Religion

Sakat Chauth Vrat Katha: इस कथा के बिना अधूरा माना जाता है व्रत

Sakat Chauth Vrat Katha: आज सकट चौथ का व्रत है, जब माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए संतान के स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करते हुए यह व्रत करती हैं। इस दिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर गणेशजी की पूजा करती हैं। पूजा का मुख्य उद्देश्य बच्चों की भलाई और जीवन में सुख-समृद्धि लाना होता है। व्रत के समापन पर रात को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है और सकट माता से संतान की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना की जाती है।

इस व्रत के दौरान व्रत कथा (Sakat Chauth Vrat Katha) का विशेष महत्व है। मान्यता है कि यदि सकट चौथ की पूजा में व्रत कथा का पाठ नहीं किया जाता है तो यह पूजा अधूरी मानी जाती है। व्रत कथा के द्वारा श्रद्धालु सकट माता की महिमा और गणेशजी की पूजा विधि को समझते हैं, जिससे व्रत का समपन्नता से फल मिलता है। अतः इस दिन व्रत कथा का श्रवण करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यह कथा संतान सुख और परिवार की खुशहाली की कामना करने वाली होती है।

Sakat Chauth Vrat Katha

Sakat Chauth Vrat Katha: पहली व्रत कथा

एक समय की बात है, एक देवरानी और जेठानी थीं। जेठानी बहुत अमीर थी, उसके पास विशाल घर, परिवार और सारी सुख-सुविधाएं थीं। वहीं, देवरानी बहुत गरीब थी, और उसे अपना जीवन जेठानी की सेवा करके बिताना पड़ता था। देवरानी का घर एक छोटी सी झोपड़ी थी, जहां खाने-पीने की भी तंगी रहती। वह जो कुछ भी जेठानी से मिल जाता, वही लेकर अपनी झोपड़ी में आकर उसे पकाकर खा लेती। उसकी दिनचर्या बहुत कठिन थी, वह दिनभर जेठानी की सेवा करती और रात को टूटी चारपाई पर सो जाती, फटे घड़े से पानी पीकर अपना जीवन बिता रही थी।

एक साल बाद सकट चौथ का त्योहार आया। जैसे अन्य दिनों में देवरानी भूखी-प्यासी जेठानी की सेवा करती रही, उसी दिन भी उसका यही हाल था। जब वह रात को अपने घर लौटी तो उसके पास कुछ भी नहीं था, जो चूनी-चोकर उसने आम तौर पर खाया था, वह भी नहीं मिल पाया। उसने खेत से बथुआ तोड़ा और कुछ चावल के कन इकट्ठा किए। फिर उन कन से लड्डू बनाए और बथुआ बना लिया। उसी रात सकट माता आईं, और दरवाजे की ओर खड़ी होकर बोलीं, “ब्रह्मणी, दरवाजा खोलो।” देवरानी ने उत्तर दिया, “आओ माता, दरवाजे कहां हैं।”

सकट माता भीतर आईं और उन्होंने कहा, “बड़ी भूख लगी है।” देवरानी ने उन्हें जो भी कुछ था, वही खाने को दिया – कन के लड्डू और बथुआ का धोंधा। सकट माता ने भरपेट भोजन किया, फिर पानी पीने की इच्छा जताई। देवरानी ने अपनी फूटी गगरी से पानी पिलाया। बाद में सकट माता ने सोने की इच्छा जताई, और देवरानी ने उन्हें अपनी टूटी खाट पर सुला दिया।

रात को सकट माता को टट्टी लगी, और उन्होंने पूछा, “टट्टी कहां जाऊं?” देवरानी ने कहा, “सारा घर लीपा-पुता है, जहां चाहो बैठ जाओ।” सकट माता ने सारे घर में टट्टी कर दी, फिर भी पूरी तरह से निपट नहीं पाईं। फिर उन्होंने पूछा, “अब कहां जाऊं?” देवरानी ने कहा, “अब मेरे सिर पर करो।” सकट माता ने देवरानी के सिर से पांव तक टट्टी कर दी और फिर चली गईं।

