26 वर्ष की उम्र में शहीद हुए वायु सेना के एकमात्र परमवीर चक्र विजेता के साहस की अमर कहानी
Youthtrend Inspirational Story Desk : भारत की धरती पर तो प्राचीन काल से ही वीर सपूतों ने जन्म लिया हैं बात भले ही मंगल पांडे की हो या वीर भगत सिंह की, सुभाष चंद्र बोस की हो या चंद्रशेखर आजाद की, देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले जाबांजो की कोई कमी नहीं हैं, एक ऐसे ही वीर जवान थे फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों। वायु सेना के अफसर निर्मल जीत सिंह जब देश के लिए शहीद हुए थे तो उनकी उम्र मात्र 26 वर्ष थी, भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 में हुई जंग में इस बहादुर वायुसेना अफसर ने अहम भूमिका निभाई थी। आज के इस लेख में हम आपको उसी वीर जवान की गाथा सुनाने जा रहें हैं।
पिता से मिली थी देश की सेवा करने की प्रेरणा
निर्मल जीत सिंह का जन्म 17 जुलाई 1943 को पंजाब राज्य के लुधियाना जिले में स्थित इस्बाल दाखा गांव में हुआ था, निर्मल जीत के पिताजी जिनका नाम तारालोचन सिंह सेंखो था वो भी भारतीय वायुसेना में बतौर फ्लाइट लेफ्टिनेंट तैनात थे। असल में निर्मल जीत सिंह को भारतीय वायुसेना में आने की प्रेरणा अपने पिताजी से ही मिली थी, निर्मल जीत ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने देश सेवा करने की तरफ एक और कदम बढ़ाया। आखिरकार उनकी इच्छा पूरी हुई और 4 जून 1967 के दिन उन्हें भारतीय वायुसेना में एक पायलट के रूप में तैनात कर दिया गया।
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिका
1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच भीषण युद्ध छिड़ चुका था, उस समय पाकिस्तानी वायुसेना की टुकड़ी भारत के अमृतसर, पठानकोट और श्रीनगर के हवाई अड्डों को तबाह करने के लिए लगातार हमले कर रही थी, तब भारतीय वायुसेना द्वारा 18 स्क्वाड्रन की एक टुकड़ी को श्रीनगर बेस की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया, इस टुकड़ी में निर्मल जीत सिंह सेंखो भी थे।
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14 दिसंबर 1971 की सुबह कोहरे के कारण पाकिस्तानी सेना ने चुपके से भारतीय सीमा में प्रवेश कर लिया, उन दिनों कश्मीर घाटी में रडार ना होने के कारण दुश्मन जहाज का पता लगाना बड़ा मुश्किल होता था और भारतीय वायुसेना अपनी ऊंचाई पर बनी हुई पोस्टों के भरोसे रहता था। श्रीनगर से कुछ किलोमीटर पहले पाकिस्तानी वायुसेना के विमानों को देखने के बाद उसकी सूचना श्रीनगर एयरबेस को दी गई लेकिन एयर ट्रैफिक कंट्रोल से संपर्क साधने के प्रयास में निर्मल जीत सिंह असफल रहें तब उन्होंने बिना एक भी पल गवाएं अपने लड़ाकू विमान में उड़ान भरी, उसी समय उन्होंने देखा कि रनवे पर बम विस्फोट हुए और दो जेट दूसरे रनवे पर हमला करने जा रहें हैं ये देखकर सेंखो ने अपना लड़ाकू विमान पाकिस्तानी विमानों की तरफ मोड़ लिया।
बहुत बहादुरी से लड़े थे निर्मल जीत सिंह सेंखो
1965 के युद्ध में शामिल हो चुके पाकिस्तानी वायुसेना के अफसर चंगाजी भी विमान में सवार थे लेकिन जब उन्हें पता चला कि कोई भारतीय विमान उनका तेजी से पीछा कर रहा हैं तो वो नीचे कूदने लगे लेकिन तब तक सेंखो ने उन पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी। अब तक निर्मल सिंह अकेले दो पाकिस्तानी विमानों से लड़ रहे थे कि तभी दो और विमानों ने उन्हें घेर लिया पर निर्मल जीत सिंह ने हार नहीं मानी और दुश्मन के सभी विमानों को अकेले दम पर नष्ट कर दिया।
दुर्भाग्य से उनका विमान भी दुश्मनों के निशाने पर आ गया और अंत में उनका विमान बडगाम के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिसमें फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेंखो देश के लिए मात्र 26 वर्ष की उम्र में शहीद हो गए, देश आज भी उनके इस बलिदान को नहीं भुला हैं उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।