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रुद्र के रूप, काशी कोतवाल काल भैरव की साधना से नहीं होता प्रेत बाधाओं का डर

रुद्र के रूप, काशी कोतवाल काल भैरव की साधना से नहीं होता प्रेत बाधाओं का डर

हिन्दुओं की भगवान शिवशंकर में विशेष आस्था है, पूरे भारत में शिवशंकर के बहुत से मंदिर मिल जाएंगे। शिव सबसे भोले और सरल देवता माने जाते हैं, इन्हें प्रसन्न करना बहुत ही आसान होता है ये अपने भक्तों को उनके अवगुणों के साथ भी स्वीकार कर लेते हैं, इनके पूजन में कड़वे फलों का चढ़ावा भी इसी का सूचक है। इन्हें विशेषत: बेलपत्र प्रिय होता है और इनकी पूजा में कोई भी फूल चढ़ाये जा सकते हैं। इनकी पूजा का विशेष दिन सोमवार माना जाता है और शिवरात्रि को इनका व्रत और पूजन विशेष तौर पर फलदायी और इच्छापूर्ति वाला होता है। इनके कई अवतार हुए हैं जिन्हें शिवावतार या रुद्रावतार कहते हैं क्योंकि इनका एक नाम रूद्र भी है। ये अवतार हैं – रामभक्त हनुमान, वीरभद्र, काल भैरव, आदि।

रुद्र के रूप, काशी कोतवाल काल भैरव की साधना से नहीं होता प्रेत बाधाओं का डर

बाबा कालभैरव का एक रूप बटुकभैरव भी है, शिवावतार होने के नाते इनमें असीम शक्तियाँ हैं। इनका बटुक भैरव रूप बहुत सौम्य जबकि कालभैरव का रूप उग्र है। कालभैरव को मृत्यु का देवता माना जाता है, कहते हैं कि जो भी बाबा कालभैरव की सच्चे मन से पूजा करता है उसे भूतप्रेत, जादूटोना व अन्य किसी प्रकार की बाधा का डर नहीं रहता। मन में जो भी नकारात्मकता होती है वो बाबा की कृपा से दूर हो जाती है।
बाबा भैरव की जन्म कथा बड़ी ही रोचक है, पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार भगवान शिव और नारायण में विवाद हो गया कि आखिर में श्रेष्ठ कौन है। इसके बाद दोनों ही महादेवों में श्रेष्ठता को लेकर युद्ध प्रारम्भ हो गया। जब देवताओं ने श्रेष्ठता के बारे में वेद से पूछा तो वेद का उत्तर था कि जिनके अंदर सम्पूर्ण विश्व प्रारम्भ से अंत तक भूत, भविष्य और वर्तमान समय हुआ है वो भगवान शंकर ही हैं परन्तु ब्रह्माजी ने शंकर का अपमान कर दिया, उन्होंने अपने पाँचवे मुख से अपशब्द कह डाले।

शिवजी यह सहन नहीं कर पाए और उनके तेज से काल भैरव की उत्पत्ति हुई। उन्होंने काल भैरव को आदेश दिया कि ब्रह्मजी पर विजय प्राप्त कर शासन करो। इसके बाद कालभैरव ने अपने नाखून से ब्रह्मजी का पांचवा सिर काट दिया, इससे उन्हें ब्रह्महत्या का पाप लगा। शिवजी ने कहा कि इसका प्रायश्चित करने के लिए तुम्हे पृथ्वी पर जाना होगा जब ये शीश पृथ्वी पर गिर जाए तो प्रायश्चि हो गया। उसके बाद शीश काशी में गिरा और बाबा कालभैरव काशी में विराजमान हो गए। तभी से उन्हें वहां का कोतवाल कहा जाने लगा। मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति बाबा की इजाजत के बिना वहां नहीं रह सकता।

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बाबा विश्वनाथ को जहाँ काशी का राजा माना जाता है वहीं बाबा कालभैरव को कोतवाल भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि काशी कोतवाल काल भैरव के बिना काशी यात्रा अधूरी है, अगर आपने काशी यात्रा में बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए और बाबा भैरव के दर्शन नहीं किए तो फल की प्राप्ति नहीं होती।

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