सुबह जब देवरानी उठी तो चमत्कारी दृश्य देखा। उसकी पूरी झोपड़ी सोने से भर गई थी, हर जगह सोना ही सोना बिखरा हुआ था। देवरानी बहुत खुश हुई, और जल्दी-जल्दी सोना इकट्ठा करने लगी। लेकिन सोना खत्म नहीं हो रहा था, और वह थक गई।

इधर, जब समय पर देवरानी घर नहीं लौटी तो जेठानी ने चिंता जताई। उसने अपने बेटे को भेजा और कहा, “जाकर उसे तुरंत बुलाओ।” लड़के ने जो खबर दी, उसे सुनकर जेठानी का दिल धक से रह गया। वह दौड़ी-दौड़ी देवरानी के घर पहुंची, और देखा कि झोपड़ी में चारों ओर सोना ही सोना बिखरा हुआ था। जेठानी ने हैरान होकर पूछा, “किसे मारकर यह सब किया है?” देवरानी ने सरलता से जवाब दिया, “न किसी को मारा, न किसी को पीटा, यह सब सकट माता की कृपा है।”

जेठानी ने पूछा, “तू ऐसी कौन सी सेवा की थी कि सकट माता इतनी प्रसन्न हो गईं?” देवरानी ने बताया, “मैंने तो बस कन के लड्डू और बथुआ के धोंधे दिए थे खाने को, और यही सब मैंने किया था।”

जेठानी यह सब सुनकर घर लौट आई और उसकी अपनी स्थिति खराब हो गई। अगले साल जब सकट चौथ का त्योहार आया, तो जेठानी ने देवरानी की तरह कन के लड्डू और बथुआ के धोंधे बनाए, फूटी गगरी और टूटी खाट रख दी और सकट माता का इंतजार करने लगी। रात में सकट माता आईं और दरवाजे की ओर खटखटाया। जेठानी ने कहा, “माता, किवाड़ा कहां हैं, टटिया खोल आ जाओ।” सकट माता ने वही किया जो पिछले साल देवरानी के साथ हुआ था। उन्होंने खाया-पिया और फिर रात को जेठानी और उसके घर को गंदगी से भर दिया।

सुबह जब जेठानी और उसके परिवार ने देखा तो हर जगह गंदगी फैल गई थी, और घर बदबू से भर गया था। जेठानी ने देवरानी को ताने देते हुए कहा, “तुमने जो कुछ बताया था, वह कुछ भी नहीं हुआ।” तब देवरानी ने कहा, “तुमने तो गरीबी का नाटक किया था। तुम्हारे पास सब कुछ था, इसी कारण सकट माता अप्रसन्न हो गईं। मेरी गरीबी में उन्हें दया आ गई और उन्होंने मुझे सब कुछ दे दिया। तुमने केवल मेरी नकल की थी, इसलिए ऐसा हुआ।”

यह कथा (Sakat Chauth Vrat Katha) हमें यह सिखाती है कि ईश्वर की कृपा और दया केवल सच्चे दिल से की गई सेवा पर निर्भर करती है, और दिखावे या कृत्रिमता से कुछ नहीं मिलता।

Sakat Chauth Vrat Katha: दूसरी व्रत कथा

किसी नगर में एक कुम्हार रहता था, जो बर्तन बनाने का काम करता था। एक बार उसने बर्तन बनाने के बाद उन्हें पकाने के लिए आंवां (अंगीठी) लगाया, लेकिन बहुत कोशिश करने के बावजूद आंवां ठीक से नहीं पका। परेशान होकर वह कुम्हार राजा के पास गया और शिकायत की कि आंवां पक ही नहीं रहा है। राजा ने कुम्हार की परेशानी सुनकर अपने राज पंडित से इस बारे में पूछा। पंडित ने राजा को बताया कि आंवां पकाने के लिए हर बार एक बच्चे की बलि देनी पड़ेगी, तभी आंवां ठीक से पकेगा।

राजा ने पंडित की सलाह मानते हुए आदेश जारी कर दिया कि अब से जिस परिवार की बारी आएगी, उसे अपने बच्चों में से किसी एक को बलि के लिए भेजना होगा। यह आदेश सुनकर नगर में हर घर में हड़कंप मच गया। सभी परिवारों को अपने बच्चों में से किसी एक को बलि देने की कड़ी जरूरत थी, और इस भय से लोग परेशान हो गए थे।

