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जानिये कैसे इन दो महिलाओं ने अपनी डिसेबिलिटी को बनाई अपनी ताकत, लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में 4 बार दर्ज है नाम

अक्सर लोगों को इस बता कि शिकायत रहती है कि उन्हें कोई प्रेरित नहीं करता है या उनके आसपास ऐसा कोई है नहीं जिससे उन्हें प्रेरणा मिले और वो भी कुछ बड़ा कर पाए जैसा तमाम लोग करते हैं. मगर सच्चाई ये है कि जिसे प्रेरणा चाहिये होती है तो तस्वीर और मूर्ति से भी ले लेता है, छिय तो खुद के अन्दर की ताकत और हौसले को पहचानने की। आज उम आपके सामने एक ऐसी महिला की कहानी बताने जा रहे हैं जिसने ना सिर्फ तमाम परेशानियों को झेला है बल्कि बहुत बड़ी जिम्मेदारी के साथ अपना और अपनी माँ का नाम रौशन किया है।

दीपा मलिक भारत की पहली महिला एथलीट हैं, जिन्होंने भारत के लिए पैरालिंपिक गेम्स में मेडल जीता। 3 ट्यूमर सर्जरीज के बाद दीपा पैरालाइज हो गई थीं, लेकिन अपनी इस मेडिकल कंडिशन के बावजूद उन्होंने चार बार लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया। दीपा भारत की चर्चित खिलाड़ी में शामिल रही हैं। अब तक वह 23 मेडल्स जीत चुकी हैं, जिसमें साल 2012 में मिला अर्जुन सम्मान भी शामिल है। इसके अलावा उन्हें खेल रत्न और पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है। दीपा मलिक की बेटी देविका मलिक भी उन्हीं की तरह प्रतिभाशाली रही हैं। देविका Wheeling Happiness की फाउंडर हैं, पैरा एथलीट के तौर पर कई अवॉर्ड्स जीत चुकी देविका Queen's Young Leaders Award से भी सम्मानित की जा चुकी हैं। साल 2018 में देविका को वुमन ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया। बहुत कम उम्र में बड़े अचीवमेंट्स हासिल करनेन वाली देविका फोर्ब्स 30 अंडर 30 की 2020 लिस्ट में शामिल हो चुकी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद उन्हें सम्मानित कर चुके हैं। दीपा मलिक और उनकी बेटी देविका मलिक, दोनों ही अपने-अपने क्षेत्रों में अव्वल रही हैं। मां-बेटी की यह जोड़ी आज के दौर की सभी महिलाओं को इंस्पायर करती है। दीपा मलिक और उनकी बेटी देविका, दोनों ने ही अपनी लाइफ में कई बड़े चैलेंजेस का सामना किया, लेकिन उन्होंने इन मुश्किलों को कभी भी खुद पर हावी नहीं होने दिया। मां-बेटी की इस जोड़ी ने जिंदगी के हर मोड़ पर एक-दूसरे का हौसला बढ़ाया और साथ-साथ कई कामयाबियां हासिल कीं। इस जोड़ी ने HerZindagi के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत की और बताया कि अपनी लाइफ जर्नी में कैसे उन्होंने एक-दूसरे को सपोर्ट किया

