क्या 5G से बढ़ जायेगी कैंसर की बीमारी, पढ़ें पूरी खबर
5G Techniques: बीते 1 अक्टूबर 2022 को प्रधानमंत्री मोदी ने भारत में 5G तकनीक की लॅाचिंग की। जिसके बाद भारत के 13 चुनिंदा शहरों में 5G सर्विस की शुरुआत कर दी गई और आने वाले दो सालों में पूरे देश में ये सेवा शुरु हो जाएगी। वहीं 5G की लॅाचिंग के बाद से एक खबर चर्चा में आ रही है कि इस तकनीक से कैंसर (Cancer) होने का खतरा और बढ़ जाएगा, लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर इस बात में किस हद तक सच्चाई हैं, क्या वाकई में 5G सर्विस Cancer जैसी घातक बीमारी के खतरे को बढ़ावा देगी। आइए इस बात में कितनी सच्चाई है इसे जानने की कोशिश करते है…
जानिए 5G की वर्किंग के बारे में
एक्सपर्ट्स के अनुसार, ज्यादा एनर्जी और ज्यादा फ्रीक्वेंसी वाले रेडिएशन से Cancer होने का खतरा रहता है। ऐसे रेडिएशन को आयोनाइजिंग रेडिएशन कहते हैं। एक्स-रे, गामा-रे और अल्ट्रावॉयलेट किरणें इसका एक Example हैं। वहीं मोबाइल फोन में कम एनर्जी और कम फ्रीक्वेंसी वाले रेडिएशन का इस्तेमाल होता है। ये नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन की कैटेगरी में आते हैं। इसलिए मोबाइल फोन से कैंसर की संभावना काफी कम रहती है।
- वहीं अगर इसे नेटवर्क के तौर में देखा जाए तो 4G के मुकाबले 5G नेटवर्क की फ्रीक्वेंसी ज्यादा है, लेकिन ये हमारे शरीर के टिशूज को नुकसान नहीं पहुंचाती। ध्यान रहें कि 5G नेटवर्क वाली ये बात मोबाइल फोन और टावर दोनों पर लागू होती है।
- वहीं एक्सपर्ट्स के अनुसार मोबाइल नेटवर्क टेक्नोलॉजी केवल तभी हार्मफुल है, जब ये शरीर के टिशूज को गर्म करने लगे। दरअसल, बहुत ज्यादा एनर्जी या हाई रेडिएशन से पैदा होने वाली गर्मी से न केवल हमारा इम्यून सिस्टम बल्कि DNA तक डैमेज हो सकता है। यानी हाई फ्रीक्वेंसी वाला रेडिएशन हमारी सेहत पर असर डाल सकता है, लेकिन 5G टावर से निकलने वाले रेडिएशन के कम फ्रीक्वेंसी के कारण हमारी हेल्थ पर असर नहीं पड़ता है।
- अब बात करें अमेरिका की फेडरल कम्युनिकेशंस कमीशन यानी FCC की करेंट गाइडलाइन की तो इसके अनुसार, लोगों को 300 किलोहर्ट्ज से लेकर 100 गीगाहर्ट्ज तक के रेडिएशन से खतरा नहीं होता है। दुनिया के ज्यादातर देशों में अभी 5G फ्रीक्वेंसी की रेंज 25-40 गीगाहर्ट्ज के आसपास है और 100 गीगाहर्ट्ज से कम है। भारत में 5G के लिए 600 मेगाहर्ट्ज से 24-47 गीगीहर्ट्ज फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल होगा।
क्या 5G से कैंसर हो सकता है?
