऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा पर इस मंदिर का अलग ही महत्व है और इन दिनों लाखो श्रद्धालु माँ का दर्शन करने के लिए इस मन्दिर में पहुँचते है।

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