मां और बेटी ने साथ मिलकर जीती जिंदगी की जंग

दीपा मलिक की जिंदगी में वो दौर सबसे ज्यादा मुश्किल था, जब उन्हें पता चला कि बचपन में हुआ स्पाइनल ट्यूमर फिर से हो गया है। यह 1999 की बात है। इस समय वह मुश्किल से हफ्ते भर ही अपने पैरों पर खड़ी हो पाई थीं। दीपा की 3 ट्यूमर सर्जरी हुईं और उनका छाती से नीचे का हिस्सा सुन्न हो गया। दीपा मलिक को इस वक्त में सबसे ज्यादा चिंता थी अपनी बेटियों की। वह सोच रही थीं कि इस हाल में वह अपनी बेटियों की परवरिश कैसे कर पाएंगी। लेकिन उन्होंने ठान लिया था कि वह घर तक सिमट कर या फिर दूसरों पर बोझ बनकर नहीं रहेंगी। साथ ही उन्होंने यह भी महसूस किया कि स्पोर्ट्स से उन्हें अपनी एनर्जी को सही दिशा देने में मदद मिलेगी। दीपा इस बारे में बताती हैं, 'मुझे बचपन में ट्यूमर हुआ था और 3-4 साल तक इससे जूझती रही थी। मैंने 1 साल बहुत सब्र के साथ अस्पताल में बिताया था। मेरी सर्जरी हुई और मेरा रिहैबिलिटेशन हुआ, उससे मेरा चलना मुमकिन हो पाया। लेकिन जब डॉक्टर्स ने कहा कि मेरा ट्यूमर वापस आ गया है तो मुझे उम्मीद थी कि चीजें बेहतर हो जाएंगी। ये ट्यूमर जब 23 साल बाद रीलैप्स हुआ था। तब तक मेडिकल के क्षेत्र में बहुत तरक्की नहीं हुई थी। सीटी स्कैन नहीं थे, रोबोटिक्स नहीं थे, लेकिन इसके बावजूद तब मैं चल पड़ी थी। मुझे भरोसा था कि शायद मैं रिकवर कर जाऊं। देविका का भी बचपन में एक्सिडेंट हुआ था, वह बॉडी के एक साइड से पैरालाइज हो गई थी। देविका को इस कंडिशन से उबारने के लिए मैंने काफी मेहनत की थी। देविका अब लगभग 90 फीसदी तक उबर चुकी है। अभी भी उसे थोड़ी मुश्किल होती है, लेकिन वह साइक्लिंग कर सकती है, दौड़ सकती है। इन एक्सपीरियंस के मद्देनजर मुझे लगता था कि मैं ठीक हो जाऊंगी। उस वक्त मेरे पति कारगिल पर मोर्चा संभाले हुए थे। मेरी सर्जरी 1999 में हुईं। मेरे पास मजबूत रहने के सिवाय कोई और विकल्प नहीं था। उस वक्त जैसे हालात थे, उसमें मैंने सोच लिया था कि अपनी दोनों बेटियों के लिए मुझे स्ट्रॉन्ग बनना होगा। डॉक्टरों ने मुझे बताया कि मेरा छाती के नीचे का हिस्सा सुन्न हो जाएगा, लेकिन मुझे इस बात का संतोष था कि मैं कम से कम बोल पाऊंगी, अपनी बेटियों को सुपरवाइज कर पाऊंगी।' बेटियों के लिए दीपा बड़े से बड़े दर्द को हंसकर सहती रहीं और इसी हौसले ने उनकी बेटियों को भी मजबूत बनाया।

deepa malik

देविका को मां से मिली मजबूती

अगर मां लाइफ के बड़े से बड़े चैलेंज को कूल तरीके से हैंडल करे तो परिवार के लिए भी उस स्थिति का सामना करना थोड़ा आसान हो जाता है। दीपा मलिक अपने बेटियों को हमेशा स्ट्रॉन्ग देखना चाहती थीं, इसीलिए ट्यूमर रीलैप्स होने के बावजूद उन्होंने किसी तरह की घबराहट जाहिर नहीं की। बेटियों को इससे बहुत हिम्मत मिली। इस बारे में देविका बताती हैं, 'जब मेरी मां इतनी बड़ी मुश्किलों से जूझ रही थीं, तब उनके साथ हम दोनों बेटियां और नाना-नानी थे। उस वक्त में मुझे मां ने समझाया था कि वह कुछ वक्त तक अस्पताल में रहेंगी और फिर घर आ जाएंगी। मैं उस वक्त 7-8 साल की थी। जब पहली बार उन्हें डॉक्टर ने उन्हें व्हील चेयर पर बैठने की इजाजत दी, तब मेरा चौथी क्लास का रिजल्ट आया था और मैं फर्स्ट आई थी। मां जब मेरे पास पहुंची तो मैं बहुत गर्व महसूस कर रही थी। बहुत लोग मुझसे सवाल करते हैं कि तुम्हारी मां तो व्हील चेयर पर हैं, लेकिन मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, उन्होंने इतने बड़े सम्मान अर्जित किए हैं और वो कहीं ज्यादा मायने रखते हैं।' दीपा मलिक के एक स्ट्रॉन्ग फाइटर के तौर पर सामने आने से देविका की नजरों में उनकी इज्जत और भी ज्यादा बढ़ गई। देविका ने कभी अपनी मां से किसी बात के लिए शिकायत नहीं की, बल्कि हर कदम पर उनके साथ उनका सहारा बनकर चलीं, जिससे उन्हें भी ताकत मिली।