कुछ समय बाद, सकट के दिन एक बुढ़िया के लड़के की बारी आई। बुढ़िया का यह बेटा ही उसका जीवन का सहारा था। वह सोच में पड़ गई कि अब वह क्या करे, क्योंकि उसकी कोई और संतान नहीं थी और यही बेटा उसकी उम्मीदों का केंद्र था। फिर भी, राजा का आदेश था और उसे उसे मानना ही था। दुःखी और सोच में डूबी बुढ़िया ने अपने बेटे को सकट की सुपारी और दूब का बीड़ा दिया और कहा, “बेटा, भगवान का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता तुम्हारी रक्षा करेंगी।”

बच्चे को डरते-डरते आंवां में बैठा दिया गया और बुढ़िया सकट माता के सामने बैठकर उनकी पूजा करने लगी। पहले जब भी आंवां पकाने की प्रक्रिया शुरू होती, तो कई दिन लग जाते थे, लेकिन इस बार सकट माता की कृपा से आंवां एक ही रात में पक गया।

सवेरे कुम्हार ने देखा तो वह हैरान रह गया, क्योंकि आंवां पूरी तरह से पका हुआ था। बुढ़िया का बेटा भी सुरक्षित था और नगर के अन्य सभी बच्चे भी जीवित थे। यह चमत्कार देख नगरवासियों ने सकट माता की महिमा स्वीकार की और लड़के को भी धन्य माना। इसके बाद से ही सकट चौथ की पूजा विधिपूर्वक करने की परंपरा शुरू हुई।

यह कथा (Sakat Chauth Vrat Katha) हमें यह सिखाती है कि जब भक्त पूरी श्रद्धा और विश्वास से किसी देवी-देवता की पूजा करते हैं, तो वह उनकी रक्षा करते हैं और उन्हें संकटों से उबारने के लिए अपनी कृपा बरसाते हैं।

Sakat Chauth Vrat Katha

Sakat Chauth Vrat Katha: तीसरी व्रत कथा

किसी गांव में एक ब्राह्मण रहता था। उसकी एक ही संतान थी, एक लड़का, और वह भी बहुत गरीब था। ब्राह्मण का लड़का राजा के दरबार में काम करता था, लेकिन उसे जो पैसा मिलता था, वह बहुत कम था, जिससे उनके घर का गुजर-बसर मुश्किल से हो पाता था। किसी प्रकार घर चलाते हुए, सकट चौथ का त्योहार आ गया। ब्राह्मणी ने व्रत करने का निश्चय किया, लेकिन घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं था। उसने अपने बेटे से कहा, “बेटा, जब तुम राजा के यहां काम करके लौटो तो वहां से थोड़ा सा तिल और गुड़ ले आना, ताकि हम सकट माता की पूजा ठीक से कर सकें।”

लड़का राजा के महल में काम करने चला गया। दिनभर की मेहनत के बाद, वह एक दिन महल के भंडार गृह में घुस गया। वहां देखकर उसकी नजरें चौंधिया गईं क्योंकि वहां सारे प्रकार के सामान भरे हुए थे। लेकिन उसे चोरी करने की आदत नहीं थी और न ही वह ऐसा करना चाहता था। वह सोचने लगा कि यदि उसने तिल चुराया तो यह पाप होगा, और अगर गुड़ चुराया तो वह भी पाप होगा। माघ का महीना चल रहा था, और इस समय पाप करना उसे और भी अधिक गलत लग रहा था।

लड़का बार-बार सोचता रहा और खुद से कहता रहा कि “अगर तिल चुराऊं तो यह पाप होगा, अगर गुड़ चुराऊं तो वह भी पाप होगा।” इसी उधेड़बुन में वह खड़ा था, तभी पहरेदारों के कानों में यह आवाजें आईं और उन्होंने राजा को सूचित किया। राजा ने जब यह सुना, तो उसने उस लड़के से दरवाजे पर जाकर पूछा, “तुम कौन हो और यहां क्या कर रहे हो?” लड़के ने जवाब दिया, “महाराज, मैं आपका ही सेवक हूं। मैं बहुत गरीब हूं, मेरी मां व्रत कर रही हैं, लेकिन हमारे पास पूजा के लिए तिल और गुड़ नहीं हैं। उन्होंने मुझे यह कहा था कि राजा के यहां से थोड़ा तिल और गुड़ लेकर आऊं ताकि हम सकट माता की पूजा कर सकें। लेकिन मैं बहुत देर से सोच रहा हूं कि माघ का महीना है और यदि तिल या गुड़ चुराऊं तो यह पाप होगा।”

