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दशरथ मांझी की जीवनी । Biography of Mountain Man Dashrath Manjhi

Youthtrend Biography Desk :- अगर कोई इंसान चाहें तो वो क्या नहीं कर सकता, वो चाहें तो अकेले दम पर पहाड़ भी तोड़ सकता हैं, सही पढ़ा आपने ये बात केवल बोलने या पढ़ने तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि इस देश की मिट्टी से एक ऐसे शख्स ने जन्म लिया था जिसने अकेले दम पर 25 फीट ऊंचे और 360 फीट लंबे पहाड़ को तोड़कर वहां से रास्ता बनाया था। हम जिस शख्स की बात कर रहें हैं उनका नाम हैं दशरथ मांझी जिन्हें लोग माउंटेन मैन के नाम से ज्यादा जानते हैं, आज हम आपकों उसी माउंटेन मैन यानी दशरथ मांझी की जीवनी बताने जा रहें हैं।

दशरथ मांझी की जीवनी । दशरथ मांझी का जीवन परिचय

नाम- दशरथ मांझी
जन्म- 14 जनवरी 1929
मृत्यु- 17 अगस्त 2007
जन्म स्थल- गहलौर (बिहार)
पत्नी का नाम- फगुनिया
मरने की वजह- कैंसर

दशरथ मांझी की जीवनी । दशरथ मांझी का शुरुआती जीवन

दशरथ मांझी के जन्म के समय पूरे देश में ब्रिटिश साम्राज्य था, देश के साथ-साथ इनके गांव की हालत भी बहुत खराब थी, जब देश अंग्रेजो से आजाद हुआ तो उसके बाद धनाढ्य लोगों ने अपना आधिपत्य जमाना शुरू कर दिया। गांवों में जमीदार गरीब और अनपढ़ लोगों का शोषण करने लगें, मांझी का परिवार भी अति-निर्धन था। भले ही देश आजाद हो चुका था लेकिन गांव में ना तो बिजली थी, ना ही पानी था और ना ही कोई पक्की सड़क, गांव के निवासियों को इलाज के लिए भी गांव में अस्पताल ना होने के कारण बड़े से पहाड़ को पार कर शहर जाना पड़ता था।

मांझी का बाल विवाह हो गया था, उनके पिता ने गांव के ही जमीदार से कुछ पैसे कर्जे के रूप में लिए थे जिसे वो चुका नहीं पाए तो उसके एवज में वो अपने बेटे मांझी को उस जमीदार का बंधुआ मजदूर बनने को कहते हैं लेकिन बचपन से ही मांझी को किसी की गुलामी करना पसंद नहीं था और इसी वजह से वो गांव छोड़कर कहीं भाग जाता हैं और धनबाद में एक कोयले की खदान में काम करने लगता हैं।

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दशरथ मांझी की जीवनी । जब मांझी दुबारा लौटता हैं गांव

दशरथ मांझी सन 1955 के आसपास वापस अपने गांव लौट आते हैं लेकिन वो देखते हैं कि गांव के हालातों में कोई भी बदलाव नहीं हुआ हैं भले ही गांव की गरीबी हो, कच्ची सड़क हो, बिजली का ना होना हो सब वैसे ही था, वापिस गांव आने पर उन्हें इस बात की भी जानकारी मिलती हैं कि उनकी मां का देहांत हो चुका हैं। कुछ दिनों बाद मांझी को एक लड़की अच्छी लगने लगती हैं और उन्हें पता चलता हैं कि इसी लड़की से बचपन में उनकी शादी हो चुकी हैं, ये जानकर वो लड़की के घर लड़की को लेने जाते हैं पर लड़की के पिता ये कहकर मना कर देते हैं कि लड़का कुछ कमाता नहीं हैं पर दशरथ और वो लकड़ी फगुनिया एक दूसरे से प्रेम करने लगते हैं और दोनों भाग कर शादी कर लेते हैं।

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दशरथ मांझी की जीवनी । जब पहाड़ को तोड़ने का लेते हैं प्रण

1960 में उनकी पत्नी दूसरी बार गर्भवती हो गई थी, उन दिनों दशरथ को पहाड़ के दूसरी तरफ कुछ काम मिल जाता हैं, ऐसे में हर रोज फगुनिया उसे खाना देने जाती थी लेकिन एक दिन फगुनिया का पैर फिसल जाता हैं और वो गिर जाती हैं। दशरथ फगुनिया को शहर के अस्पताल में ले जाता हैं जहां वो अपने गर्भ में पल रही बेटी को जन्म दे देती हैं लेकिन अगले ही पल वो खुद मर जाती हैं। इस घटना से मांझी पूरी तरह से टूट जाते हैं और मन ही मन ये निश्चय करते हैं कि जिस पहाड़ की वजह से उनकी फगुनिया मरी हैं वो उस पहाड़ का घमंड तोड़ कर पूरा पर्वत ही तोड़ देंगे।