बेटियों की खातिर 36 साल की उम्र में दीपा बनीं एथलीट

अपनी बेटियों को इंस्पायर करने के लिए दीपा मलिक उस उम्र में एथलीट बनीं, जब ज्यादातर खिलाड़ी रिटायरमेंट लेने की सोचते हैं। दीपा मलिक ने 36 साल की उम्र में स्विमर, बाइकर, एथलीट और एडवेंचर स्पोर्ट्स में हिस्सा लेने का फैसला किया। दीपा ने Himalayan Motorsports Association जॉइन की और जीरो डिग्री से भी नीचे के तापमान में बाइक पर 8 दिन में 1700 किमी का सफर तय किया। स्विमर के तौर पर उन्होंने कई रिकॉर्ड तोड़े। दीपा ने साल 2013 में चेन्नई से दिल्ली तक का 3278 किमी का सफर तय किया और Khardunga La pass को पार करनेन वाली पहली paraplegic woman बनीं। दीपा के ये अचीवमेंट्स जाहिर करते हैं कि उनके अंदर कुछ कर दिखाने का जुनून था और व्हील चेयर पर होने के बावजूद वह रुकने को तैयार नहीं थीं। इस बारे में दीपा बताती हैं, 'मेरे साथ कई तरह की मुश्किलें थीं। मेरा ब्लैडर कमजोर था, बाहर जाते हुए यह सोचना पड़ता था कि मेरे लिए व्हील चेयर जाने से जाने लायक बड़े बाथरूम मिल पाएंगे या नहीं। मेरे पति का भी एक-जगह से दूसरी जगह ट्रांसफर होता रहता था। लेकिन मैं कभी इन मुश्किलों से डरी नहीं। मुझे चैलेंजेस का सामना करना अच्छा लगता था। मुझे सफर करना अच्छा लगता था। मुझे अपनी बाधाओं को पार करने पर खुशी महसूस होती थी। जब मैं इन-लॉज के साथ रहने गई और जब यह सोचा गया कि मैं दूसरों पर बोझ बन जाऊंगी तो उन स्थितियों ने मुझे एनर्जी दी। अपनी डिसेलिबिटीज का सामना करते हुए मैं उस मुकाम पर पहुंचना चाहती थी, जहां मैं अपनी काबिलियत साबित कर सकूं। मैं चाहती थी कि बेटियों के साथ मेरी मैमोरीज फन, फिटनेस, ट्रेवल और एडवेंचर से भरी हो।' बेटियों के लिए दीपा ने खुद को इतना मजबूत बनाया कि जिंदगी की कोई भी मुश्किल उन्हें हरा नहीं सकी।

देविका को मां से मिला जीत का हौसला

बचपन में एक्सिडेंट की शिकार होने के बाद देविका मलिक की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई थी। वह ठीक से खड़ी नहीं हो पाती थीं, हर काम बहुत धीरे-धीरे कर पाती थीं, क्लास में बच्चे उनसे तरह-तरह के सवाल पूछते थे, कभी कुछ बुरा भी बोल देते थे, लेकिन इन चीजों से देविका ने कभी दिल छोटा नहीं किया, क्योंकि मां दीपा मलिक ने उन्हें हमेशा हौसला दिया, अपनी स्थितियों से लड़ने की ताकत दी। देविका बताती हैं, 'मां मुझे कहती थीं कि आपके पापा का ट्रांसफर होता रहता है, हम हर बार नई जगह पर जाएंगे, जहां नए लोग आपसे वही सवाल फिर से दोहराएंगे। आपको लोगों को यह बताना पड़ेगा कि आपकी मेडिकल कंडिशन अलग है, जिसके चलते आप अलग नजर आती हैं। आपको अपनी बात खुद कहने की हिम्मत जुटानी होगी। इसके बाद मैंने स्कूल में अपनी कंडिशन के बारे में बात करनी शुरू की। जब कॉलेज गई तो वहां भी कुछ स्टूडेंट्स ने मेरा मजाक बनाया, लेकिन जब उन्हें मैंने उन्हें अपनी मेडिकल कंडिशन बताई तो वे अपने व्यवहार के लिए शर्मिंदा हो गए।' देविका ने अपनी परिस्थितियों से हार नहीं मानते हुए अपनी काबिलियत साबित की। मां से मिली इंस्पिरेशन से उन्होंने पैरा एथलीट के तौर पर बेहतरीन प्रदर्शन किया। मां से मिली इंस्पिरेशन से वह बचपन से ही पब्लिक डिबेट्स में शामिल होने लगीं, इससे उन्हें कॉन्फिडेंट बनने और अपनी बातें आत्मविश्वास के साथ कहने में मदद मिली।

