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जानें, फांसी के लिए क्यों तय होता है सुबह का समय, कान में कौन सा शब्द बोलता है जल्लाद

जानें, फांसी के लिए क्यों तय होता है सुबह का समय, कान में कौन सा शब्द बोलता है जल्लाद

निर्भया के दोषियों को फांसी की सजा मिलने वाली है। इसमें कितना वक्त लगेगा ये कोई नहीं जानता लेकिन ऐसा कहा जा रहा है कि जल्द ही इस केस के दोषियों को फांसी होगी। अब सवाल ये है कि फांसी की प्रक्रिया क्या होगा। फांसी के दौरान क्या क्या होगा। दरअसल जब फांसी दी जाती है तो कोई आम आदमी वहां मौजूद नहीं होता। इसलिए सब लोगों के लिए ये जानना बहुत उत्साह भरा होता है कि आखिर फांसी के वक्त होता क्या-क्या है। जल्लाद किस तरह से दोषियों को फांसी देता है, आइये जानते हैं फांसी की पूरी प्रक्रिया।

जानें, फांसी के लिए क्यों तय होता है सुबह का समय, कान में कौन सा शब्द बोलता है जल्लाद

ये है फांसी की प्रक्रिया

फांसी की प्रक्रिया आसान नहीं होती। फांसी की सजा तय होने के बाद डेथ वॉरंट का इंतजार किया जाता है। दया याचिका खारिज होने के बाद ये वॉरंट कभी भी आ सकता है। दया याचिका में कभी कभी देर भी लगती है। जब किसी दोषी का डेथ वारंट जारी होती है तो उसमें फांसी का समय और तारीख दोनों चीजें लिखी होती हैं। जिन लोगों को मौत की सजा मिलनी होती है वो प्रक्रिया जेल मैनुअल के हिसाब से पूरी होती है। गौर करने वाली बात ये है कि हर राज्य का जेल मैनुअल एक जैसा नहीं होता। सबमें कुछ न कुछ अलग होता है।

आपको बता दें कि जेल सुप्रीटेंडेंट प्रशासन को भी डेथ वॉरंट की जानकारी देते हैं। अगर कैदी की जेल में फांसी की व्यवस्था नहीं होती तो उसके लिए नई जेल का चुनाव होता है।

अगर फांसी के समय की बात की जाए तो ये महीनों के हिसाब से अलग-अलग होता है। सुबह 6, 7 या 8 बजे लेकिन ये वक्त हमेशा सुबह का ही होता है। कभी भी दोपहर या शाम में फांसी नहीं दी जाती। इसके पीछे का कारण ये है कि इस वक्त पर यानी सुबह के वक्त बाकी कैदी सो रहे होते हैं। तो ऐसे में उन्हें फांसी के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती। साथ ही परिवारवालों को अंतिम संस्कार का भी दिन में मौका मिल जाता है। ये एक सुविधा बनाई गई है ताकि दिक्कतें न हों।

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जानें, फांसी के लिए क्यों तय होता है सुबह का समय, कान में कौन सा शब्द बोलता है जल्लाद

कैदी के परिवार को फांसी से 10-15 दिन पहले सूचना मिल जाती है ताकि आखिरी बार परिवार के लोग कैदी से मिल सकें। जेल में कैदी की पूरी चेकिंग भी होती है। जिसे फांसी दी जानी होती है उसे बाकी कैदियों से अलग सेल में रखा जाता है। ताकि कोई अनहोनी ना हो सके। फांसी के दिन फांसी कक्ष में कैदी के अलावा 3 लोग और होते हैं। जिसमे जेल सुप्रीटेंडेंट, मेडिकल ऑफिसर और मजिस्ट्रेट शामिल है।

दरअसल सुप्रीटेंडेंट फांसी से पहले मजिस्ट्रेट को बताते हैं कि मैंने कैदी की पहचान कर ली है और उसे डेथ वॉरंट पढ़कर सुना दिया है। और तो और डेथ वॉरंट पर कैदी का हस्ताक्षर होता है। जिसे फांसी दी जानी होती है उसकी अंतिम इक्षा भी पूरी की जाती है। जल्लाद फांसी देते वक्त कैदियों को कुछ बोलता है। अगर कैदी हिन्दू है तो राम राम और अगर कैदी मुस्लिम है तो सलाम। जिसके बाद वह चबूतरे से जुड़ा लीवर खींच देता हैं।

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