दशरथ मांझी की जीवनी । पहाड़ को तोड़ने का शुरू हुआ सिलसिला

हर रोज सुबह मांझी अपना हथौड़ा और छैनी लेकर घर से निकल जाते थे मानों कि कही काम पर जा रहें हो, उनको पहाड़ तोड़कर सब उन्हें ताने मारते थे कोई कहता था कि मांझी पागल हो गया हैं तो कोई कहता था कि ये तो सनकी हैं लेकिन दशरथ ने कभी भी किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया और लगातार पहाड़ तोड़ने का काम किया। कई बार उन्हें चोट भी लगी, उन्हें उनके पिता ने बहुत समझाया लेकिन अब तो दशरथ मांझी पहाड़ को तोड़ने की हठ ले चुके थे।

काफी साल बीत जाने के बाद गांव में सूखा पड़ा जिसके कारण सभी गांव वाले गांव छोड़कर कही और जाने लगते हैं तो दशरथ खुद ना जाकर अपने बच्चों को अपने पिता के साथ गांव से भेज देता हैं, सुखे के समय दशरथ गंदा पानी और पेड़ की पत्तियों को खा कर जिंदा रहेगी। जब गांव में सुखा खत्म हो गया तो सभी गावँ वाले वापस आने लगे और गांव पहुंच कर वो लोग देखते हैं कि मांझी अभी भी पहाड़ तोड़ रहा हैं तो सब हैरान रह जाते हैं।

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दशरथ मांझी की जीवनी । जब देश में लगा था आपातकाल

सन 1975 में देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी, आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी बिहार के दौरे पर थी और उनकी वहां एक जनसभा होती हैं जिसमें दशरथ भी जाते हैं भाषण के दौरान मंच टूट जाता हैं पर दशरथ समेत कुछ लोग मंच को संभाल लेते हैं जिसके बाद इंदिरा गांधी अपना भाषण पूरा करती हैं, आखिर में दशरथ ने इंदिरा गांधी के साथ फोटो खिंचवाई। इस बात की खबर जब गांव के जमींदार को लगी तो उसने दशरथ को अपनी मीठी बातों से झांसे में फंसा लिया और मांझी को धोखा दे दिया, पता चलने पर मांझी जमींदार की शिकायत इंदिरा गांधी से करने के लिए निकल जाता हैं।

दशरथ मांझी की जीवनी । बिहार से दिल्ली की पैदल यात्रा

दशरथ मांझी ट्रेन से दिल्ली जा रहें थे लेकिन उनके पास ट्रेन का किराया भी नहीं था इसलिए उन्हें टीटी ने ट्रेन से नीचे उतार दिया, लेकिन फिर भी दशरथ के कदम नहीं रुकें और वो पैदल ही ट्रेन की पटरी पर चलतें हुए दिल्ली की तरह निकल पड़े। दिल्ली में उन दिनों हालात ठीक नहीं थे, दशरथ ने इंदिरा गांधी के आवास के बाहर सुरक्षाकर्मियों को अपनी इंदिरा गांधी के साथ वाली फोटो दिखाई लेकिन उन्होंने उस फोटो को फाड़ कर उसे बिना मिले ही वहां से भगा दिया।

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दशरथ मांझी की जीवनी । जब और लोग मांझी की मदद के लिए आए आगे

दिल्ली से निराश होकर मांझी वापस बिहार आए, अब उनकी लगभग सभी उम्मीदें टूट चुकी होती हैं लेकिन कुछ लोग मांझी की हिम्मत बढ़ाने के लिए आगे आते हैं और उनकी पहाड़ तोड़ने में मदद करते हैं गांव के जमींदार को जब ये पता चलता हैं तो वो कुछ लोगों को मांझी के समेत जेल में बंद करवा देता हैं। लेकिन तभी एक पत्रकार मांझी के लिए खड़ा होता हैं और गांव वालों को लेकर थाने के सामने प्रदर्शन करता हैं आखिरकार दशरथ को छोड़ दिया जाता हैं।

दशरथ मांझी की जीवनी । आखिकार तोड़ ही दिया पहाड़

आखिरकार 1982 में मांझी ने उस 360 फीट लंबे, 30 फीट चौड़े और 25 फीट ऊंचे पहाड़ को पूरी तरह से तोड़ देता हैं जिसकी वजह से 55 किमी का रास्ता केवल 15 किमी का ही रह जाता हैं, उनकी इस कार्य के लिए उन्हें 2006 में पद्मश्री से नवाजा गया।

दशरथ मांझी की जीवनी । जब दशरथ जिंदगी की जंग हार गए

दशरथ मांझी का 17 अगस्त 2007 को गाल ब्लाडर में कैंसर से निधन हो गया, अपने अंतिम समय में दशरथ ने अपने जीवन पर फिल्म बनाने की अनुमति दी थी, उनके जीवन पर बनी फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने उनका और राधिका आप्टे ने उनकी पत्नी फगुनिया का किरदार निभाया था।

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