राजा ने कहा, “मैं कैसे विश्वास करूं कि तुम सच बोल रहे हो?” लड़के ने कहा, “महाराज, आप अपने आदमी को मेरे घर भेजकर मेरी मां से पूछ सकते हैं।” राजा ने लड़के की बात मानी और अपने आदमी को उसके घर भेज दिया।

आदमी जब ब्राह्मणी के घर पहुंचा, तो उसने बुढ़िया से पूछा, “क्या यह सच है कि आपके बेटे ने राजा के यहां से तिल और गुड़ मांगे थे?” बुढ़िया थोड़ी झिझकते हुए बोली, “मैं बाहर नहीं आ सकती, क्योंकि मेरी घोती (साड़ी) फटी हुई है।” आदमी वापस जाकर राजा से यह बात कहने लगा। राजा को दया आ गई और उसने निर्णय लिया कि अब इस परिवार को किसी भी प्रकार की चिंता नहीं करनी चाहिए।

राजा ने कहा, “तुम जितना माल चाहो, मेरे गाड़ियों में लदवा लो, सब तुम्हारा है। और घर जाकर अपनी मां से कह दो कि विधिपूर्वक सकट की पूजा करे और सुखमय जीवन बिताए। अब तुम्हें चोरी करने की जरूरत नहीं है।”

लड़का राजा की बात सुनकर बहुत खुश हुआ और उसने राजा की जयकार की। फिर वह पूरे सामान से लदा-फदा अपने घर वापस आया। बुढ़िया ने खुशी-खुशी सकट माता की पूजा की और उसके बाद वह और उसका बेटा सुख-शांति से अपना जीवन बिताने लगे।

यह कथा (Sakat Chauth Vrat Katha) हमें यह सिखाती है कि भगवान जब किसी भक्त की सच्ची श्रद्धा और विश्वास को देखता है, तो वह अपनी कृपा उस पर अवश्य बरसाता है।

Sakat Chauth Vrat Katha: चौथी व्रत कथा

एक समय की बात है, एक राजा था जिसके कोई संतान नहीं थी। यह उसे बहुत दुखी करता था। एक दिन, राजा महल के दरवाजे पर बैठे हुए थे कि वहां से एक भंगिन (एक गरीब स्त्री) निकली। वह दूसरी औरत से कहने लगी, “आज सुबह से लेकर अब तक राजा का मुंह देखा है, देखो, उसका दिन कैसा बीत रहा है!” राजा ने यह सुना और वह दुखी होकर महल में वापस आकर चुपचाप लेट गए।

राजा की यह हालत देख रानियाँ परेशान हो गईं और वह उसे उठाने आईं, लेकिन राजा न उठा। राजा ने कहा, “मेरे पास इतना बड़ा राज्य है, इतनी सारी रानियाँ हैं, लेकिन मुझे कोई संतान नहीं है। एक भंगिन ने मुझे यह कह दिया कि मेरा दिन अच्छा नहीं है।”

महल में सभी लोग दुखी हो गए, लेकिन राजा के दुख को दूर करने का उपाय छोटी रानी की दासी ने सोचा। वह दासी बड़ी चालाक थी और उसने छोटी रानी से कहा, “राजा बहुत दुखी हैं, हमें जो कुछ भी करना हो, तुम चुपचाप देखती रहो। राजा का दुख दूर हो जाएगा।”

फिर दासी राजा के पास गई और बोली, “राजा जी, उठिए और भोजन कीजिए, छोटी रानी गर्भवती हैं।” राजा बहुत खुश हुआ और तुरंत उठकर खाना खाने लगा। अब राजा नौ महीने तक पुत्र होने का इंतजार करने लगा। एक दिन दासी ने चारों तरफ पर्दे लगाकर राजा से कहा, “राजा जी, आज आपके घर पुत्र हुआ है।” राजा बहुत खुश हुआ और उसने उत्सव मनाया और खूब धन बांटा।

