Revathi in Olympics: 5 वर्ष की आयु में ही माँ-पिता को खो देने वाली रेवती अब ओलंपिक में फहरायेंगी तिरंगा
Revathi in Olympic । देश में ऐसे बहुत से खिलाड़ी है जिन्हे अगर सही समय पर सुविधाएं दी जाए तो वो देश के लिए बहुत कुछ हासिल कर सकते है लेकिन सुविधाओं के अभाव में बहुत से खिलाड़ी बेहतरीन होने के बावजूद देश का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाते है। आज हम आपको एक ऐसी खिलाड़ी की कहानी सुनाने जा रहे है जिसने मात्र 5 वर्ष की आयु में अपने माता-पिता को खो दिया था और उसके पास दौड़ने के लिए जूते भी नहीं थे लेकिन इस साल जापान में होने जा रहे टोक्यो ओलंपिक्स में वो रिले टीम के रूप में देश का प्रतिनिधित्व करने जा रही है।
Revathi in Olympics: बचपन में हो गई थी अनाथ
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हम जिस खिलाड़ी की बात कर रहे है उसका नाम रेवती है, जब वो 5 वर्ष की हुई थी तो किसी पेट की बीमारी के चलते उनके पिता का निधन हो गया था तो उसके 6 महीने के अंदर ही रेवती की मां का दिमागी बुखार की वजह से देहांत हो गया था। ऐसे में रेवती और उनकी बहन को पालने की जिम्मेदारी रेवती की नानी ने उठाई, तमिलनाडु राज्य के मदुरै जिले के सकीमंगलम गांव में रहने वाली रेवती को उनकी नानी ने बड़ी मुश्किलों से बड़ा किया है।
रेवती की नानी ने उन्हें और उनकी बहन के पालन पोषण के लिए काफी कम रुपयों में भी दूसरों के खेतों और ईंटो के भट्टे पर काम किया लेकिन कभी भी उनकी पढ़ाई को नहीं रुकने दिया। हालांकि कई बार रिश्तेदारों ने कहा कि वो रेवती को भी अपने साथ मजदूरी के लिए ले जाया करे लेकिन उन्होंने ये कह कर मना कर दिया था कि रेवती और उसकी बहन सिर्फ पढ़ाई करेंगी।
Revathi in Olympics: नानी की बदौलत चढ़ी सफलता की सीढ़ी
अपनी नानी के जज़्बे के ही कारण रेवती और उनकी बहन अपनी स्कूली पढ़ाई को पूरी कर पाई, रेवती बचपन से ही एक अच्छी धाविका थी और उनके इसी प्रतिभा की वजह से उन्हें भारतीय रेलवे के मदुरै रेल खंड में स्पोर्ट्स कोटे में बतौर टी.टी.ई. की नौकरी मिल गई थी तो वहीं उनकी बहन चेन्नई में एक पुलिस अधिकारी बन चुकी है। रेवती के अनुसार के कन्नन जो तमिलनाडु खेल विकास प्राधिकरण के कोच थे, उन्होंने रेवती की प्रतिभा को स्कूल में ही पहचान लिया था।
जब कोच के कन्नन ने रेवती की नानी से रेवती के दौड़ने के बारे में बात करी तो सबसे पहले नानी ने साफ मना कर दिया था लेकिन कोच के समझाने के बाद रेवती की नानी इसके लिए तैयार हो गई थी। जिसके बाद के कन्नन ने रेवती को मदुरै लेडी डोक कॉलेज में दाखिला दिलवाने के साथ छात्रावास में जगह दिलवाई। रेवती का मानना है कि उनकी नानी ने खुद कड़ी मेहनत करके उन्हें पाला है और आज जो वो एक धाविका है उसके पीछे उनके कोच के कन्नन की मेहनत है।
कम नहीं हैं इनके संघर्ष की कहानी
रेवती (Revathi in Olympics) के पास पहले दौड़ने के लिए जूते नहीं थे इसलिए कॉलेज में आयोजित हुई बहुत सी प्रतियोगिताओं में वो नंगे पैर दौड़ी थी और यहां तक कि 2016 में कोयम्बटूर में आयेजित हुई राष्ट्रीय जूनियर चैंपियनशिप में भी उन्हें नंगे पैर दौड़ना पड़ा था। हालांकि इसके बाद उनके लिए उनके कोच के कन्नन ने उनके लिए बुनियादी सुविधाएं जैसेकि किट, उचित मात्रा में खान-पान और अन्य जरूरी सामान सही से मिले।
2016 से लेकर 2019 तक रेवती ने के.कन्नन के मार्गदर्शन में ही अपनी ट्रैनिंग की जिसके बाद रेवती का पटियाला में स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स यानी राष्ट्रीय खेल संस्थान द्वारा चयन कर लिया गया।
400 मीटर दौड़ के लिए हो रहीं तैयार
रेवती टोक्यो ओलिंपिक (Revathi in Olympics) में 400 मीटर की रिले टीम का हिस्सा है, वैसे तो रेवती के कन्नन की कोचिंग में 100 मीटर और 200 मीटर रेस के लिए तैयार हो चुकी थी लेकिन उन्हें अब ऐसे कोच की जरूरत थी जो उन्हें 400 मीटर के लिए तैयार कर सके और उनकी ये खोज राष्ट्रीय शिविर की कोच बुखारीना में समाप्त हुई। उन्होंने रेवती को 400 मीटर दौड़ के लिए तैयार किया और अब रेवती टोक्यो ओलिंपिक में 400 मीटर रेस में भारत के लिए दौड़ने को तैयार है।
रेवती के कोच के कन्नन को इस बात का पहले से यकीन था कि रेवती ओलिंपिक में देश का प्रतिधिनित्व करेंगी और जबकि अब रेवती ओलिंपिक के लिए टोक्यो जा रही है तो उनका सपना पूरा होने जा रहा है।