Teachers’ Day : जब अमेरिकी नागरिक भी डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के हो गए थे मुरीद, बजने लगा था उनके नाम का डंका
Teachers’ Day : वो दोहा तो आपने सुना ही होगा गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष, गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष…अर्थात गुरु के बैगैर मुक्ति नहीं मिलती है क्योंकि व्यक्ति मोह माया में ही उलझा रहता है। गुरु के दिए ज्ञान के अभाव में वह सत्य की पहचान भी नहीं कर पाता है। गुरु के द्वारा सत्य की पहचान करवा देने के बाद ही सारे दोष समाप्त होते हैं। यह केवल दोहा (Doha) नहीं इसमें हमारे जीवन (life) का सबसे महत्वपूर्ण सार निहित है, क्योंकि हमारे जीवन में गुरु (Teacher) का स्थान सबसे सर्वोच्च होता है। अगर गुरु न तो होते तो अर्जुन (Arjun) को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कौन बनाता, युधिष्ठिर को धर्म का ज्ञान कहां से आता, महर्षि सांदीपनि नहीं होते तो कान्हा, भगवान श्रीकृष्ण (Shri krishna) कैसे बनते, चाणक्य (Chanakya) के बिना चंद्रगुप्त मौर्य होते? बिना गुरु (Teacher) के ज्ञान संभव नहीं है। हर साल शिक्षकों के सम्मान में 5 सितंबर को टीचर्स डे (Teachers’ Day) मनाया जाता है।
इस दिन देश के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radha Krishnan) का जन्म हुआ था और उन्हीं के सम्मान में इस दिन को ‘शिक्षक दिवस’ (Teacher’s Day) के रूप में मनाया जाता है। डॅा. साहब के इच्छानुसार, उनके जन्मदिवस को टीचर्स डे (Teachers’ Day) के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है। इस खास अवसर पर आज हम आपको डॅा राधाकृष्णन जी से जुड़ी कुछ दिलचस्प बाते बताएंगे, जिसे आपने शायद ही कभी सुना होगा। ये आपके जीवन को एक अलग ऊर्जा और प्रेरणा देगी….
Teachers’ Day : प्यार से लोग कहते थे प्रो साहब
डॉक्टर सर्वपल्ली को प्यार और सम्मान से लोग प्रोफेसर साहब (Professor) कहकर बुलाते थे। उन्होंने आजाद भारत (India) के पहले उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति (President) का पद संभाला था। उन्हें राज्यसभा के सबसे कुशल सभापति के रूप में भी जाना जाता था, जिसकी एक युक्ति से चाहे पक्ष हो या विपक्ष चुप हो जाता था। वह देश के इकलौते ऐसे राष्ट्रपति थे, जिसने दो युद्ध देखे और दो कार्यवाहक प्रधानमंत्रियों (Prime Minister) को शपथ दिलाई।
Calcutta University में विदाई के दौरान छात्र हुए भावुक
साल 1921 में मैसूर का सबसे प्रतिष्ठित महाराजा कॉलेज (Maharaja college) में राधाकृष्णन प्रोफेसर रह चुके थे। जब वह कलकत्ता युनिवर्सिटी (Calcutta University) बतौर प्रोफेसर के रूप में जाने लगे, तो विश्वविद्यालय (Univercity) के बाहर कुछ इस तरह भीड़ लग गई की मानों कोई समारोह हो रहा हो। छात्र उनकी बग्गी को फूलों की माला से सजा रहे थे, लेकिन छात्रों के आंखों में उनके जाने का गम साफ दिख रहा था। भाषण (Speech) और मिलन समारोह के बाद जब डॉक्टर साहब जाने के लिए बाहर आए, वह बग्गी को फूलों से सजा हुआ देखकर मुस्कुराए, लेकिन फिर एकदम से चौंक (Shocked) उठे क्योंकि बग्गी में घोड़े नहीं जते हुए थे। छात्र आगे खड़े हुए और घोड़ों की जगह खुद उस बग्गी को खींचकर मैसूर के रेलवे स्टेशन (Railway Station) तक ले गए। रास्ते में लोग उनके चरण स्पर्श कर प्रणाम कर रहे थे, मानों कि उनके घर का कोई सदस्य उन्हें छोड़कर जा रहा हो।
जब अमेरिका में बजा डॉ. राधाकृष्णन का डंका
स्वामी विवेकानंद जी (Swami Vivekananda) के बाद, यदि अमेरिकी किसी भारतीय (Indian) के मुरीद हुए तो उनका नाम था डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन। साल 1926 में अमेरिका के हावर्ड युनिवर्सिटी में जब डॉक्टर साहब ने पश्चिम शैली में भारतीय दर्शन को अंग्रेजी में समझाना शुरू किया तो उन्हें एकसाथ तीन चीजें याद आई। पहले स्वामी विवेकानंद का वो भाषण, फिर भारतीय संस्कृति (Indian Heritage) और फिर स्वामी विवेकानंद के देश से आया ये दार्शनिक पुरोधा। अगले दिन के अखबारों में डॉ. राधाकृष्णन साहब का वक्तव्य और विश्लेषण से छाया हुआ था, हर कोई इसे पढ़ने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहा था। साल 1926 में ही डॉक्टर राधाकृष्णन (Radha Krishnan) ने एक किताब लिखी ”द हिंदी व्यू ऑफ लाइफ”, (Hindi View Of life) इन किताबों के जरिए डॉ. साहब का पश्चिमी क्षेत्रों में गुणगान होने लगा।
बता दें कि, भारत के इतिहास में पांच सितंबर (5 September) की तारीख का एक खास महत्व है। पांच सितंबर 1888 को तमिलनाडु में जन्मे डॉ. राधाकृष्णन को भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद् और महान दार्शनिक के तौर पर जाना जाता है। पूरे देश को अपनी विद्वता से अभिभूत करने वाले डॉ. राधाकृष्णन को भारत सरकार ने सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया था।