ये हैं देश की सशक्त महिला एथलीट, जो बन रही हौसले और जुनून की मिसाल
कहते हैं जब कोई व्यक्ति किसी काम को करना की ठान लेता हैं तो उसे अपनी हिम्मत और दृढ़ निश्चय से पूरा कर ही लेता हैं भले ही उसकी जिंदगी में कितनी बाधाएं आये, आज हम आपके सामने कुछ ऐसे ही लोगों की कहानी लेकर आए हैं जिन्होंने अपने शरीर की अक्षमता को कोई बहाना नही बनाया और हर जगह देश का और अपना नाम रोशन किया। जब भी हम किसी एथलीट के गले में किसी मेडल को देखते हैं तो हमें सिर्फ वो मेडल ही नहीं देखना चाहिए बल्कि उस मेडल के पीछे छुपी उसकी मेहनत, उसका संघर्ष और उसका बलिदान भी देखना चाहिए।
लगातार मेहनत कर रही हैं महिला एथलीट
जब देश में बात महिला एथलीट बनने की आती हैं तो संघर्ष और बलिदान की परिभाषा बदल जाती हैं, ऐसे में उन्हें समाज की पुरानी सोच से भी लड़ना पड़ता हैं। देश में ऐसी महिला खिलाड़ी जो सुविधाओं के अभाव में कही गुम ना हो जाये इसके लिए वेलस्पन फाउंडेशन फॉर हेल्थ एंड नॉलेज उनके लिए कार्य कर रहा हैं। इस फाउंडेशन का मुख्य लक्ष्य महिला एथलीटों को हर तरह की सहायता प्रदान करना हैं ताकि वो आगे बढ़ सके।
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मिलिए पेरा-बैडमिंटन खिलाड़ी पलक कोहली से
शायद पलक ने भी खुद नहीं सोचा होगा कि हाथ में अपंगता होने के बावजूद वो एक पेरा-बैडमिंटन खिलाड़ी बन सकती हैं, दरअसल 5 साल पहले जब पलक अपने स्कूल में दोस्तो के साथ हैंडबॉल खेलने का प्रयास कर रही थी तो उनकी टीचर ने उन्हें ये खेल ना खेलने की सलाह दी और कहा कि अपना ध्यान पढ़ाई में केंद्रित करो। उन्होंने ये भी कहा कि पढ़ाई पूरी करने के बाद दिव्यांग कोटे से कोई नौकरी हासिल कर, लेकिन पलक को टीचर की ये बात काफी परेशान कर गई।
उन्होंने आगे बताया कि एक बार अपनी मां के साथ मॉल जाते समय एक अनजान व्यक्ति ने उनसे उनके हाथ के बारे में पूछा तो उन्होंने ये भी बताया कि किस प्रकार वो एक पैरा-बैडमिंटन का अच्छी खिलाड़ी बन सकती हैं जिसके लिए वो खुद उन्हें ट्रेनिंग देंगे। कुछ दिनों बाद उन्होंने उस शख्स जिसका नाम गौरव खन्ना था, से संपर्क किया और पैरा-बैडमिंटन के गुर सीखे और 2020 में टोक्यो पैरालंपिक के लिए शामिल होने वाली विश्व की सबसे कम उम्र की पैरा-बैडमिंटन प्लेयर बनी।
कहानी दो जुड़वा तैराक बहनों की
केवल 23 साल की उम्र में ही 55 राष्ट्रीय पदक जीतने का कारनामा मुंबई की दो जुड़वा बहनों आरती और ज्योति ने कर दिखाया हैं। स्विमिंग में कैरियर बनाने को लेकर प्रेरणा उन्हें अपने घर से ही मिली, दोनों बहनों में से एक आरती के अनुसार जब वो दोनों बहनें मात्र 9 महीने की थी तो उनके पिता ने उनको तैराकी की शुरुआत कर दी थी। उन दोनों के पिता भी एक अच्छे तैराक हैं और 2003 में मात्र 13 घंटे और 10 मिनट में उन्होंने ग्रीस में समुद्री मैराथन पूरी की थी।
उन्होंने बताया कि उनके पिता मुंबई पुलिस में बतौर कांस्टेबल के पद पर कार्यरत हैं और नाईट ड्यूटी पूरी करने के बाद दोनों बहनों कज ट्रेनिंग सुबह 6:30 से शुरू होकर दिन में 12 बजे तक चलती हैं, और फिर दुबारा से ट्रेनिंग शाम को शुरू हो जाती हैं।
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पैरा-एथलीट सुवर्णा मां के साथ पैरा टेबल टेनिस खिलाड़ी भी
अब हम बात कर रहे हैं 39 वर्ष की सुवर्णा राज की जो वर्तमान में पैरा-एथलीट हैं और बेहतरीन टेबल टेनिस खिलाड़ी भी हैं, सुवर्णा काफी लोगो के लिए प्रेरणास्रोत हैं क्योंकि पैरा टेबल टेनिस खिलाड़ी होने के साथ वो एक मां, एक्टिविस्ट, सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। सुवर्णा ने 2013 में थाईलैंड में हुए पैरा टेबल टेनिस ओपन में दो पदक और बहुत से अंतरराष्ट्रीय पदक भी अपने नाम किये थे।
जब सुवर्णा मात्र दो वर्ष की थी तो उनके पैरों में पोलियो हो गया था उसके बाद ये तय हो गया था कि उन्हें जीवन भर व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ेगा पर इस घटना ने उनके खेल के जुनून को कभी कम नहीं होने दिया। उनके माता-पिता ने उन्हें बहुत ही छोटी उम्र में हॉस्टल में पड़ने भेज दिया था जिसके बाद उन्होंने वहां जाकर अपने सपने को जिंदा रखा। सुवर्णा को 2013 में अपने खेल के लिए राष्ट्रीय महिला उत्कृष्टता पुरुस्कार से नवाजा गया हैं।