पुत्र की लंबी आयु के लिए किया जाता है जीवित्पुत्रिका व्रत, जानें क्या है महत्व और पूजा विधि
हिन्दू धर्म में बड़ी श्रद्धा के साथ जीवित्पुत्रिका या जिउतिया का पर्व मनाया जाता हैं| जीवित्पुत्रिका व्रत का खास महत्व होता है| इस व्रत को माताएँ अपनी संतान की मंगलकामना और लंबी आयु के लिए रखती हैं| हिन्दू पंचांग के मुताबिक जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह 2 अक्तूबर को मनाया जाएगा। यह पर्व भी छठ की तरह तीन दिनों तक चलता है| जिसमे पहले दिन नहाय खाय, दुसरे दिन निर्जला व्रत और तीसरे दिन व्रत का पारण होता है।
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व्रत का पहला दिन
जीवित्पुत्रिका व्रत के पहले दिन को नहाय-खाय कहा जाता है। इस दिन महिलाएं प्रातःकाल जल्दी उठकर पूजा पाठ करती है और एक बार भोजन करती है। उसके बाद दिन भर कुछ नहीं खातीं हैं|
व्रत का दूसरा दिन
व्रत के दूसरे दिन को खुर जीवित्पुत्रिका कहा जाता है। व्रत का यह मुख्य दिन होता है। इस दिन महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं।
व्रत का तीसरा दिन
तीसरा दिन व्रत का आखिरी दिन होता है और इस दिन व्रत का पारण किया जाता है। वैसे तो इस दिन महिलाएं सब कुछ खाती है लेकिन मुख्य रूप से झोर भात, नोनी का साग, मड़ुआ की रोटी सबसे पहले भोजन के रूप खाया जाता हैं|
पूजा विधि
आश्विन माह की कृष्ण अष्टमी को प्रदोषकाल में जीमूतवाहन की पूजा की जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि जो महिलाएं जीमूतवाहन की पूरे श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा करती हैं उनके पुत्र को लंबी आयु व सभी सुखों की प्राप्ति होती है। पुजा के लिए जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित मूर्ति को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित किया जाता है| इसके बाद महिलाएं पूजा करती हैं। इसके अलावा मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है। जिसके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। पुजा समाप्त होने के बाद महिलाएं जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनती है। पुत्र की लंबी आयु, आरोग्य तथा कल्याण की कामना के लिए महिलाएं इस व्रत को करती हैं।
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