बेटियों ने हर मोड़ पर दिया मां का साथ

दीपा मलिक अपने स्पोर्ट्स करियर को आगे बढ़ाने के लिए दिल्ली शिफ्ट हो गई थीं और शुरुआत में उन्हें बहुत ज्यादा स्पॉन्सरशिप भी नहीं मिली थी। इस दौरान सही डाइट लेना उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण होता था। आमतौर पर मां अपने बच्चों को अपने हिस्से का खाना खिला देती हैं, लेकिन दीपा स्पोर्ट्स पर्सन होने के नाते अपनी डाइट में कभी समझौता नहीं करती थीं। दीपा बताती हैं, 'इस प्रोफेशन में हाई प्रोटीन डाइट लेने की जरूरत होती है। मैंने रोजाना 500 ग्राम चिकन और 6-7 अंडे भी रोज खाए हैं। जब फ्रिज में 6 अंडे बचते थे तो ये बात स्पष्ट होती थी कि मैं ही वो अंडे खाऊंगी। ये सिचुएशन बहुत अलग थी, लेकिन मेरी बेटियां यह बात समझती थीं।' छोटी उम्र से ही दीपा मलिक की दोनों बेटियों ने अपनी जिम्मेदारियां बखूबी समझ लीं और अपने फर्ज निभाए, इसी से दीपा मलिक अपने लक्ष्यों को पाने में सफल हुईं।

देविका को मां से मिली दिव्यांगों की जिंदगी संवारने की प्रेरणा

देविका ने अपने बचपन में जिस तरह की तकलीफें उठाईं, उसके बाद उन्होंने ठान लिया था कि वह दिव्यांगों की मदद के लिए हर संभव प्रयास करेंगी। देविका ने साइकोलॉजी में एमए किया है और वह अपनी मां की भी मदद करती थीं। इस बारे में दीपा मलिक बताती हैं, 'देविका मेरे साथ दिल्ली रहती थी। हम दोनों अपने डिसेबिल्टी से बाहर निकले थे। हम दोनों ने एक साथ पैरा एथलीट में कदम रखा था। हमें अपने चैलेंजेस का एक-साथ सामना किया। एक अहम बात ये रही कि हमने कभी भी अपनी स्थितियों को दोषी नहीं माना ना ही हमने किसी बात को लेकर दुख जाहिर किया। इसी पर देविका ने मुझसे कहा कि हमने कितनी मुश्किलें झेलीं, लेकिन हम कभी दुखी नहीं हुए। सच्ची खुशी अपने भीतर ही है और उसे पहचानने पर ही हम खुश रह सकते हैं। अपने लक्ष्यों पर काम करने के साथ हम लोगों की मदद करते रहे और इसी दिशा में काम करते-करते व्हीलिंग हैप्पिनेस को दिशा मिली।' देविका अपनी मां से सीख लेते हुए अब तक कई जरूरतमंद दिव्यांगों को आत्मनिर्भर बनने में मदद कर चुकी हैं। उनके सराहनीय प्रयासों के लिए अमिताभ बच्चन के शो 'कौन बनेगा करोड़पति' में इसका जिक्र किया गया। देविका को 30 अंडर 30 लिस्ट में शामिल होने के साथ कई प्रतिष्ठित सम्मानों से भी नवाजा गया।

दीपा मलिक और देविका मलिक, दोनों की मेडिकल कंडिशन देखते हुए एक समय में लोग उनके साथ सहानुभूति जताते थे, लेकिन आज ये मां-बेटी 10,000 से ज्यादा लोगों की मदद कर रहे हैं। लॉकडाउन में भी दीपा और देविका जरूरतमंद लोगों को खाना खिला रहे हैं और दिव्यांगों की फैमिली को सपोर्ट कर रहे हैं। जो महिलाएं अपनी मुश्किलों से हार मान लेती हैं, उनके लिए मां-बेटी की यह जोड़ी एक बड़ी इंस्पिरेशन है। इस जोड़ी ने अपनी डिसेबिलिटी को ही अपनी ताकत बना लिया और साथ मिलकर असंभव लगने वाली चीजों को भी संभव कर दिखाया। इस मदर्स डे पर दीपा और देविका को उनके कभी हार ना मानने के जज्बे के लिए हरजिंदगी का सलाम।

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