सभी तथ्यों को समझने के बाद अब सवाल आता है कि क्या 5जी से Cancer का खतरा हो सकता है, तो बता दें कि अभी तक हुई रिसर्च के अनुसार 5G से कैंसर होने का खतरा काफी कम है। लकिन अभी इसे लेकर ज्यादा रिसर्च नहीं हुई है, तो इसे पूरी तरह से नाकारा भी नहीं जा सकता है। वहीं वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन यानी WHO 5G के Health से जुड़े खतरों का आकलन कर रहा है, जिसकी रिपोर्ट इस साल के लास्ट तक आने की संभावना है। वहीं WHO के अनुसार अभी तक मोबाइल टेक्नोलॉजी का इंसान की सेहत से जुड़ा कोई नुकसानदायक प्रभाव सामने नहीं आया है।
बता दें कि कुछ साल पहले WHO की एक रिपोर्ट सामने आई थी जिसके अनुसार, मोबाइल फोन के इस्तेमाल के बजाय शराब पीने या प्रोसेस्ड मीट खाने से कैंसर होने का खतरा ज्यादा रहता है।
5G से कैंसर के खतरे को पूरी तरह नहीं नकार सकते
- इंसान की सेहत पर 5G के असर को लेकर 2021 में पैनल ऑफ फ्यूचर ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑफ यूरोपियन पार्लियामेंट्री ने एक स्टडी की थी। जिसमें बताया गया कि 450 से 6000 मेगाहर्ट्ज फ्रीक्वेंसी वाले रेडिएशन से इंसानों में कैंसर होने का खतरा रहता है। इससे खासतौर पर गिल्योमा और एकॉस्टिक न्यूरोमा जैसे कैंसर (Cancer) होने का खतरा रहता है।
- बता दें कि गिल्योमा-दिमाग और रीढ़ की हड्डी में होने वाला कैंसर हैं। एकॉस्टिक न्यूरोमा भी दिमाग में होने वाला एक कैंसर है, जिससे सुनने की कैपेसिटी खत्म होने लगती है। 2011 में इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर यानी IARC ने कहा था कि मोबाइल का रेडिएशन इंसानों में कैंसर की वजह बन सकता है। इस रिसर्च को 14 देशों के 30 वैज्ञानिकों ने मान्यता दी थी।
तब से अब तक कई रिसर्च में मोबाइल के रेडिएशन और मस्तिष्क कैंसर के बीच संभावित लिंक की जांच की गई है, लेकिन यह साबित नहीं हो पाया है। वहीं भारत में 5G की तैयारियों के लिए 2020 में कांग्रेस सांसद शशि थरूर की अगुआई में बनी पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी ने मार्च 2022 में अपनी 21वीं रिपोर्ट में कहा कि देश में अभी 5G टेक्नोलॉजी शुरुआती स्टेज में है, ऐसे में इसके रेडिएशन का सेहत पर पड़ने वाला असर तभी साफ होगा, जब इसका बड़े स्तर पर इस्तेमाल होगा।
पहले भी कई तरह की अफवाएं फैलाई जा चुकी है
बता दें कि 90 के दशक में भी ऐसी कई अफवाएं और खबरें फोन को लेकर सुनने को आई थी, जिसमें कुछ लोगों का कहना था कि कान पर फ़ोन लगा कर रखने से कैंसर का खतरा सकता है। जिसके बाद लोग मोबाइल फ़ोन कंपनियों को कोर्ट तक घसीटने लगे क्योंकि उनका मानना था कि नई टेक्नॅालजी का असर उनके हेल्थ पर पड़ रहा है। वहीं कोर्ट ने इस तरह के मामले खारिज कर दिए थे, लेकिन हां इसके बाद ये चर्चा का विषय ज़रूर बन गया था।
बता दें कि ये उस समय की बात है जब मोबाइल फ़ोन तकनीक अपने शुरुआती दौर में ही थी, तब सन् 1973 में मोटोरोला ने पहला मोबाइल फ़ोन बनाया था, लेकिन पहली बार 1983 में आम लोगों ने फ़ोन का इस्तेमाल किया।
इसके अलावा सन् 1993 में टेलीविज़न पर एक लाइव प्रोगाम के दौरान एक शख्स ने अपनी पत्नी को मोबाइल फ़ोन रेडिएशन के कारण ब्रेन ट्यूमर होने की बात कही थी, इतना ही नहीं उसने अपनी पत्नी की मौत के लिए तीन कंपनियों को ज़िम्मेदार भी ठहराया और कोर्ट में चुनौती भी दी थी।
5G सर्विस को लेकर जूही चावला भी कोर्ट में डाल चुकी याचिका
बता दें कि 5जी तकनीक को लेकर पिछले साल एक्ट्रेस जूही चावला, वीरेश मलिक और टीना वाच्छानी ने कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि “ऐसी तकनीक से गंभीर ख़तरे हैं, हमारी गुज़ारिश है कि 5G को उस वक़्त तक रोक दिया जाए, जब तक सरकार पुष्टि ना करें कि इस तकनीक से कोई ख़तरा नहीं है, लेकिन कोर्ट ने इस पीटिशन को खारिज कर दिया था।
इन बातों के आधार पर हम ये कह सकते है कि शुरु से ही नए आविष्कारों को लेकर लोगों के मन में हमेशा डर रहा है और कई तरह की भ्रामक बातें फैलाई गई है।
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