14 मार्च से शुरू हो चुका है खरमास, 1 माह तक भूल से भी न करें ये काम
हिन्दू धर्म मे हर शुभ कार्य शुभ मुहुर्त देख कर किया जाता हैं, हिन्दू कैलेंडर के अनुसार हर साल में कुछ ऐसे महीने होते हैं जो काफी शुभ होते हैं जबकि कुछ ऐसे भी महीने होते हैं जिन्हें बहुत अशुभ माना जाता हैं और ऐसे महीने में किसी भी शुभ कार्य को नहीं किया जाता हैं। उन्ही अशुभ महीनों में से एक महीना हैं खरमास का, कहा जाता हैं कि इस महीने में कोई भी शुभ कार्य को ना करने का विधान हैं, इस वर्ष खरमास का महीना 14 मार्च से शुरू हो चुका हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य ग्रह मीन राशि में प्रवेश करते हैं तब से खरमास की शुरुआत होती हैं, खरमास जिसे मलमास भी कहा जाता हैं इस बार यह 13 अप्रैल को खत्म होगा। हिन्दू धर्म-शास्त्र के अनुसार कौन-कौन से शुभ कार्य नही करने चाहिए आज हम आपको इस लेख में बताएंगे। इसके अलावा यह भी बतायेंगे कि खरमास के दौरान क्या करना चाहिए।
कौन से शुभ कार्य नही करने चाहिए
खरमास के दौरान कोई भी मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए जैसेकि विवाह, मुंडन, ग्रह-प्रवेश, जनेऊ संस्कार, नामकरण जैसे कोई भी शुभ काम नहीं करने चाहिए क्योंकि कोई भी शुभ कार्य हमेशा ग्रहों की स्थिति और उसकी चाल के अनुसार ही किया जाता हैं।
खरमास के महीने में यह भी कहा गया हैं कि तांबे के बर्तन में दूध नहीं पीना चाहिए।
क्या करें खरमास में
शास्त्रों और पुराणों के अनुसार यह मान्यता हैं कि खरमास के महीने में पूजा-पाठ करना काफी महत्व रखता हैं, इसी वजह से खरमास यानी मलमास के महीने में व्यक्ति को समय सत्संग, भजन-कीर्तन, पूजा-पाठ, उपवास करके व्यतीत करना चाहिए। खरमास में श्री विष्णु पुराण या श्रीमदभागवत गीता को पढ़ने या सुनने से विशेष लाभ प्राप्त होता हैं।
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खरमास के माह में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व होता हैं, ऐसा माना जाता हैं कि इस अशुभ मुहूर्त के महीने में अगर कोई सच्ची भावना से भगवान विष्णु का ध्यान करें तो भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता हैं। इसके अलावा भगवान विष्णु की कृपा से सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं और जीवन की सभी समस्याएं खत्म हो जाती हैं।
खरमास में भगवान सूर्य की पूजा का भी विशेष विधान हैं, खरमास में सूर्य देव को जल अर्पण करें, उनकी पूजा कीजिए यह उपाय करने से सूर्य देव की विशेष कृपा मिलती हैं और स्वास्थ्य भी उत्तम रहता हैं।
इन सबके अलावा इस महीने में सादा आहार ही ग्रहण करना चाहिए और दाम्पत्य जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।