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आइए जानें, क्या है अपरा एकादशी का महत्व, व्रत विधि व कथा

आइए जानें, क्या है अपरा एकादशी का महत्व, व्रत विधि व कथा

ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है और इस एकादशी को अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है| ऐसा माना जाता हैं कि इस एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं| दरअसल भगवान विष्णु इस व्रत करने वाले  व्रती से प्रसन्न होकर अनंत पुण्य देते हैं| ऐसे में आइए जानते हैं इस एकादशी के महत्व, व्रत विधि और कथा के बारे में जानते हैं|बता दें कि इस साल अपरा एकादशी 30 मई को हैं|

आइए जानें, क्या है अपरा एकादशी का महत्व, व्रत विधि व कथा

महत्व

अपरा एकादशी का व्रत के करने से व्यक्ति परस्त्री गमन, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठी गवाही देना, झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना इत्यादि सब पाप नष्ट हो जाते हैं| इसके अलावा ब्रह्म हत्या, भू‍त योनि, दूसरे की निंदा इत्यादि के भी सब पाप दूर हो जाते हैं|

व्रत विधि

पुराणों के मुताबिक इस व्रत को करने के लिए व्यक्ति को दशमी के दिन शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए और रात के समय भगवान का ध्यान करके सोना चाहिए| इसके बाद अगले दिन यानि एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर ले और फिर भगवान विष्णु की पूजा करे, पूजा में श्रीखंड चंदन, तुलसीदल, गंगाजल व फलों का प्रसाद अर्पित करे| इतना ही नहीं व्रत रखने वाले व्यक्ति को पूरे दिन परनिंदा, झूठ, छल-कपट इत्यादि से बचना चाहिए|

व्रत कथा

शास्त्रो के मुताबिक महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था, राजा का छोटा भाई वज्रध्वज अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था| इस कारण वह उसे मारने के लिए मौके की तलाश में रहता था और एक दिन मौका पाकर उसने राजा की हत्या कर दी, हत्या करने के बाद वज्रध्वज के अपने बड़े भाई के लाश को पीपल के नीचे गाड़ दिया| लेकिन अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बन गयी और पीपल पर रहने लगी|महीध्वज की प्रेत आत्मा रास्ते से गुजरने वाले राहगीरों को परेशान करने लगी|

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आइए जानें, क्या है अपरा एकादशी का महत्व, व्रत विधि व कथा

ऐसे में उसी रास्ते से एक दिन एक ऋषि गुजर रहे थे और उन्होने महीध्वज के प्रेत आत्मा को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना, कारण जानने के बाद ऋषि ने राजा के प्रेत आत्मा को पीपल के पेड़ से नीचे उतार कर उसे परलोक विद्या का उपदेश दिया, राजा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने खुद अचला एकादशी का व्रत रहा| जब द्वादशी के दिन व्रत पुराहों गया तो उसका पुण्य ऋषि ने राजा के प्रेत आत्मा को दे दिया, इसके बाद राजा के प्रेत आत्मा को इस योनि से मुक्ति मिली|

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