राजा ने दासी से कहा, “अब मुझे पुत्र दिखाओ।” दासी ने कहा, “राजा जी, उसके गुण खराब हैं, आप उसे पसन में देख सकते हैं।” राजा ने पूछा, “पसनी में कब दिखाएंगे?” तब दासी ने कहा, “राजा जी, मुण्डन में देखिए।”

राजा ने मान लिया। जब मुण्डन का समय आया, दासी फिर राजा से कहने लगी, “राजा जी, अब तो विवाह में देखिए।” राजा गुस्से में आ गए और कहने लगे, “क्या ग्रह खराब थे जो तुम मुझे पहले नहीं दिखा रही हो?” तब दासी ने कहा, “आपका लड़का है, बस कुछ ही दिन की बात है, विवाह में देख लेना।”

समय बीतता गया और सोलह साल बाद, राजा के यहाँ शादियाँ आने लगीं। राजा ने दासी से कहा, “अब हम राजकुमार की शादी करेंगे।” दासी ने कहा, “शादी पक्की करिए, लेकिन मैं भी राजकुमार के साथ डोले में चलूँगी।”

शादी तय हो गई और बारात सजने लगी। राजा फिर दासी से कहने लगे, “अब तो राजकुमार को दिखाओ।” दासी ने कहा, “राजा जी, अब द्वारचार में देखिए।” राजा चुप हो गए। फिर दासी ने एक बड़ी थाली में तिल और गुड़ मिलाकर एक लड़का रखा, और उसे ढककर डोली में बैठाकर बारात में चल दी।

छोटी रानी दुखी हो रही थी और बार-बार बेहोश हो जाती थी। वह बार-बार कहती, “यह दासी राजा की बेइज्जती करवा रही है।”

बारात चलते-चलते एक जगह विश्राम करने के लिए रुक गई। दासी का डोला एक पीपल के चबूतरे पर रखा गया। दासी नहाने तालाब में चली गई, और उसी पेड़ के नीचे सकट देवी बैठी थीं। सकट देवी ने देखा कि डोले के आसपास चींटियाँ आ रही थीं। उन्होंने डोला खोला और देखा कि थाली से तिल और गुड़ गायब हैं।

सकट देवी ने वह तिल और गुड़ खा लिया। अब थाली खाली थी। जब दासी नहाकर लौटी, तो उसने देखा कि सकट देवी बैठी हैं और थाली खाली है। दासी जोर-जोर से रोने लगी और सकट देवी से कहने लगी, “मेरा बेटा लिया है, मेरा बेटा देव, थाली में मेरा बेटा पड़ा हुआ था। अब मुझे बेटा देओ, तभी मैं तुम्हारे पैर छोड़ूंगी।”

सकट देवी संकट में पड़ गईं और उन्होंने कहा, “ठीक है, पैर छोड़ो, बेटा ले लो।” इसके बाद, सकट देवी ने एक सुंदर 16 साल का लड़का दिया। दासी बहुत खुश हुई और बारात महल के दरवाजे पर पहुंची। राजा ने कहा, “अब राजकुमार को दिखाओ।” दासी ने पर्दा हटाया और राजा को दिखाया। राजा हैरान रह गए और बोले, “इतना सुंदर लड़का था, इसीलिए तुमने मुझे नहीं दिखाया।” फिर बड़े धूमधाम से शादी हुई।

जब बारात वापस आई, तो छोटी रानी दुख से बेहोश पड़ी हुई थी। जब बारात दरवाजे पर पहुंची, तो दासी दौड़कर छोटी रानी के पास गई और कहा, “रानी जी, राजकुमार और बहू का परछन करो।” रानी, लड़के और बहू को देखकर बहुत खुश हुई।

फिर दासी ने कहा, “रानी, हम सवा पसेरी का लड़का लेकर आए थे, लेकिन अब सवा मन का तिल और गुड़ का प्रसाद लेकर आए हैं। सकट माता की कृपा से तुम्हें पुत्र मिला है।”

यह कथा (Sakat Chauth Vrat Katha) यह सिखाती है कि जब व्यक्ति अपने विश्वास और साहस के साथ सही रास्ते पर चलता है, तो भगवान की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।

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Chandan Singh

Chandan Singh is a Well Experienced Hindi Content Writer working for more than 4 years in this field. Completed his Master's from Banaras Hindu University in Journalism. Animals Nature Lover.