कृष्ण जी के जन्म वाली रात घटी थी ये 5 अनोखी घटनाएं, जानते हैं आप !
Youthtrend religion Desk : इस बात से तो हम सभी बेहतर वाकिफ हैं कि भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएं अपरम्पार हैं हालाँकि हम ये भी जानते हैं कि उनका जीवन ही संघर्ष से शुरू हुआ लेकिन इसकी शिकन कभी उनके चेहरे पर नहीं दिखी। वह हमेशा मुस्कराते हुए बंशी बजाते रहते थे और दूसरों को भी समस्याओं को ऐसे ही मुस्कराते हुए सुलझाने की सीख देते थे। ऐसे मुरली मनोहर के जन्म की रात 5 अनोखी घटनाएं हुई थीं। तो चलिए जानते हैं थोड़ा विस्तार से
नींद में वसुदेव कर गए महान काम
जब कृष्ण का जन्म हुआ तो जेल के सभी संतरी योगमाया द्वारा गहरी नींद में सो गए। इसके बाद बंदीगृह का दरवाजा अपने आप ही खुल गया। उस वक्त भारी बारिश हो रही थी। वसुदेवजी ने नन्हें कृष्ण को एक टोकरी में रखा और उसी भारी बारिश में टोकरी को लेकर वह जेल से बाहर निकल गए। वसुदेवजी मथुरा से नंदगांव पहुंच गए लेकिन उन्हें इस घटना का ध्यान नहीं था।
यमुना का उफनता जल हुआ शांत
श्रीकृष्ण के जन्म के समय भारी बारिश हो रही थी। यमुना नदी उफान पर थी। वसुदेवजी कन्हैया को टोकरी में लेकर यमुना नदी में प्रवेश कर गए और तभी चमत्कार हुआ। यमुना के जल ने कन्हैया के चरण छुए और फिर उसका जल दो हिस्सों में बंट गया और इस पार से उस पार रास्ता बन गया। उसी रास्ते से वसुदेवजी गोकुल पहुंच गए।
बच्चों की हुई अदला-बदली, कोई भी ना जान पाया
वसुदेव कृष्णजी को यमुना के उस पार गोकुल में अपने मित्र नंदगोप के यहां ले गए। वहां पर नंद की पत्नी यशोदाजी ने एक कन्या को जन्म दिया था। वसुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को साथ ले आए।
नंदराय ने किया स्वागत
कथा के अनुसार, नंदरायजी के यहां जब कन्या का जन्म हुआ तभी उन्हें पता चल गया था कि वसुदेवजी कृष्ण को लेकर आ रहे हैं। तब वह अपने दरवाजे पर खड़े होकर उनका इंतजार करने लगे। फिर जैसे ही वसुदेवजी आए उन्होंने अपने घर जन्मी कन्या को गोद में लेकर वसुदेवजी को दे दिया। हालांकि इस घटना के बाद नंदराय और वसुदेव दोनों ही यह सबकुछ भूल गए थे। यह सबकुछ योगमाया के प्रभाव से हुआ था।
देवी विंध्यवासिनी का प्राकट्य
वसुदेवजी नंदबाबा के घर जन्मीं कन्या यानी कि योगमाया को लेकर चुपचाप मथुरा के जेल में वापस लौट गए। बाद में जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म का समाचार मिला तो वह कारागार में पहुंचा। उसने उस नवजात कन्या को पत्थर पर पटककर जैसे ही मारना चाहा, वह कन्या अचानक कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुंच गई और उसने अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित कर कंस वध की भविष्यवाणी की। इसके बाद वह भगवती विन्ध्याचल पर्वत पर वापस लौट गईं और विंध्याचल देवी के रूप में आज भी उनकी पूजा-आराधना की जाती है।